सरकारी खर्चों की जाँच करने वाली संवैधानिक संस्था नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी से कहा है कि उसे लेखापरीक्षा के लिए समय पर सरकारी रिकॉर्ड और दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है।
मुखर्जी यहाँ महालेखाकारों के 25वें सम्मेलन के समापन सत्र के मुख्य अतिथि थे। वित्तमंत्री ने बाद में सीएजी की शिकायतों के बारे में कहा हम कैग संशोधन विधेयक पर विचार करते समय इन शिकायतों पर ध्यान देंगे, सरकार कैग के साथ निकट सहयोग रखते हुए काम करना चाहती है।
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक विनोद राय ने अपनी संस्था के सामने आ रही समस्याओं को बेलाग तरीके से रखते हुए पेट्रोलियम और दूरसंचार क्षेत्र की आडिट में आ रही दिक्कतों का विशेष रूप से उल्लेख किया। जहाँ अब निजी कंपनियों का प्रभुत्व बढ़ रहा है।
राय ने कहा स्थिति यहाँ तक बिगड़ने लगी है कि सरकार के चाहने के बावजूद नई तेल खोज लाइसेंसिंग नीति (नेल्प) में एक ठेकेदार द्वारा किए गए पूँजीगत व्यय के दस्तावेज और रिकॉर्ड हासिल करने में 18 महीने का समय लग गया।
राय ने कहा दूरसंचार क्षेत्र में निजी सेवा प्रदाताओं के रिकॉर्ड उन्हें अभी तक उपलब्ध नहीं कराए गए, जबकि इनकी लेखापरीक्षा के लिए स्वयं सरकार की तरफ से आग्रह किया गया।
कैग ने इसे गंभीर चिंता का विषय बताते हुए कहा कि जहाँ एक तरफ सरकार ने सूचना के अधिकार अधिनियम में तय अवधि के भीतर सरकार की तरफ से उत्तर नहीं दिए जाने अथवा रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराने पर जुर्माने का प्रावधान किया है, वहीं दूसरी तरफ कैग लेखापरीक्षा के लिए रिकॉर्ड उपलब्ध कराने की कोई समयसीमा भी नहीं रखी गई है न ही कोई दंड का प्रावधान है।
राय ने कहा संविधान निर्माताओं ने लेखापरीक्षा की यह व्यवस्था जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए की थी। ऐसे में कई मंत्रालयों की अपने खर्चों को कैग दायरे से बाहर रखने की बढ़ती प्रवृत्ति चिंता की बात है।
उन्होंने विशेष तौर पर पेट्रोलियम एवं दूरसंचार क्षेत्र का जिक्र करते हुए कहा कि भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई), पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (पीएनजीआरबी) जैसी संस्थाओं को उनके अलग कानून बनाकर पूरी तरह या फिर आंशिक तौर पर कैग लेखापरीक्षा से अलग रखा गया है। मानव संसाधन मंत्रालय भी कुछ ऐसी ही नीति पर चल रहा है।
राय ने कहा कि ऐसे समय जब सरकार की भूमिका तेजी से बदल रही है। विभिन्न गतिविधियों में निजी और गैरसरकारी संगठनों की भागीदारी बढ़ रही है, इन पर नजर रखने के लिए नियामक बनाए गए हैं। इन सब के बावजूद आज इन नियामकों की भूमिका खुद संदेह के घेरे में आ गई है।
उन्होंने साफ-साफ कहा कि इन नियामकों के खर्चे बड़े नहीं हों, लेकिन जो फैसले ये लेते हैं उनका असर काफी व्यापक होता है। इन संगठनों को कैग लेखापरीक्षा से अलग रखना संसदीय निगरानी को कमजोर करेगा। ये मुद्दे समय-समय पर संसद और लोक लेखा समिति की बैठकों में भी उठते रहे हैं।
राय ने कैग कानून में जल्द सुधार लाने पर जोर देते हुए कहा कि यदि हम उचित समय पर निर्णय नहीं लेंगे तो ऐसी स्थिति में पहुँच सकते हैं जहाँ शुरुआत में सुधारात्मक कदमों का अभाव बाद में कोष प्रबंधन में गंभीर खामियाँ पैदा कर सकता है।
महालेखाकारों के इस सम्मेलन की शुरुआत में ही कैग प्रमुख ने कहा था कि कैग कानून 1971 में बना था, तब से परिस्थितियों में काफी बदलाव आया है, इसलिए इसमें उचित संशोधन होना चाहिए। सरकार को नए कानून का मसौदा भेजा गया है, इस पर सरकार की प्रतिक्रिया का उन्हें इंतजार है। (भाषा)