धौलीगंगा और ऋषि गंगा, जानिए उत्तराखंड की तबाही से भारत कैसे विनाश की ओर बढ़ रहा

अनिरुद्ध जोशी
मंगलवार, 9 फ़रवरी 2021 (15:16 IST)
उत्तराखंड के चमोली जिले में बिजली उत्पादन की एक परियोजना चल रही है। जिसका नाम ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट हैं यहीं पर धौलीगंगा जल विद्युत परियोजना भी है। यह सरकारी नहीं बल्कि निजी क्षेत्र की परियोजना है। ऋषि गंगा नदी पर यह प्रोजेक्ट चल रहा था। ऋषि गंगा नदी धौली गंगा में मिलती है। ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के जरिए 63520 एमडब्ल्यूएच बिजली बनाने का लक्ष्य था। लेकिन गंगा को रोकने का परिणाम यह हुआ कि एक ग्लेशियर टूटा और सबकुछ तबाह हो गया। ग्लेशियर के टूटने से तपोवन इलाके में धौलीगंगा नदी पर बांध टूट गया।
 
 
हमने सबसे पहले केदारनाथ में विनाश की लीला देखी लेकिन उससे कोई सबक नहीं लिया। फिर हमने चमोली में धौलीगंगा और ऋषिगंगा पर विनाश की लीला देखी और उससे भी कोई सबक नहीं लेंगे ये तय है। ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में विनाश हुआ और बाकी भारत बचा रहेगा। हिमालय से ही भारत है और जिस दिन हिमालय समाप्त हो जाएगा भारत उससे पहले ही समाप्त हो जाएगा, क्योंकि भारत का संपूर्ण मौसम और जलवायु हिमालय, पश्‍चिमी घाट, हिन्द महासागर और पूर्वांचल की पहाड़ियों से संचालित होता है। धीरे-धीरे इस सभी को बर्बाद किया जा रहा है। अब यह सिद्ध हो चुका है कि जलवायु परिवर्तन से ही सिंधुघाटी सभ्यता का विनाश हुआ था, तो यह भ्रम ना पालें कि अब विनाश नहीं होगा।
 
 
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां पर ही स्थिति है देवात्म हिमालय। उत्तराखंड में ही केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री है। यहीं पर शिवालिक की पहाड़ियों पर कई बड़ी नदियों का उद्गम है। यहां की पहाड़ियां सीधे तौर पर कैलाश पर्वत से जुड़ी हुई है और नीचे धरती के गर्भ में कई महत्वपूर्ण प्लेटों को भी प्रभावित करती हैं। केदारनाथ को जहां भगवान शंकर का आराम करने का स्थान माना गया है वहीं बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं। इन आरामगाह की प्रकृति को छेड़ना शिव के तीसरे नेत्र को खोलने जैसा है।
 
 
केदार घाटी में दो पहाड़ हैं- नर और नारायण पर्वत। विष्णु के 24 अवतारों में से एक नर और नारायण ऋषि की यह तपोभूमि है। उनके तप से प्रसन्न होकर केदारनाथ में शिव प्रकट हुए थे। दूसरी ओर बद्रीनाथ धाम है जहां भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। कहते हैं कि सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना नारायण ने की थी। भगवान केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद बद्री क्षेत्र में भगवान नर-नारायण का दर्शन करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मुक्ति भी प्राप्त हो जाती है। इसी आशय को शिवपुराण के कोटि रुद्र संहिता में भी व्यक्त किया गया है।
 
 
पुराणों अनुसार भूकंप, जलप्रलय और सूखे के बाद गंगा लुप्त हो जाएगी और इसी गंगा की कथा के साथ जुड़ी है बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थस्थल की रोचक कहानी। भविष्य में नहीं होंगे बद्रीनाथ के दर्शन, क्योंकि माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे 
 
 
केदारनाथ धाम में एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदार, दूसरी तरफ 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड का पहाड़। न सिर्फ 3 पहाड़ बल्कि 5 नदियों का संगम भी है यहां- मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे है केदारेश्वर धाम। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है।
 
 
गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक ऋषिगंगा। नदी का उद्गम देश की दूसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी नंदा देवी से होता है तथा यह नदी मूलरूप से नंदा देवी पर्वतमाला के चंग बंग ग्लेशियर से निकलती है। ऋषिगंगा नदी प्रमुख रूप से उत्तराखण्ड में गढ़वाल की पहाड़ियों से बहती है। महाभारत के वनपर्व में ऋषिगंगा नदी का वर्णन है, जहां नदी को 'ऋषिकुल्या' नाम से उल्लेखित किया गया है। चार धामों में से एक पवित्र बद्रीनाथ धाम के निकट से उद्गमित होने वाली ऋषिगंगा नदी की धाराएं उत्तराखण्ड की पवित्र धरती पर ही प्रवाहित होती हैं। गंगा से पहले यह अलकनंदा नदी में मिलती है। देवप्रयाग में जब अलकनंदा व भागीरथी गंगा नदी का संगम होता है तो इसके साथ ही ऋषिगंगा नदी भी गंगा में समाहित हो जाती है। यहीं पर इस नदी के पावन सफर का भी अंत हो जाता है। धौली गंगा गंगा नदी की पांच आरंभिक सहायक नदियों में से एक है। यह नदी अलकनंदा नदी से विष्णु प्रयाग में संगम करती है।
 
 
उत्तराखंड के केदारधाम में चोराबाड़ी ग्लेशियर के टूटने से आई तबाही के बाद हमने हाल ही में देखा चमोली ग्लेशियर के टूटने से हुई तबाही को। ग्लेशियरों पर शोध करने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक हिमालय के इस हिस्से में ही एक हज़ार से अधिक ग्लेशियर हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि तापमान बढ़ने की वजह से विशाल हिमखंड टूट गए हैं जिसकी वजह से उनसे भारी मात्रा में पानी निकला है। 
 
 
यदि हिमालय के अन्य ग्लेशियर तापमान के कारण पिघलते रहे तो हमारा भारत समुद्र में समा जाएगा। वैसे भी इसके कारण भारत में मौसम का बदलाव हम स्पष्ट रूप से देख रहे हैं। मौसम कुछ दिनों के लिए आगे खिसक गया है और अब पहले जैसी ना तो गर्मी पड़ती है और ना ठंड साथ ही वर्षा ऋ‍तु का चक्र तो पूर्णत: बदल चुका है। 

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