-मीना भंडारी वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में जहाँ विभिन्न देशों के बीच की दूरियाँ और सीमाएँ सिमटकर रह गई हैं, वहीं विदेशी भाषाओं की विशेषज्ञता रोजगार के बेहतरीन अवसर मुहैया करा रही है। यही वजह है कि आज छात्रों को परंपरागत विषयों से हटकर विदेशी भाषा का अध्ययन ज्यादा लुभा रहा है।
वर्षों से बड़ी संख्या में छात्र विदेशी भाषाओं, विशेषकर फ्रेंच, जर्मन और रूसी भाषा में कुशलता अर्जित कर रहे हैं। आजकल चीन, जापान और इसराइल सहित अनेक देशों के साथ भारत अपने व्यापार संबंधों का विस्तार कर रहा है। ऐसे में इन देशों की भाषाओं का ज्ञान रखने वाले लोगों की बड़ी संख्या में जरूरत महसूस की जा रही है।
गौरतलब है कि फ्रेंच भाषा मौजूदा समय में अँगरेजी के बाद विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा बन गई है। इस भाषा को अँगरेजी के जानकार बेहद सरलता से सीख सकते हैं, क्योंकि यह भाषा अँगरेजी से काफी कुछ मिलती-जुलती है। फ्रेंच भाषा के बाद जर्मन भाषा का क्रम आता है।
जर्मन भाषा को 'अवसरों की भाषा' भी कहा जाता है। जर्मन भाषा जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया व स्विट्जरलैंड आदि देशों में लगभग 10 करोड़ लोगों द्वारा बोली व समझी जाती है। यही वजह है कि जर्मन भाषा सीखने वालों में भारतीयों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है। जबसे जापान का विश्व के अन्य देशों के साथ व्यापार और तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा है, तब से जापानी भाषा के विशेषज्ञों की माँग भी बढ़ी है। इस भाषा के बढ़ते महत्व ने इसे रोजगारपरक भाषा बना दिया है। जो छात्र जापानी भाषा सीखना चाहते हैं, उन्हें अँगरेजी का मूलभूत ज्ञान होना अति आवश्यक है।
भारत व रूस के मैत्रीपूर्ण घनिष्ठ संबंधों के कारण रूसी भाषा के प्रति भारतीयों का लगाव कई दशक पहले से ही है। इसके अतिरिक्त चीन के साथ भारत के बढ़ते व्यापार को देखते हुए चीनी भाषा के क्षेत्र में भी करियर की उजली संभावनाएँ हैं।