बाजार प्रतिस्पर्धा और उपभोक्ता हित पर नजर रखने वाली गैरसरकारी अनुसंधान एवं परामर्श संस्था कट्स ने कहा है कि आम बजट में आसमान छूती खाद्य उत्पादों की महँगाई को थामने के लिए कुछ ठोस उपाय नहीं किया गया।
कट्स ने कृषि बाजार में उत्पादक और उपभोक्ता के बीच बिचौलियों को सीमित करने का सुझाव दिया है। कट्स के एक बयान में कहा गया कि अपनी उपज को सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचाने वाले किसानों और किसानों से माल लेकर उसे सस्ते में उपभोक्ताओं तक पहुँचाने वाली खुदरा फर्मों को प्रोत्साहन देने के उपाय बजट में किए जा सकते थे।
उल्लेखनीय है कि खाद्य उत्पादों की महँगाई दर फिलहाल 17.87 प्रतिशत पर बनी हुई है। दिसंबर 2009 में तो एक समय यह 20 प्रतिशत तक पहुँच गई थी। सरकार को उम्मीद है कि रबी मौसम की उपज बाजार में आने के बाद कीमतें नीचे आ जाएँगी।
कट्स ने कहा है कि बजट बाद पेट्रोल, डीजल मूल्य वृद्धि का असर भी खाद्य पदार्थों की महँगाई पर पड़ेगा और इसका भी सबसे ज्यादा असर गरीब पर ही होगा, क्योंकि वह सबसे ज्यादा खर्च खाने पर ही करता है।
संगठन की राय में वित्तमंत्री को ऐसे नए तरीके खोजने चाहिए थे, जिनका उपभोक्ताओं पर कम प्रतिकूल और राजकोषीय स्थिति पर अधिक अनुकूल प्रभाव पड़ता।
कट्स ने कहा है कि बजट में आयकर दायरे में आने वाले वर्ग को काफी राहत मिल गई, लेकिन इससे नीचे रहने वाले तबके को कोई लाभ नहीं दिया जा सका। केवल विकास योजना और ढाँचागत क्षेत्र को उन्नत बनाने के जरिए ही उसे लाभ पहुँचाने की कोशिश की गई है। (भाषा)