बाल साहित्य : तितली रानी

देख महक फूलों की तितली।
चंचल पंख हिलाती है।
 

 
उछल-कूद कलियों पर करके,
मन अपना बहलाती है।
बहुत दूर से मिलने खातिर,
इस बाग में आती है।
 
खूब रसपान फूल कराते,
कलियों संग सो जाती है।
प्रातःकाल होते ही फिर से,
अपना जादू दिखाती है।
 
उड़ती-उड़ती बहुत दूर तक,
तितली रानी जाती है।
कभी असंभव हो जाता है,
रात वहीं रुक जाती है।
 
परदेश को जाने वाली,
बहुत दिनों बाद फिर आती है।

 

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