हर गाहे-बगाहे प्रलय की भविष्यवाणी करने वाले प्रलयवादियों को उनका प्रलय-प्रेम अब तक छलता ही रहा है। तब भी, निराश होने की ज़रूरत नहीं है। अंतरिक्ष में लाखों ऐसे आवारा पिंड घूम रहे हैं, जो पृथ्वी से टकराने पर प्रलय न सही, कहर तो ढा ही सकते हैं। एक ऐसा ही पिंड आगामी 15-16 फ़रवरी को पृथ्वी के बहुत ही पास से गुज़रने वाला है।
उसे अभी कोई नाम नहीं दिया गया है। खगोल वैज्ञानिक उसे "2012 DA14" कहते हैं। वह कितना लंबा-चौड़ा है, यह भी ठीक-ठीक मालूम नहीं है। अनुमान है कि वह क़रीब 45 मीटर मोटाई वाली किसी चट्टान के समान एक क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉइड) है। पृथ्वी के पास से गुज़रते समय उसकी निकटतम दूरी 20 हज़ार किलोमीटर के आस-पास होगी। उस समय यूरोप और अमेरिका में 15 फ़रवरी 2013 का दिन चल रहा होगा, जबकि भारत में घड़ियाँ 15 और 16 फ़रवरी के बीच वाली मध्यरात्रि में एक बजने में चार मिनट कम दिखा रही होंगी।
"2012 DA14" हालाँकि उस रात हमारे संचार उपग्रहों वाली दूरी से भी 16 हज़ार किलोमीटर नीचे रहते हुए पृथ्वी के काफ़ी निकट आ जाएगा, लेकिन दोनों के बीच कोई टक्कर नहीं होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि क़रीब 350 किलोमाटर की ऊँचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ISS को या निचली कक्षाओं में उड़ रहे अन्य उपग्रहों को भी उससे कोई ख़तरा नहीं है। क्षुद्रग्रह पहले भी कर चुके हैं धरती का विनाश, अगले पन्ने पर...
104 वर्ष पूर्व का तुंगुस्का विस्फोट : स्मरणीय है कि 104 वर्ष पूर्व 1908 में रूसी साइबेरिया के तुंगुस्का नदी-क्षेत्र में एक ऐसा आकाशीय पिंड पृथ्वी से टकराया था, जो 2012 DA14 जितना ही बड़ा था। एक निर्जन जंगली क्षेत्र होने के कारण उस समय हुए धमाके से कुछ भेंड़ें वगैरह मरी थीं, जबकी 1600 वर्ग किलोमीटर के दायरे में पेड़ आदि भूमिसात हो गए थे। लेकिन, उससे कोई क्रेटर (गड्ढा) नहीं बना था, क्योंकि करीब 10 किलोमीटर की ऊँचाई पर विस्फोट हो जाने से वह पिंड असंख्य टुकड़ों में बिखर गया था।
इस घटना के कंप्यूटर अनुकरणों (सिम्युलेशन) से पता चला है कि वह उल्कापिंड यदि 4 घंटे 47 मिनट बाद पृथ्वी पर गिरा होता, तो रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर पर गिरता और तब उससे जान-माल की भारी क्षति हुई होती। अनुमान तो यह भी हैं कि वही उल्कापिंड यदि न्यू यॉर्क पर गिरा होता, तब तो हाहाकार ही मच जाता। 32 लाख लोग मारे जाते और इससे भी कहीं अधिक घायल होते।
किसी उल्का या क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने पर होने वाले नाश-विनाश की व्यापकता उसके आकार-प्रकार के साथ-साथ इस पर भी निर्भर करती है कि वह कितना ठोस या भुरभुरा था, कब और कहाँ गिरा-- किसी घने बसे इलाके में, निर्जन रेगिस्तान में, जंगल-पहाड़ के बीच या सागर-महासागर में। 2012 DA14 के बारे में अनुमान है कि वह एक ठोस चट्टान के समान है, जबकि तुंगुस्का में गिरा पिंड भुरभुरे क़िस्म का था। हमेशा बरकरार है खतरा, पढ़िए अगला पन्ना...
आये दिन आते हैं क्षुद्रग्रह : प्रलयवादी इस क्षुद्रग्रह के बहाने से एक बार फिर पृथ्वी पर सर्वनाश और क़यामत का दिन आ जाने का हौवा खड़ा कर सकते हैं। सच्चाई यह है कि कुछेक मीटर लंबे-चौड़े क्षुद्रग्रह आये दिन पृथ्वी के निकट आते रहते हैं। कई बार उल्काओं के रूप में उस पर गिरते भी हैं, लेकिन वायुमंडल में जल कर भस्म हो जाते हैं। इस तरह की लाखों छोटी-बड़ी चट्टानें गुरू और मंगल ग्रह के बीच रहते हुए सूर्य की परिक्रमा कर रही हैं।
इस परिक्रमा के दौरान कभी-कभी कोई क्षुद्रग्रह पृथ्वी की सौर-परिक्रमा कक्षा के भी निकट आ जाता है या उसे काटता हुआ बहुत पास से गुज़र जाता है। उदाहरण के लिए, बर्लिन के एक खगोलशास्त्री गुस्ताफ़ विट ने 1898 में पहली बार देखा कि एरोस नाम का क्षुद्रग्रह मंगल ग्रह के परिक्रमापथ के नीचे से होता हुआ पृथ्वी के परिक्रमापथ के दो करोड़ 20 लाख किलोमीटर पास तक पहुँच जाता है।
वैज्ञानिक फ़िलहाल सात सौ से अधिक एसे क्षुद्रग्रहों को जानते हैं, जो अपनी सौर-परिक्रमा के दौरान पृथ्वी के परिक्रमापथ को काटते हैं।"एपोफ़िस" (Apophis) एक ऐसा ही दूसरा क्षुद्रग्रह है, जो 2012 DA14 से भी पहले, पृथ्वी के परिक्रमापथ को काटते हुए आगामी 9 जनवरी को पृथ्वी से एक करोड़ 40 लाख किलोमीटर की दूरी पर से गुज़रेगा। वैज्ञानिकों को उससे इस समय तो कोई चिंता नहीं है, किंतु 2029 में वह पृथ्वी से केवल 30 हज़ार किलोमीटर दूर ही रह जाएगा। तब प्रलयवादियों की बाछें और भी खिल जायेंगी। अगली कड़ी में पढ़े एपोफ़िस के बारे में..... क्या एपोफ़िस ही दुनिया का अंत करेगा, क्या इसी के बारे में सभी धर्मग्रंथों में कयामत की भविष्यवाणी की गई है, ऐसे कई प्रश्नों का उत्तर....