प्रभु! लोभ, स्वार्थ का क्या तात्पर्य है?
प्रभु बोले- 'इस पर मेरा यह उत्तर है,
लोभ सारी विपत्तियों की जड़ है,
स्वार्थ दुर्गुणों का जैसे कीचड़ है।'
सबसे बड़ा सुख है निरोगी काया।
दूसरा मां-बाप का प्यार पाया,
तीसरा सदाचारी मन व अंत में माया।
प्रभु! भटक रहा था अज्ञान के अंधकार में,
उजाला तुमने दिल खोल दिया।
मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है,
आपको क्या अर्पण कर सकता हूं।
मैं तो एक तुच्छ प्राणी हूं,