परमाणु ऊर्जा बेहतर विकल्प

सोमवार, 12 नवंबर 2007 (13:26 IST)
देश के कुछ क्षेत्रों में बिजली की कमी 25 फीसद तक है इससे आर्थिक वृद्धि में बाधा पड़ रही है। इस संकट से निपटने में परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देना सबसे अच्छा विकल्प है।

उद्योग एवं वाणिज्य संगठन पीएचडी चैंबर का कहना है कि देश के सकल घरेलू विकास.जीडीपी वृद्धि दर को बनाए रखने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में लगभग 10 फीसदी की दर से विकास होना जरूरी है। पीएचडी चैंबर के अध्यक्ष संजय भाटिया ने एक बयान में कहा कि ऐसी हालत में परमाणु ऊर्जा का विकल्प इस्तेमाल करना बेहतर कदम है।

यह न केवल सस्ती है वरन पर्यावरण के अनुकूल भी है। भाटिया ने कहा कि देश में औसत एवं अत्यधिक माँग के समय क्रमशः 10 एवं 13 फीसदी बिजली की कमी है। अत्यधिक माँग वाले समय में कुछ क्षेत्रों में यह कमी 25 फीसदी तक है। बिजली की इस कमी से आर्थिक वृद्धि दर को को बनाए रखने में बाधक है।

पीएचडी चैंबर का कहना है कि परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल का लाभ यह है कि यह बिजली की कमी को पूरा करने में प्रभावशाली योगदान दे सकती है। देश में पेट्रोलियम और कच्चे तेल के आयात में कुल निर्यात आय का एक तिहाई खर्च हो जाता है। इसकी वजह से कई जरूरी वस्तुओं की खरीद में कमी करनी पड़ती है। भारत का कोयला भंडार कुछ दशकों में खत्म हो जाने की उम्मीद है। सूर्य और हवा जैसे पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा स्रोतों में क्षमता तो अपार है लेकिन इनसे बड़े पैमाने पर ऊर्जा सृजन की तकनीक विकसित नहीं हो पाई है।

भाटिया का कहना है कि इन परिस्थितियों में भारत के लिए आवश्यक है कि वह ऊर्जा के ऐसे विकल्पों के बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की योजना बनाए जो पर्यावरण को नष्ट न करे। परमाणु ऊर्जा इस मानक पर बिलकुल खरी उतरती है। पीएचडी चैंबर का कहना है कि परमाणु ऊर्जा बिजली बनाने का सस्ता साधन है। अध्ययनों से पता चला है कि लंबे समय में परमाणु ऊर्जा की लागत कोयले के मुकाबले 10 गुना कम होगी। इसके इस्तेमाल से वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के स्तर में भी कमी आएगी।

पाँच सालों में 497 अरब डॉलर का हो जाएगा पेट्रोलियम निर्यात
कच्चे तेल की बढ़ती वैश्विक कीमतों के बावजूद अगले पाँच सालों में देश से पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात लगभग 497.01 अरब डॉलर का हो जाएगा। उद्योग एवं वाणिज्य संगठन एसोचैम की सात साल 1999 -2000 से 2006-07 के बीच पेट्रोलियम व्यापार पर जारी अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन सालों में भारत से पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात 73 फीसदी की दर से बढ़ा है। इस दौरान पेट्रोलियम तेल और ल्युब्रिकेंट का आयात 40.6 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। एसोचैम का कहना है कि अगर यही दर बरकरार रहती है तो अगले छः सालों में तेल निर्यात का मूल्य इसके आयात के पार चला जाएगा।

वास्तव में अगर चालू वित्त वर्ष की ही बात की जाए तो अप्रैल में जहाँ पेट्रोलियम आयात 11.4 फीसदी की दर से बढ़ा वहीं निर्यात की वृद्धि 89 प्रतिशत की रही है। एसोचैम के अध्यक्ष वेणुगोपाल धूत का कहना है कि हालाँकि देश की ऊर्जा संबंधी जरूरतें बढ़ रही हैं। बावजूद इसके सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की रिफाइनरियों द्वारा क्षमता विस्तार से पेट्रोलियम पदार्थों के निर्यात की वर्तमान दर बनाए रखने में मदद मिलेगी।
पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात जहाँ 1999-2000 में 0.03 अरब डॉलर का था वहीं यह वित्त वर्ष 2006-07 तक 96.5 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़कर 18.53 अरब हो गया।

दूसरी ओर इसी दौरान पेट्रोलियम आयात 12.6 अरब डॉलर से 32.7 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़कर 57 अरब डॉलर रहा। धूत का कहना है कि पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए वित्त वर्ष 2012-13 तक इसके 497 अरब डॉलर तक पहुँच जाने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2006-07 के दौरान पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात इसके पहले के वित्त वर्ष के 11.63 अरब डॉलर से 22.77 फीसदी बढ़कर 18.53 अरब डॉलर का हो गया।

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