असम सरकार ने राज्य की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए 2 बच्चों वाली नीति लागू करने की घोषणा की है। आलोचक इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ उठाया जानेवाला कदम बता रहे हैं। कुछ दूसरे राज्य भी इसी तरह की नीति पर विचार कर रहे हैं।
क्या भारत एक बार फिर सत्तर के दशक वाले 'हम दो, हमारे दो' की नीति की ओर लौट रहा है? या फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के इशारे पर अल्पसंख्यकों को दबाने के लिए ही बीजेपी-शासित राज्य नए सिरे से यह नारा उछाल रहे हैं? राजनीतिक हलकों में यही सवाल पूछा जा रहा है। अब तक पूर्वोत्तर राज्य असम के अलावा उत्तरप्रदेश सरकारी नौकरी और दूसरी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए 2 बच्चों की नीति लागू करने की बात कह चुके हैं। और यह महज संयोग नहीं है कि इन दोनों राज्यों में बीजेपी ही सत्ता में है। वैसे, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, गुजरात और मध्यप्रदेश समेत कुछ राज्यों में पहले से ही ऐसा नियम लागू है। लेकिन उसे सत्तर के दशक की तरह अनिवार्य नहीं किया गया है।
इससे पहले इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते 'हम दो, हमारे दो' का नारा काफी प्रचलित हुआ था। तत्कालीन केंद्र सरकार ने पहली बार परिवार नियोजन की दिशा में बेहद सख्त कदम उठाए थे। उनमें जबरदस्ती नसबंदी कराना भी शामिल था। उसकी पूरे देश में खासी आलोचना हुई थी। मोटे आंकड़ों के मुताबिक, आपातकाल के 16-17 महीनों के दौरान कम से कम 60 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी और इस वजह से कम कम 2 हजार लोगों की मौत भी हो गई थी। अब भारत के पड़ोसी चीन में जहां आबादी बढ़ाने के लिए ज्यादा बच्चे पैदा करने को प्रोत्साहन दिया जा रहा है वहीं भारत के इन राज्यों में 2 बच्चों की नीति लागू करने की आलोचना की जा रही है।
असम में जनसंख्या नियंत्रण पर जोर
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि राज्य में सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए 2 बच्चों वाला नियम अनिवार्य किया जाएगा। यानी जिनको 2 से ज्यादा बच्चे होंगे उनको सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा। हालांकि अनुसूचित जाति, जनजाति और चाय बागान के आदिवासी मजदूरों को इससे छूट दी गई है। लेकिन इस फैसले पर विवाद हो रहा है। माना जा रहा है कि उनके निशाने पर राज्य के अल्पसंख्यक हैं। इससे पहले मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यकों से जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन उपायों को अपनाने की सलाह दी थी।
इससे पहले मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने 2 साल पहले फैसला किया था कि जिसके 2 से ज्यादा बच्चे हैं उनको एक जनवरी, 2021 के बाद सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने हाल में गरीबी कम करने के मकसद से जनसंख्या नियंत्रण के लिए अल्पसंख्यक समुदाय से उचित परिवार नियोजन नीति अपनाने का अनुरोध किया था। मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार के 30 दिन पूरे होने के मौके पर कहा था कि समुदाय में गरीबी कम करने में मदद के लिए सभी पक्षकारों को आगे आना चाहिए और सरकार का समर्थन करना चाहिए। गरीबी की वजह जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि है। उन्होंने साफ किया है कि सरकार 2 बच्चों की नीति को चरणबद्ध तरीके से लागू करेगी और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ लेने में इसे लागू किया जाएगा।
यूपी भी बना रहा है 2 बच्चों वाली नीति
असम के बाद अब उत्तरप्रदेश भी 2 बच्चों वाली नीति पर आगे बढ़ रहा है। राज्य विधि आयोग प्रस्तावित कानून का मसौदा बनाने में जुटा है। इसके तहत 2 से अधिक बच्चे होने पर नागरिकों को सरकारी योजनाओं से वंचित होना पड़ सकता है। आयोग के अध्यक्ष आदित्य नाथ मित्तल का कहना है कि कि 2 महीने के अंदर मसौदा तैयार कर लिया जाएगा। 2 से ज्यादा बच्चों वाले दंपति को सरकारी योजनाओं की सुविधा से वंचित होना पड़ेगा। उनका कहना था कि प्रस्तावित नीति 1976 की जनसंख्या नीति से अलग होगी यानी यह अनिवार्य नहीं होगी।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) 2015-16 के अनुसार, राज्य में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2।74 शिशु प्रति महिला थी। यह राष्ट्रीय दर 2।2 शिशु प्रति महिला से अधिक थी और बिहार के बाद दूसरे स्थान पर थी।
विपक्ष कर रहा है असम सरकार की आलोचना
असम सरकार की 2 बच्चों वाली नीति और जनसंख्या नियंत्रण के लिए दी जाने वाली सलाह के लिए विपक्षी दलों और अल्पसंख्यक संगठनों ने मुख्यमंत्री की आलोचना की है।प्रदेश कांग्रेस ने दावा किया कि असम में जनसंख्या विस्फोट पर शर्मा की टिप्पणी, निश्चित तौर पर गलत सूचना पर आधारित व भ्रामक है। दूसरी ओर, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने भी जनसंख्या विस्फोट के लिए अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले मुख्यमंत्री के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। एआईयूडीएफ के प्रवक्ता और विधायक अमीनुल इस्लाम कहते हैं कि असम में जनसंख्या वृद्धि राष्ट्रीय औसत और कई अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है।
सरकार के फैसले की चौतरफा आलोचना के बीच मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने अपने बयान का बचाव करते हुए कहा है कि यह गरीबी उन्मूलन के लिए जरूरी है और इसके पीछे कोई सांप्रदायिक मकसद नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता डीके भुइयां कहते हैं कि इस मामले में हम पड़ोसी चीन से सीख सकते हैं। चीन ने हाल अपने नागरिकों को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी है। वहां जनसंख्या के आंकड़ों से पता चलता है कि उसकी जनसंख्या बीते कई दशकों में सबसे कम रफ्तार से बढ़ी है। इससे पहले 2016 में चीन सरकार ने अपने दशकों पुरानी वन-चाइल्ड पॉलिसी को भी खत्म कर दिया था और लोगों को 2 बच्चे पैदा करने की अनुमति दे दी थी।
असम में मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा भले अल्पसंख्यक समुदाय में जनसंख्या विस्फोट का दावा करते हुए लोगों को परिवार नियोजन की नीति अपनाने की सलाह दे रहे हों, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट अलग तस्वीर पेश करती है। इसके मुताबिक वर्ष 2005-06 के मुकाबले वर्ष 2019-20 में राज्य के अल्पसंख्यकों में प्रजनन दर में नाटकीय ढंग से कमी देखने को मिली है। असम में इस समुदाय में प्रजनन दर 2.4 फीसदी है जबकि वर्ष 2005-06 में यह 3.6 फीसदी थी। इसका मतलब है असम में जहां पहले 1 मुस्लिम महिला औसतन 3.6 बच्चों को जन्म दे रही थी, अब वह संख्या घटकर 2.4 पर आ गई है। दूसरी ओर इस दौरान हिंदुओं की प्रजनन दर में 0.4 फीसदी की कमी आई है।