यह देख नरेश खुश हो उठे। उनके मित्र ने कहा कि आज वर्षों बाद इतने अच्छे खरबूजे देख रहा हूं।मिथिला नरेश ने सेवकों से छुरी और थाली लाने को कहा तो गोनू झा बोले- क्षमा करें महाराज, हमारे अतिथि ने कहा था कि वर्षों से खरबूजे नहीं देखे इसलिए ये खरबूजे खाने के लिए नहीं, देखने के लिए हैं। ये मिट्टी के बने हैं। नरेश सहित सभी दरबारी गोनू झा की चतुराई पर दंग रह गए। गोनू झा की चतुराई पर मित्र भी जोर से हंसा- वाह गोनू झा, समझो हमने खरबूजे देखे ही नहीं, खा भी लिए।