बाल कविता : किससे मन की बात करें

किससे मन की बात करें, यह पूछ रहे हम बच्चे।
पापाओं से डर लगता है, हम उनसे घबराते।
और मम्मियां बहुत नासमझ, समझा उन्हें न पाते।
नहीं हमें छल छंद सुहाता, हम तो मन के सच्चे।
 
सिर पर खड़ी परीक्षा है सब, पढ़ो-पढ़ो चिल्लाते।
अंक तुम्हें सौ प्रतिशत लाना, हमको है धमकाते।
डांट रहे सब ऐसे जैसे, हम हों चोर उचक्के।
 
हमें पता है हम बच्चों को, ऊंचे क्रम पर आना।
लेपटॉप मोबाईल टी वी, पर! क्यों बंद कराना?
इनके चलते रहने पर भी, अंक लाएंगे अच्छे।
 
पापा कहते बनो चिकित्सक, मां-यंत्री बन जाओ।
दोनों हाथ बटोरो दौलत, घर में भरते जाओ।
पता नहीं क्यों हमें समझते, हम टकसाली सिक्के।
 
सभी मम्मियों सब पापाओं, सुन लो बात हमारी।
ढेर-ढेर धन दौलत की यह, छोड़ो भी बीमारी।
थोड़े से हों, पर श्रम के हों, वे ही रूपए अच्छे।

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