अँधेरी सुरंग में ढूँढना है उजाला

डी. सुब्बाराव को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर बनाने की घोषणा पर अनेक तरह की चर्चाएँ संभव है, यहाँ तक कि इसकी अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग क्षेत्र में भी कुछ ऐसा किया जाएगा, जो कि केंद्र में बैठे राजनेताओं को शायद नहीं सुहाएगा।

यह बात मुद्रा बाजार व वित्तीय बाजार में भी कही जा रही थी कि निवृत्त हो रहे गवर्नर डॉ. रेड्डी अपनी सेवा में विस्तार चाहते थे किंतु वित्तमंत्री उनकी सेवा की अवधि को बढ़ाने के पक्ष में नहीं थे।

फिर रिजर्व बैंक की देहरी में कुछ ऐसे वरिष्ठ खड़े हैं, जो गवर्नर के पद की आस लगाए बैठे थे किंतु उन्हें नजरअंदाज करके देहरी के बाहर खड़े डी.सुब्बाराव को गवर्नर बनाने के निर्णय को एक तरह से राजनीतिक निर्णय निरूपित किया जा सकता है।

जब रिजर्व बैंक को स्वायत्तता देने की माँग की जा रही हो तब ऐसे निर्णय की देश व विदेश में चर्चा होना स्वाभाविक है। इन सबका मतलब यह नहीं है कि डी. सुब्बाराव योग्य व्यक्ति नहीं हैं। भारत सरकार के वित्तीय सचिव होने के नाते वे देश की मौद्रिक व वित्तीय समस्याओं से पूरी तरह अवगत हैं।

वित्त व वाणिज्य मंत्रालय के अनुभव उनके काम आएँगे। योजना आयोग में भी वे काम कर चुके हैं- लिहाजा उनकी परिचय पत्रावली काफी पुख्ता एवं पद के बहुत उपयुक्त है। किंतु प्रश्न यह है कि क्या वे वायवी रेड्डी की सख्त नीतियों को एकदम बदल पाएँगे? वैसे उनके साथ काम करने वाले अधिकारी यह मानते हैं कि सुब्बाराव वित्तीय मामलों के अच्छे प्रबंधक हैं, वे एक प्रोफेशनल हैं एवं हर समस्या पर उनकी पहुँच बहुत ही संतुलित रहती है।

विभिन्न क्षेत्र के निपुण लोगों की टीम बनाकर काम करने में वे माहिर हैं। देशहित के लिए अनिवार्य नीति की सकार सुहाती बनाने में वे माहिर हैं। इसलिए संभव है कि रिजर्व बैंक की कुछ सख्त नीतियों में वे ढाँचागत कुछ ऐसे परिवर्तन ला सकते हैं जो बैंकिंग क्षेत्र के हित में हो।

तात्कालिक रूप से वे इससे कुछ अधिक नहीं कर पाएँगे क्योंकि देश के सामने एक नहीं अनेक आर्थिक समस्याएँ मुँहबाएँ खड़ी हैं। इसलिए अक्टूबर माह के अंत में जब देश के छःमाही कामकाज की मौद्रिक समीक्षा रिपोर्ट जारी होगी तब संभव है सुब्बाराव अपनी क्षमता का कुछ प्रदर्शन करना पसंद करें।

आज तो (1) देश के मैक्रोइकोनॉमिक घटकों के कमजोर पड़ने का भय है, (2) आर्थिक परिस्थितियाँ संकट को न्योता दे रही हैं। (3) इससे देश की आर्र्थिक वृद्धि दर (जीडीपी) धीमी पड़ने लगी है और (4) ऐसे में बढ़ती मुद्रास्फीति सभी को भयभीत कर रही है। दूसरी ओर रिजर्व बैंक के गवर्नर की हैसियत से भी सुब्बाराव को देश का बैंकिंग क्षेत्र पूरी तरह से विदेशी बैंकों के लिए खोलना है, देश के कंपनी जगत को बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश करने के बंद दरवाजे खोलना हैं एवं बैंकिंग लाइसेंसिंग नीति जारी करना है।

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