बाल कविता : ईमान बचा लाया हूं...

सौ का नोट दिया था मां ने,
बेटा कहीं गुमा आया था। 
मां डांटेगी यही सोचकर,
डरते-डरते घर आया था। 


 
मां ने सच में ही डांटा था,
रुपए बहुत परिश्रम के थे। 
औरों को केवल सौ होंगे,
उसे लाख से कम के ना थे। 
 
बोली थी-बर्तन मांजे थे,
झाड़ू पोंछा कर आए थे। 
उसके एवज में ही बेटे,
मुश्किल से रुपए पाए थे। 
 
बेटा बोला-रुपए गए हैं,
पर ईमान बचा लाया हूं। 
बीच सड़क पर पड़े पांच सौ,
नोट छोड़कर मैं आया हूं। 
 
धन खोने से सच में ही मां,
होता तो नुकसान बहुत है। 
पर ईमान बचा रखने से,
होता जग में सबका हित है। 


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