बाल साहित्य : रंग जाओ रंगों में...

- ओम उपाध्याय
 

 
लाल रंग तुम लो,
मैं लेता हूं नीला।
तुम मलो सूखा सूखा,
मैं रंगता हूं गीला।
 
रंग आए हैं रंगोने-
प्रीत जगाई,
होली आई।
बरस भर बाद,
आया है ऐसा मौका।
 
पछताएगा वह जो,
रंगने से रहा चुका।
रंग जाओ रंगों में 
क्यों छुपते हो भाई,
होली आई।
 
खील बताशे और
पपड़ी गुझियों के संग।
सीखो हिल मिलकर,
संग रहने के ढंग।
कोई भी हो त्योहार सबने
एकता ही सिखाई।
होली आई।
 

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