रोजगार के अवसर बढ़ाने की चुनौती ज्यादा बड़ी है : डॉ. स्वरुप

शनिवार, 14 अप्रैल 2018 (13:42 IST)
21 अप्रैल को ऑनलाइन डिस्प्यूट रेजॉल्यूसन (ओडीआर) मैकेनिज़्म पर सम्मलेन
 
 
- रविकांत द्विवेदी
 
हमारे देश में पिछले 15-20 सालों से विकास की गति काफी तेज़ रही जिसकी बदौलत इंफ्रास्ट्रक्चर का बहुत विकास हुआ। इससे व्यापार और व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा काफी तेज़ हुई। देश में नई देशी-विदेशी तकनीक, नयी कंपनियों और आवश्यकतानुसार कुशल श्रम शक्ति का खूब आगमन हुआ। व्यवसाय तो बढ़ा लेकिन नई परिस्थितियों में विवाद भी काफी बढ़ते चले गए। कभी पैसे को लेकर तो कभी तकनीक को लेकर। 
 
विवाद साल दर साल खींचता गया और निर्माण उद्योग का पैसा फंसता गया। फिलहाल तकरीबन तीन लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा पैसा आज भी विवादों में फंसा हुआ है। इसमें से करीब एक लाख करोड़ रुपये विभिन्न सरकारी विभागों और लोक उपक्रमों के पास अटके हुए हैं।
 
इसी को ध्यान में रखकर इंजीनियरिंग कौंसिल ऑफ़ इंडिया (ईसीआई), कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री आर्बिट्रेशन कॉउन्सिल (सीआईएसी) और अखिल भारतीय 
तकनीकी शिक्षा परिषद् (एआईसीटीई) के साथ मिलकर 21 अप्रैल को दिल्ली में ऑनलाइन डिस्प्यूट रेजॉल्यूसन (ओडीआर) मैकेनिज़्म पर एक राष्ट्रीय 
सम्मलेन का आयोजन कर रही है। जिसमें उपराष्ट्रपति श्री वैंकैया नायडू भी शिरकत करेंगे।
 
एक खास बातचीत में सीआईएसी के मेंबर सेक्रेटरी डॉ. पीआर स्वरुप ने बताया कि इस समय कंस्ट्रक्शन उद्योग में तकरीबन 80,000 आर्बिट्रेटर्स विभिन्न कंपनियों के मामलों को सुलझाने में लगे हुए हैं, इनमें से अधिकांश लोग या तो अपने नियमित सेवा से रिटायर्ड बुजुर्ग हैं। ये कंप्यूटर या ऑनलाइन मैकेनिज़्म से या तो अपरिचित हैं या इनकी इसमें कम रूचि है। इसलिए ऑनलाइन डिस्प्यूट रेजॉल्यूसन (ओडीआर) शुरू होने पर इन्हें हज़ारों की संख्या में आर्बिट्रेशन अस्सिटेंट्स की ज़रुरत होगी। डॉ. स्वरुप ने बताया कि आईटी की समझ रखने वाले इंजीनियरिंग स्नातकों के लिए ये सुनहरा अवसर होगा। उन्होंने बताया कि अगर सही समय पर इस क्षेत्र में प्रवेश कर लिया तो कुछ वर्षों में ये स्वतंत्र आर्बिट्रेटर्स के तौर पर काम कर सकेंगे और सही मायने में यही इस सम्मलेन का उद्देश्य भी है।
 
इस राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन में संयुक्त राष्ट्र संघ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग (यूएनसीआईटीआरएएल) के एशिया पैसेफिक क्षेत्रीय कार्यालय, केंद्रीय लॉ एंड जस्टिस मंत्रालय के लॉ अफेयर्स डिपार्टमेंट और कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मंत्रालय, भारत सरकार के कॉमर्स डिपार्टमेंट की भी हिस्सेदारी है। 
 
एक रिसर्च के मुताबिक विवादों में फंसे इन पैसों की वजह से ठेकेदार और डेवेलपर्स बैंकों का पैसा देने में असमर्थ हैं, जिससे बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है। बैंकों और कंपनियों के बैलेंस शीट पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है और अंत में प्रोजेक्ट्स रूक जाते हैं। ये मामले सालों पुराने हैं। सालों से इस पैसे का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। इससे न केवल इंडस्ट्री बल्कि देश की विकास दर भी प्रभावित हो रही है। रोज़गार के अवसर बढ़ाने की चुनौती तो है ही।  
 
केंद्रीय लॉ एंड जस्टिस मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अभी देश भर के विभिन्न अदालतों में आर्थिक विवाद के करीब तीन करोड़ से ज़्यादा मामले अटके पड़े हैं। इनमें से 46 प्रतिशत यानि एक करोड़ चालीस लाख से ज़्यादा मामले सरकारी विभागों और लोक उपक्रमों से जुड़े हैं। इसीलिए केंद्रीय लॉ एंड जस्टिस मंत्रालय के लॉ अफेयर्स डिपार्टमेंट ने भारत सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों एवं लोक उपक्रमों (पीएसयूज़) को अपने आर्थिक मतभेद सुलझाने के लिए कोर्ट न जाने और विवादों को ऑनलाइन डिस्प्यूट रेजॉल्यूसन (ओडीआर) के ज़रिये सुलझाने की सलाह दी है। इससे समय और धन की बचत होगी। 

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