ग्रेड भी हाई फिर भी हम इतने पीछे क्यों?

देवव्रत वाजपेयी

मंगलवार, 23 जून 2015 (13:23 IST)
एक समय था जब 60 प्रतिशत अंक प्राप्त करने का मतलब था कि आप होशियार हैं और अगर कहीं आपने 70-72 प्रतिशत अंक प्राप्त कर सीनियर सेकेंडरी की परीक्षा उत्तीर्ण की है तो समझो कि आप बेहद होशियार हैं। गली-मोहल्ले में बस आपके चर्चे होने लगते थे।    
लेकिन आज का आलम कुछ और है, क्योंकि अगर आपने 100 प्रतिशत से नीचे अंक प्राप्त किए हैं तो गारंटी नहीं है कि आपको दिल्ली विश्व विद्यालय के कॉलेजों में एडमिशन मिल ही जाएगा। क्योंकि इन कॉलेजों की कट ऑफ इतने ऊपर जाती है कि 100 प्रतिशत से कम अंक लाने वाले छात्रों को मामूली अंतर से इन कॉलेजों में एडमिशन नहीं मिल पाता। लेकिन इसका जिम्मेदार कौन है अंकों का बढ़ता प्रतिशत या कट ऑफ के लिए बढ़ता प्रतिशत। 
 
अर्थशास्त्र में जब हमें वस्तुओं की मुद्रस्फीति की दर को मापना होता है तो हम जीडीपी डिफ्लेटर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन हमें इस तरह के रिजल्ट को मापने के लिए किस तरह के डिफ्लेटर का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि हम जान सकें कि आखिर अंकों का प्रतिशत बोर्ड परीक्षाओं में क्यों बढ़ रहा है। यह सोचने वाली बात है।  
 
एक समय था जब अंग्रेजी में 99 प्रतिशत अंक लाना लगभग असंभव माना जाता था, लेकिन आज ये असंभव नहीं है। सवाल उठता है कि क्या हमारे बच्चे समय के साथ ज्यादा प्रतिभाशाली और ज्यादा प्रतियोगी बन गए हैं।
 
यह सोचकर एक बेहद ही सुखद एहसास होता है कि भारत का बौद्धिक रूप से तेजी से विकास हो रहा है क्योंकि हमारे स्कूल के ग्रेड्स हर बीतते साल के साथ बेहतर होते जा रहे हैं। वहीं कॉलेज की कटऑफ लगातार हर साल बढ़ती जा रही है।
 
विश्व में अगर बात करें तो हमारी विभिन्न विषयों (विज्ञान, प्रोद्योगिकी और नवीनीकरण) में अंतरराष्ट्रीय साख लगातार नीचे गिर रही है। इससे साफ पता चलता है कि परीक्षाओं में ज्यादा अंक लाने का मतलब ये कतई नहीं है कि शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ रही है। 
 
पिछले सालों की अगर बात करें तो हमारे विद्यार्थियों को कॉलेज व स्कूलों में बहुत अच्छे अंक प्राप्त हुए हैं, लेकिन क्या इनके द्वारा प्राप्त किए गए अंकों ने हमारे ज्ञान के स्तर का संवर्धन किया है? 2014 के ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स के मुताबिक 81% पेटेंट एप्लीकेशन चीन, यूएस, जापान, दक्षिण कोरिया, और ईयू से दिए गए।
 
वहीं अमेरिका ने कंप्यूटर प्रणाली में कई पेटेंट प्राप्त किए हैं व वह इस क्षेत्र में अव्वल रहा है। वहीं दक्षिणी कोरिया ने भी कंप्यूटर प्रणाली में बढ़िया उन्नति की है और अमेरिकी के बाद पेटेंट प्राप्त करने के मामले में दूसरे स्थान पर है। 
 
भारत पेटेंट के मामले में कहां है अगले पेज पर...
 

लेकिन भारत कहां है? हम पेटेंट के क्षेत्र में दुनिया में बहुत पीछे हैं। सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात ये है कि जो लोग भारत के बाहर रहते हैं उनके नाम पेटेंन्ट भारत में रह रहे लोगों से ज्यादा हैं। एक बार ये बात फिर से सही साबित होती है कि यहां की शिक्षा ने उच्च गुणवत्ता वाली एजुकेशन के लिए बहुत कम काम किया है। 
अब हमारे स्कूल के बच्चों की भी बात कर लेते हैं। रीडिंग, राइटिंग, साइंस और मैथमैटिक्स की बात करें तो इस पैमाने में हमारे बच्चे विश्व में 62वें नंबर पर हैं। जॉर्डन और अरमेनिया भी हमसे आगे हैं। 
 
अब अपने देश के सबसे प्रसिद्ध संस्थान आईआईटी को ही ले लीजिए। हमारे ये संस्थान विश्व के टॉप 300 कॉलेजों में भी नजर नहीं आते। बावजूद इसके हर साल ग्रेड का गाना जमकर गाया जा रहा है। लेकिन क्या ग्रेड के गाने से भारतीय शिक्षा प्रणाली विश्व में अपना नाम कर पाएगी।
 
सरकार से लेकर शिक्षा के क्षेत्र में पुरजोर रूप से कार्य कर रहे संस्थानों को शिक्षा पैटर्न को बदलने की आवश्यकता है जहां छात्र ग्रेड पर नहीं बल्कि नवीनीकरण पर बल दें और भारत को विश्व में एक नए मुकाम पर ले जाएं।

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