सबसे बड़ी गारमेंट निर्यातक कंपनी क्यों बिकी?

रविवार, 26 अगस्त 2007 (19:32 IST)
-विट्ठल नागर

ब्लैक स्टोन नामक भीमकाय कंपनी ने गोकलदास एक्सपोर्ट्स का अधिग्रहण कर लिया है। रुपए की मजबूती का असर देश के रेडीमेड उद्योग पर पड़ा है। मुनाफा भी घटा है। नए अधिग्रहण से विश्व बाजार में गलाकाट प्रतियोगिता का सामना किया जा सकेगा।

भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी कंपनियों के अधिग्रहण की बाढ़ कुछ थमते ही विदेशी पीई (प्राइवेट इक्विटी) फंड कंपनियों ने भारतीय कंपनियों का अधिग्रहण शुरू कर दिया है। ब्लैक स्टोन नामक एक भीमकाय जीई कंपनी ने भारत की सबसे बड़ी एवं प्रतिष्ठित रेडीमेड गारमेंट निर्यातक कंपनी गोकलदास एक्सपोर्ट्स का अधिग्रहण कर उसकी 50 प्रतिशत अंशधारिता खरीद ली है। कुछ माह पूर्व इसी ब्लैक स्टोन ने 'इंटलनेट' का अधिग्रहण किया है और अब लगता है कि पाटनी कम्प्यूटर्स खरीदने में भी अधिक समय नहीं लगेगा।

गोकलदास एक्सपोर्ट्स की इकाइयों का संजाल कर्नाटक, आंध्रप्रदेश व तमिलनाडु में फैला है। इसके सामने परेशानी दो हैं, विदेशी बाजार में प्रतिस्पर्धी बनने के लिए निवेश एवं उत्पादकता को बढ़ाना तथा लगातार बढ़ती निर्यात लागत। इसी वजह से उसे बांग्लादेश, श्रीलंका एवं पाकिस्तान से भी सस्ते में माल निर्यात करना नहीं पोसा रहा है। जिस देश में कपास का रकबा दुनिया में सबसे अधिक हो एवं जो रुई का निर्यात खूब करता हो, उस देश की कपड़ा मिलों को अगर पाकिस्तान, बांग्लादेश या ताईवान से सस्ते सूत का आयात करने की मजबूरी आ पड़े (निर्यात की लागत घटाने के लिए) तो उस देश की व्यवस्था को क्या कहा जाए?

जब तक डॉलर के मुकाबले रुपए की विनिमय दर 44-45 रु. थी, तब तक तो देश के गारमेंट निर्यातक निर्यात व्यापार में प्रतिस्पर्धी बने हुए थे, किंतु ज्यों ही यह दर 40-41 रु. हो गई, वैसे ही उनकी निर्यात क्षमता घट गई एवं अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले गारमेंट में 10 प्रश से अधिक की कमी आ गई। इसी कमी की वजह से गोकलदास एक्सपोर्ट्स को विदेशी कंपनी के हाथों बेचना पड़ा है। कंपनी के प्रवर्तक बंधुओं सर्वश्री मदनलाल हिंदुजा, राजेन्द्र हिंदुजा एवं दिनेश हिंदुजा (एनआरआई हिंदुजा बंधुओं से उनका संबंध नहीं है) ने अपनी कुल 71 प्रश अंशधारिता में से 50 प्रश ब्लैक स्टोन को बेच दी है। अब सेबी के नियमों के तहत ब्लैक स्टोन को बाजार से 20 प्रश अंशों को खरीदने का ऑफर निवेशकों को देना होगा। यह काम पूरा होते ही महज कुल 682 करोड़ रु. में गोकलदास एक्सपोर्ट्स उनकी हो जाएगी।

ब्लैक स्टोन ने इस खरीददारी को 'भागीदारी' की संज्ञा दी है। उनका कहना है कि अधिक निवेश से वे गोकलदास एक्सपोर्ट्स की उत्पादकता इतनी ऊँचाई तक पहुँचा देंगे कि विश्व बाजार में गारमेंट निर्यात में मची गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना वे सरलता से कर सकेंगे। उन्हें निर्यात क्षेत्र का खासा अनुभव है एवं विदेशी ग्राहकों के साथ संबंध भी पुख्ता हैं। सामान्य तौर पर पीई कंपनियों का मुख्य उद्देश्य निवेश से लाभ कमाना होता है एवं किसी कंपनी को पकड़कर बैठ जाना उन्हें नहीं सुहाता। इसलिए संभव है कि जब गोकलदास एक्सपोर्ट्स अच्छे लाभ में आ जाए एवं उसके शेयरों के भाव तेजतर्रार बन जाए तो वे भी अपना निवेश पुनः हिंदुजा बंधुओं को ऊँचे भाव पर बेच देंगे।

जब तक अमेरिका व योरपीय देशों ने गारमेंट निर्यात का कोटा प्रणाली लागू की थी, तब तक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा नगण्य थी, क्योंकि देश को आवंटित कोटे के अनुसार ही गारमेंट निर्यात करना होता था। किंतु वर्ष 2005 में कोटा प्रणाली समाप्त होते ही प्रतिस्पर्धा घातक बन गई। भारतीय कंपनियाँ अमेरिकी बाजार पर ही अधिक निर्भर रहीं एवं योरपीय बाजार में वे अपनी उपस्थिति कोटा प्रणाली के खत्म होने के बाद भी नहीं बढ़ा सकीं। ऐसे में डॉलर के मुकाबले में रुपए के अधिक मजबूत होने से निर्यात में उनके लाभ का मार्जिन दहाई से घटकर इकाई के अंक पर आ गया। ब्लैक स्टोन का कहना है कि वह उन्हीं कंपनियों में निवेश बढ़ाएगी जिसकी नब्ज को वह पहचान सकती है।

उसके पास टेक्सटाइल वित्तीय व प्रबंधन क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं और उनके माध्यम से गोकलदास एक्सपोर्ट्स के हालत ही नहीं सुधारेंगे, वरन देश के गारमेंट्स निर्यात में आई कमी को भी धीरे-धीरे पाट दिया जाएगा। संभव है गोकलदास एक्सपोर्ट्स के पूर्व प्रवर्तक भी कहीं न कहीं नए क्षेत्र में निवेश करेंगे जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था लाभान्वित होगी। ब्लैक स्टोन ने टाटा टेली व एचडीएफसी में तथा अन्य पीई कंपनियों ने आईसीआईसीआई, ऑटो, फार्मा व आईटी क्षेत्र की कंपनियों में निवेश किया है। इस निवेश का मतलब यह नहीं है कि वे उनका अधिग्रहण करेंगी। गोकलदास एक्पोर्ट्स के अधिग्रहण से यह जाहिर होता है कि देश के कपड़ा निर्यातक उद्योग की हालत कितनी अधिक दयनीय है एवं सरकार को चाहिए कि वह इस उद्योग को पटरी पर लाए एवं अधिग्रहण से सबक ले।

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