अफीम पर प्रतिबंध के बाद परेशान हैं अफगान किसान

DW
शनिवार, 19 अक्टूबर 2024 (09:18 IST)
-एए/वीके (एएफपी)
 
अफगानिस्तान में पोस्त की खेती पर प्रतिबंध के कारण किसानों को गंभीर वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। ड्रग्स और अपराध पर यूएन कार्यालय के अनुसार प्रतिबंध के कारण पिछले साल किसानों को 1 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। असदुल्लाह 20 सालों तक दक्षिणी अफगानिस्तान में अफीम की खेती करने वाले एक समृद्ध किसान थे, जब तक कि तालिबान अधिकारियों ने अचानक इस फसल पर प्रतिबंध लागू नहीं कर दिया।
 
हेलमंद प्रांत के 65 साल के असदुल्लाह हर सीजन में 4 एकड़ जमीन पर फसल से लगभग 3,500 से लेकर 7,000 डॉलर कमाते थे। हालांकि तालिबान सरकार ने पोस्त की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया जिसका इस्तेमाल अफीम और हेरोइन बनाने के लिए किया जाता है। प्रतिबंध से असदुल्लाह को भारी निराशा का सामना करना पड़ रहा है।
 
तालिबान द्वारा अन्य फसलों की खेती करने के लिए मजबूर किए जाने के कारण अब उन्हें अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, 'सब कुछ खत्म हो गया है। मेरे पास रात के खाने के लिए कुछ नहीं है।' उनका कहना है कि अब वे मुश्किल से 25,000 अफगानी कमा पाते हैं।
 
अफीम की खेती पर रोक से किसान नाराज
 
तोरमा गांव में अपने पड़ोसियों की तरह असदुल्लाह ने मक्के की फसल लगाई लेकिन वे सफल नहीं रहे। असदुल्लाह कहते हैं, 'हमारे पास खाद के लिए पैसे नहीं थे।' उन्होंने आगे कहा कि अधिकांश लोगों ने अधिक मोटी मूंग की फसल की ओर रुख किया जिसे उगाना आसान है लेकिन इससे अफीम की तुलना में बहुत कम फायदा मिलता है।
 
40 साल के लाला खान को भरोसा हो गया कि अधिकारी पोस्त की खेती पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रतिबद्ध हैं तो उन्होंने कपास की खेती शुरू कर दी। हालांकि उसके बाद उनकी सालाना आय गिर गई।
 
पोस्त की खेती पर रोक
 
अप्रैल 2022 में तालिबान के सर्वोच्च नेता ने आदेश जारी कर पोस्त की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया था। इससे पहले अफगानिस्तान दुनिया में अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक था। संयुक्त राष्ट्र मादक द्रव्यों और अपराध संबंधी कार्यालय यूएनओडीसी के आंकड़ों के मुताबिक अफगानिस्तान में अफीम के उत्पादन में पिछले साल 95 प्रतिशत की गिरावट आई है।
 
काबुल में तालिबान अधिकारियों के इस कदम की अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सराहना की थी। लेकिन मुनाफे वाली फसल पर निर्भर रहने वाले अफगान किसानों ने अफीम के उत्पादन पर कार्रवाई के नतीजतन पिछले साल अपनी आय का 92 प्रतिशत खो दिया।
 
लाला खान कहते हैं, 'पहले हम हर 3 दिन में 1 बार मांस खाते थे, अब यह महीने में 1 बार होता है।' उन्होंने आगे कहा कि इस फसल की खेती पर प्रतिबंध के कारण आय के नुकसान के मुआवजे के रूप में उन्हें केवल 'आटा और उर्वरक की 1-1 बोरी' दी गई, जो उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं है। उन्होंने सवाल किया, 'हम इसमें क्या कर सकते हैं?'
 
कपास, मक्का और सेम उगा रहे किसान
 
अफीम की खेती करने वाले एक पूर्व किसान अहसानुल्लाह अपनी मौजूदा स्थिति पर गुस्सा बमुश्किल छिपा पाते हैं। वे कहते हैं, 'हम अपनी रोजमर्रा की जरूरत की सारी चीजें उधार पर खरीदते हैं और जब हम फसल काटते हैं तो हम अपना कर्ज चुका देते हैं और हमारे पास कुछ नहीं बचता।'
 
एक और गांव खमराई की एक मस्जिद के इमाम बिस्मिल्लाह ने कहा कि पहले इस क्षेत्र की 80 प्रतिशत जमीन का इस्तेमाल पोस्त की खेती के लिए किया जाता था, जबकि 20 प्रतिशत का उपयोग गेहूं, मक्का, सेम और कपास की खेती के लिए किया जाता था।
 
अफगानिस्तान में आम तौर पर एक ही परिवार में लोगों की संख्या ज्यादा होती है और इन परिवारों के कुल खर्च का एक बड़ा हिस्सा लड़कियों के दहेज पर होता है। वे कहते हैं, 'हम अफीम से इसको पूरा कर सकते हैं लेकिन मक्का और फलियों से नहीं।'
 
अफीम छिपाकर रखते हैं किसान
 
बिस्मिल्लाह समेत कुछ अन्य किसानों के पास अभी भी पोस्त की पिछली फसल का कुछ हिस्सा मौजूद है। बिस्मिल्लाह ने एक बर्तन दिखाया जिसमें लगभग आधा किलोग्राम चिपचिपा भूरा राल भरा था। उन्होंने कहा, 'ज्यादातर लोग घर में कुछ रखते हैं लेकिन चोरों के डर से वे इसका किसी से जिक्र नहीं करते।' उन्होंने बताया, 'हम कीमत बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। हम उम्मीद कर रहे हैं कि हम इससे दहेज देने में सक्षम होंगे।'
 
कंधार प्रांत के मेवांड जिले में अफीम बाजार अब वीरान है। यहां काम करने वाले 40 साल के हुनर ​​​ने अब शक्कर, तेल, चाय और मिठाइयां बेचने का धंधा करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सर्वोच्च नेता का हुक्म मानना ​​ही होगा। हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि हालिया प्रतिबंध के कारण लोगों को गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है और वे अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं।
 
इसी साल मई में अफगानिस्तान के बदख्शां प्रांत में किसानों और मादक द्रव्य विरोधी बलों के बीच झड़पों में कई मौतें हुई थीं। सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो भी वायरल हुए जिनमें किसान तालिबान के खिलाफ नारे लगा रहे थे। वैश्विक संघर्षों और संकटों पर शोध करने वाले इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (आईसीजी) की इस महीने जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक ड्रग्स के खिलाफ तालिबान के अभियान ने अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिसे दुनिया में अवैध ड्रग्स सप्लायर का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है।
 
आईसीजी के मुताबिक हालांकि किसानों को अनार, अंजीर, बादाम, पिस्ता जैसी मुनाफे वाली फसलें उगाने में मदद करने के लिए भारी निवेश की जरूरत है, फिर भी यह एक कम समय के लिए समाधान है। रिपोर्ट में यह भी सुझाव दिया गया है कि तालिबान को अब किसानी के अलावा अन्य क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने पर ध्यान देना होगा।

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