प्रेरक कहानी : आप कैसे हैं, आशावादी या निराशावादी?

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एक गांव में एक किसान रहता था, उसे जानवरों से बहुत प्यार था इसलिए उसने अपने घर में बहुत सारी गाय और भैंस पाल रखी थीं। उन्हीं का दूध बेचकर वह अपना जीवन यापन करता था। एक बार किसान ने एक कुत्ते और खरगोश को भी पाल लिया। कुछ दिन बाद उसके मन में इन दोनों के साथ खेलने का विचार आया। इस विचार से वह दोनों को एक खेत पर लेकर गया और उसने खेत में बहुत सारे छेद कर दिए। उन्हीं में से किसी एक छेद में 'हड्डी और गाजर' छिपा दी।
 
अब उसने कुत्ते और खरगोश को बुलाकर कहा कि तुम में से जो भी पहले 'हड्डी और गाजर' ढूंढ कर लाएगा, उसे मैं इनाम दुंगा। खरगोश बहुत ही आशावादी था, उसे पूरी उम्मीद थी कि वह 'हड्डी और गाजर' को ढूंढ ही निकलेगा। वहीं कुत्ता बहुत ही निराशावादी था, वह मन ही मन सोच रहा था कि यह क्या मजाक है? इतने बड़े खेत में भला कोई 'हड्डी और गाजर' कैसे ढूंढ सकता है? यही सोचकर कुत्ता खेत में बने एक बड़े से गड्ढे के पास बैठ गया।
 
वहीँ खरगोश पूरे जोश के साथ खेत में गाजर ढूंढने में लग गया। उसने एक-एक कर सारे छेद देखे लिए लेकिन उसे 'हड्डी और गाजर' कही नहीं मिले। फिर उसने कुत्ते को आराम से एक गड्ढे के पास बैठे देखा और सोचा कि बस यही एक गड्ढे को दिखना छूट गया है। अब वह उसी गड्ढे में 'हड्डी और गाजर' ढूंढूने लगा और संयोग से वहीं ये दोनों चीजें उसे मिल गई। अब तो उसकी खूशी को ठिकाना ही नहीं था।
 
कुत्ते की निराशावादी सोच ने उसे बड़े आराम से हारने दिया और खरगोश को आरान से जीतने दिया। कुत्ते ने आखिर पहले ही मान लिया था कि इतने बड़े मैदान में 'हड्डी और गाजर' मिल ही नहीं सकते और इसिलिए उसने कोशिश तक नहीं की।
 
दोस्तों हम में से कई लोग इसी तरह निराशावादी सोच के कारण प्रयास करने से डरते हैं और कठिनाइयों से भागते है। जब की हो सकता हैं कि समस्या का समाधान बिलकुल हमारे करीब ही हो।

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