आईसीसी और बीसीसीआई में मीडिया अधिकार के लिए छिड़ी जंग

Webdunia
सोमवार, 14 अक्टूबर 2019 (18:20 IST)
मुंबई। मीडिया अधिकारों को लेकर बीसीसीआई (BCCI) के नए पदाधिकारियों को जल्दी ही आईसीसी (ICC) के साथ जंग का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि उसके प्रस्तावित भावी दौरों के कार्यक्रम (FTP) का भारतीय क्रिकेट बोर्ड के राजस्व पर विपरीत असर पड़ सकता है। नए प्रस्ताव में टी20 विश्व कप हर साल और 50 ओवरों का विश्व कप 3 साल में एक बार कराने की पेशकश है। 
 
इस नई पेशकश के जरिए आईसीसी 2023-2028 की अवधि के लिए वैश्विक मीडिया अधिकार बाजार में प्रवेश करना चाहती है ताकि उसे स्टार स्पोटर्स जैसे संभावित प्रसारकों से राजस्व का मोटा हिस्सा मिल सके। सौरव गांगुली की अध्यक्षता वाले बीसीसीआई के सामने यह बड़ी चुनौती होगी।
 
एफटीपी वह कैलेंडर है, जो आईसीसी और सदस्य देश अलग अलग 5 साल की अवधि के लिए बनाते हैं जिसके तहत द्विपक्षीय और बहुराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेले जाते हैं।
 
2023 के बाद की अवधि के लिए प्रस्तावित मसौदे पर हाल ही में आईसीसी मुख्य कार्यकारियों की बैठक में बात की गई। बीसीसीआई सीईओ राहुल जोहरी ने साफ तौर पर आईसीसी सीईओ मनु साहनी को ईमेल में कहा कि यह फैसला कई कारणों से सही नहीं होगा। बोर्ड के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि चुनाव होने के बाद बोर्ड अब इस मामले में सख्त कदम उठाएगा।
 
उन्होंने कहा, मान लीजिए कि स्टार स्पोटर्स या सोनी का टीवी, रेडियो, डिजिटल प्रसारण अधिकार का 100 करोड़ रुपए का बजट है। इसमें दो अहम पक्ष आईसीसी और बीसीसीआई हैं। बीसीसीआई के पास आईपीएल और द्विपक्षीय श्रृंखलाएं (पाकिस्तान के अलावा) हैं।’
 
उन्होंने कहा, हर साल टी20 विश्व कप कराना रोमांचक है और यदि आईसीसी बाजार में पहले पहुंचता है तो राजस्व का बड़ा हिस्सा उसके खाते में जाएगा।
 
अधिकारी ने कहा, प्रसारक यदि 2023-2028 की अवधि के लिए आईसीसी अधिकार खरीदने पर 60 करोड़ रूपए खर्च करता है तो बीसीसीआई के बाजार में उतरने पर उसके पास 40 करोड़ रूपए ही बचे रहेंगे। इससे बीसीसीआई का राजस्व घट जाएगा।
 
जोहरी ने ईमेल में कहा, बीसीसीआई 2023 के बाद आईसीसी टूर्नामेंटों और प्रस्तावित अतिरिक्त आईसीसी टूर्नामेंटों पर ना तो सहमति जताता है और ना ही पुष्टि करता है।
 
उन्होंने कहा, इसके अलावा बीसीसीआई को द्विपक्षीय श्रृंखलाओं के अपने करार भी पूरे करने है। वहीं इस मसले पर कार्यसमूह (सदस्य बोर्डों के सीईओ) की राय नहीं ली गई तो एकतरफा फैसला अपरिपक्व होगा और इसके यह भी मायने है कि सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
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