राष्ट्रभक्ति पर कविता : नमन तुमको मेरा...

- अनंत प्रसाद 'रामभरोसे'


 
सूर्य-चंदा और तारे
के सुखद मनहर नजारे
हैं सजाते देश को नित
स्वर्ण किरणों के सहारे,
 
गोधुली जिसकी सुहानी
सुखद है जिसका सवेरा
नमन तुमको देश मेरा।
 
अहा! पर्वत और घाटी
धन्य अपनी धूल माटी
अर्चना में लिप्त जिसकी
वेद मंत्रों के सुपाठी,
 
देवताओं की धरा यह
साधु-संतों का बसेरा
नमन तुमको देश मेरा। 
 
हम चले सबको जगाने
जागरण का गीत गाने
विश्वगुरु फिर से बनाने,
 
उठ गए हैं हम धरा से
अब मिटाने को अंधेरा
नमन तुमको देश मेरा। 
 

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