क्यों जगाते हैं गीत पुरानी यादें

मंगलवार, 2 सितम्बर 2014 (13:47 IST)
कभी सोचा है कि अपना पसंदीदा गाना सुनकर हम अक्सर पुरानी यादों में क्यों खो जाते हैं? वैज्ञानिकों ने ढूंढ निकाली है इसकी वजह, उन्हें उम्मीद है कि इससे खोई याददाश्त के इलाज में मदद भी मिल सकती है। 
 
संगीत से हमारे मस्तिष्क में कई ऐसी गतिविधियां होती हैं जो हमें पुरानी यादों की ओर खींच ले जाती हैं। लेकिन ये गतिविधियां किस प्रकार की हैं, इसका पता लगाने के लिए अमेरिकी रिसर्चरों ने 21 युवा सदस्यों के दिमाग का एमआरआई टेस्ट किया। स्वेच्छा से इस रिसर्च में शामिल हुए ये युवा टेस्ट के दौरान अलग-अलग तरह का संगीत सुन रहे थे, कोई रॉक, कोई रैप तो कोई पारंपरिक संगीत।
 
उनके कान में छह गानों में से प्रत्येक पांच मिनट के लिए बजाया गया। इनमें से चार अपनी श्रेणी के बड़े मशहूर गाने थे, एक ऐसा गाना था जिसे वे पहचानते नहीं थे और एक जो उन्हें सबसे ज्यादा पसंद हो। वैज्ञानिकों ने हर गीत पर पसंद और नापसंद होने के अनुसार एमआरआई में अलग तरह के पैटर्न पाए। पसंदीदा गीत बजाए जाने पर एक खास तरह का पैटर्न पाया गया।
 
इनमें से कुछ गीत ऐसे थे जो सुनने वाले को पसंद तो आए लेकिन उनके सबसे पसंसीदा गीत नहीं थे, इनके बजाए जाने पर मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में नसों को खुलता हुआ पाया गया। इसे डीफॉल्ट मोड भी कहते हैं। यह मन ही मन किसी सोच पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जरूरी माना जाता है। लेकिन जब पसंदीदा गीत बजाया गया तो दिमाग के उस हिस्से में गतिविधि बढ़ती हुई पाई गई जो याददाश्त और सामाजिक भावनाओं के लिए जिम्मेदार होता है।
 
साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में छपे इस शोध को करने वाले रिसर्चरों का नेतृत्व किया यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैलिफॉर्निया के रॉबिन विल्किंस ने। हालांकि हर व्यक्ति का अपना पसंदीदा गीत अलग था लेकिन रिसर्चरों के मुताबिक इन सभी के पसंदीदा गीत बजने पर मस्तिष्क में एक जैसी गतिविधि पाई गई, जो चौंकाने वाली थी। उन्होंने कहा, 'इससे यह पता चलता है कि किसी का पसंदीदा संगीत बीथोवन का हो या एमिनेम का, वे संगीत सुनकर एक ही तरह पुरानी यादों में खो सकते हैं।'
 
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रिसर्च की मदद से किसी के पसंदीदा संगीत के जरिए उसकी याददाश्त के इलाज की संभावनाएं प्रबल हो सकती हैं। हालांकि किसी बड़े नतीजे पर पहुंचने के लिए अभी इस दिशा में काफी और रिसर्च करनी होगी।
 
- एसएफ/आईबी (एएफपी)
 
सौजन्य से - डॉयचे वेले, जर्मन रेडियो

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