खुला 2000 साल पुराने सुपरनोवा का रहस्य

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011 (17:50 IST)
185 ईस्वी में चीन के खगोलविदों ने आसमान में एक ‘मेहमान सितारे’ का विवरण दर्ज किया था जो रहस्यमयी तरीके से दिखाई देकर लगभग आठ माह तक तेज चमक के साथ दिखाई देता रहा। सन् 1960 तक वैज्ञानिकों द्वारा यह पता लगा लिया गया कि इस अतिरिक्‍त चमकीले तारे के दिखाई देने की घटना दरअसल एक सुपरनोवा विस्‍फोट थी। इस पिंड की पहचान पृथ्‍वी से 8000 प्रकाश वर्ष दूर सुपरनोवा के अवशेष के रूप में की गई।

185 ईस्‍वी की यह घटना मानव इतिहास में पहली बार दर्ज किया गया सुपरनोवा था। आधुनिक वैज्ञानिकों ने इसके अध्‍ययन से पाया कि इसके गोलाकार अवशेष उम्मीद से काफी बड़े और दूर-दूर तक फैले हुए थे। इस पिंड का नाम आरसीडब्ल्यू 86 रखा गया। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने नासा ने सोमवार इसके बारे में सोमवार को कहा है कि स्पित्जर अंतरिक्ष दूरबीन और व्यापक अवरक्त सर्वे अन्वेषक (डब्ल्यूआईएसई) ने 2000 साल इस पुराने रहस्य का हल ढूंढ़ निकाला है।

नासा की दूरबीनों से किये गये नये अवरक्त प्रेक्षणों ने खुलासा किया है कि पहली बार दर्ज किया गया सुपरनोवा कैसे पैदा हुआ था और किस प्रकार इसके अवशेष ब्रह्मांड में दूर तक फैल गए थे। इन नतीजों ने दिखाया कि सितारे में विस्फोट की घटना एक गहरी गुफानुमा जगह पर हुई थी जिसके कारण सितारे से निकलने वाले अवशेष सामान्य से कहीं ज्यादा तेजी से और काफी दूर तक बिखर गए थे।

उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के खगोलविज्ञानी और एस्ट्रोफिजिकल जर्नल के ऑनलाइन संस्करण में दूरबीन की खोज का विवरण देने वाले अध्ययन के प्रमुख ब्रायन विलियम्स ने कहा कि यह सुपरनोवा अवशेष काफी बड़ा, काफी तेज था और सामान्य सुपरनोवा से दो से तीन गुना बड़ा था। अब हम इसके कारण को सटीक तौर पर जान गए हैं।

वॉशिंगटन स्थित नासा के मुख्यालय में स्पित्जर और डब्ल्यूआईएसई कार्यक्रम के वैज्ञानिक बिल डांची का कहना है कि अंतरिक्ष में हमारी पहुंच को बढ़ा देने वाली अनेक वेधशालाओं की मदद से सितारे की मौत के बारे में आज बहुत सटीक जानकारी दे सकते हैं, हालांकि हम ब्रह्मांड में हो रही इन घटनाओं से आज भी पुराने खगोलविदों की तरह आश्चर्यचकित होते हैं। (भाषा)

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