पूरी होगी अमर होने की आस

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010 (10:58 IST)
रजनीश बाजपेई
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अमर होना मानव की गहरी आकांक्षाओं में छिपा है। जीव की जीवेषणा इतनी प्रबल होती है कि स्वयं को बचाने के लिए वह सब कुछ कर सकता है। अब वैज्ञानिक इसी जीवन को बचा सकने की खुशखबरी लेकर सामने आए हैं। हालाँकि भारतीय पुराणों के अनुसार लाखों लोग इस अमरता के लिए प्रयास कर चुके हैं लेकिन शायद किसी को अमरत्व प्रदान करना ब्रह्मा के विधान में शामिल नहीं है। ऐसे में यह आश्चर्य का विषय है कि यह शरीर अमर भी हो सकता है!

पौराणिक कथाओं में अपवादस्वरूप कुछ लोग अमरता को प्राप्त भी हुए हैं। इनमें आचार्य द्रोण का पुत्र अश्वत्थामा सबसे रहस्यमय पात्र है, जिसके बारे में आज तक किंवदंती है कि वह जीवित है। तो क्या हम सभी अश्वत्थामा के क्रम में शामिल होने जा रहे हैं? निश्चित रूप से अमरता का यह विषय कौतुहल जगाता है।

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कैसे होंगे हम अमर!
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि नैनो प्रौद्योगिकी और शरीर की कार्यप्रणाली की बेहतर समझ के माध्यम से आने वाले 20 वर्षों से भी कम समय में मानव को अमर बनाया जा सकता है। दशकों पहले से आने वाले समय की प्रौद्योगिकी की भविष्यवाणी करने के लिए प्रसिद्ध रहे वैज्ञानिक रे कुर्जवेल ने 'द सन' में लिखा है 'मैं और कई अन्य वैज्ञानिकों का अब मानना है कि करीब 20 वर्षों में हमारे पास ऐसे उपाय होंगे जिनसे शरीर अपने सॉफ्टवेयर्स को रिप्रोग्राम कर सकेगा। तब बुढ़ापे पर विराम लग सकेगा और जवानी फिर से लौटाई जा सकेगी।'

ऐसे होगा सपना सच
कुर्जवेल के मुताबिक 'जानवरों में रक्त कणिकाओं के आकार की पनडुब्बियों का परीक्षण किया जा चुका है। इन पनडुब्बियों को नैनोबोट्स नाम दिया गया है। इन नैनोबोट्स का प्रयोग बिना ऑपरेशन किए ट्यूमर और थक्के को दूर करने में किया जाएगा। जल्द ही नैनोबोट्स रक्त कणिकाओं का स्थान ले लेंगी। इसके अलावा रक्त कणिकाओं की तुलना में ये नैनोबोट्स हजार गुणा ज्यादा प्रभावकारी होंगी।'

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इतिहास के उत्कृष्ट काल में
कुर्जवेल दावा करते हैं कि हम मानव इतिहास के उत्कृष्ट काल में जी रहे हैं। कम्प्यूटर प्रौद्योगिकी और जीनों के विषय में हमारी समझ अविश्वसनीय रूप से बढ़ी है। ये जीन्स शरीर के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम हैं। कुर्जवेल ने बताया है कि वस्तुतः नैनोबोट्स द्वारा रक्त कोशिकाओं का स्थान ले लेने से हमारी क्षमताओं में अप्रत्याशित वृद्घि होगी। 'लॉ ऑफ एक्सलरेटिंग रिटर्न' के अनुसार आने वाले 25 वर्षों में उसी खर्चे पर मनुष्य की तकनीकी क्षमता में अरब गुना तक की बढ़ोतरी संभव होगी।

मिनटों में लिख सकेंगे किताब
अगली सदी के मध्य तक हमारे शरीर और मस्तिष्क में सूचनाओं की बैकअप कॉपी बनाना संभव होगा। नैनो प्रौद्योगिकी से हमारी बौद्धिक क्षमताओं में इस कदर बढ़ोतरी संभव होगी कि हम मिनटों में एक किताब लिखने में सक्षम होंगे। हम बिना साँस लिए 15 मिनट में मैराथन दौड़ सकेंगे!

नहीं होंगे कभी बूढ़े
नैनो तकनीक की मदद से अगले दो दशकों में शारीरिक क्रियाविधि के विषय में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में हुए शोधों में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं। शोधकर्ताओं ने उन महत्वपूर्ण जैव-रासायनिक मार्गों (पाथवे) का पता लगा लिया है जो संभवतः मांसपेशियों के बुढ़ापे के लिए जिम्मेदार हैं।

वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि उन्होंने इन मार्गों को परिवर्तित करके मांसपेशियों की घड़ी को उल्टी दिशा में चलाया। परिणामस्वरूप मांसपेशियाँ फिर से जवान हो गईं! शोधकर्ता कह रहे हैं कि इन प्रयोगों के अनुसार यदि सही जैव-रासायनिक संकेतों का प्रयोग किया जाए तो पुरानी मांसपेशी स्टेम सेल द्वारा युवा मांसपेशियों की तरह खुद को रिपेयर करने और फिर से युवा होने की क्षमता विकसित कर सकती हैं।

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इससे पूर्व जानवरों पर हुए शोधों में यह बात पता चल चुकी है कि वयस्क स्टेम सेल में खुद की मरम्मत करने की क्षमता बहुत कुछ उन संकेतों द्वारा नियंत्रित होती है जोकि उन्हें आसपास की मांसपेशियों के ऊतकों से मिलते हैं। बढ़ती उम्र के साथ ये संकेत इस तरह बदलते हैं कि कोशिकाओं की मरम्मत का कार्य ठप हो जाता है। फलस्वरूप कोशिकाएँ बूढ़ी हो जाती हैं और इनके साथ मानव भी बूढ़ा हो जाता है। इन शोधों में यह भी दर्शाया गया कि पुरानी स्टेम सेल में पुनर्जीवित (रिजेनेरेटिव) होने की क्षमताओं को फिर से कैसे विकसित किया जा सकता है।

बदल देंगे पाषाण युगीन शरीर
वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य ने इतनी वैज्ञानिक प्रगति भले ही कर ली लेकिन अभी भी अपने शरीर के बारे में बहुत कम जानता है। इसी का परिणाम है कि हमारे पास तकनीक भले ही आधुनिक काल की हों लेकिन हमारा शरीर पाषाणयुगीन है। इसलिए अब वैज्ञानिकों का प्रयास है कि पाषाण युग से चले आ रहे मानव शरीर के 'प्रोग्राम' को बदला जाए। यह जरूरी नहीं कि इसे अमरत्व की ओर आवश्यक कदम माना जाए पर इससे चिकित्सा विज्ञान में अवश्य सहायता मिलेगी।

कुर्जवेल के मुताबिक '2150 तक हमारे पास शरीर व मस्तिष्क की सूचनाएँ जानने के लिए खासा बैकअप होगा। आप कह सकते हैं कि शरीर की कोई भी क्रियाविधि अनछुई नहीं रह जाएगी। सारी चीजों की जानकारी का परिणाम अमरता होगा।'

खैर, अमरत्व की आस हमें जरूर रोमांचित कर रही है पर क्या पंचमहाभूतों को हमेशा के लिए संगठित कर पाना संभव है? इस प्रश्न का उत्तर देने में अतीत अक्षम रहा है पर शायद ही भविष्य भी ऐसा कर पाए। हाँ, वैज्ञानिक अपने प्रयासों से अधिक दिनों तक जीवन संभव करने के प्रयास में अवश्य कुछ कामयाब हुए हैं। इससे उम्र ही बढ़ पाएगी लेकिन क्या यह कम है? हाँ, यहाँ पर दूसरे पहलू पर भी विचार आवश्यक है कि समय की कमी के साथ-साथ इस सदी की सबसे बड़ी समस्या ऊब है।

जहाँ तकनीक अत्यंत उन्नत है, वहाँ काम की कमी और दोहराव के चलते जीवन उबाऊ हो गया है। फलतः यहाँ आत्महत्या को कानूनी मान्यता दिलाने के आंदोलन शुरू हो चुके हैं।

तकनीक के प्रयोग से बढ़ी उम्र असीमित समय तो उपलब्ध कराएगी लेकिन इसे कैसे व्यतीत किया जाए, क्या इसके विकल्प भी उपलब्ध कराएगी! तब क्या मानव के सामने अनगिनत और अनपेक्षित प्रश्न उत्पन्न नहीं होंगे! बातें विचारणीय अवश्य हैं पर इसका मतलब यह नहीं कि मनुष्य अपनी जिज्ञासा पर विराम लगा दे क्योंकि परिस्थितियों के महाभारत पर ही तो गीता तैयार होती है। बस, हमें तो अपना काम करते रहना है बिल्कुल उसके चरम तक। जीवन भी तो एक कुरुक्षेत्र ही है।

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