एक शोध के मुताबिक पक्षी मौसमी तूफान के खतरे को समय से पहले भांप लेते हैं और तूफान से पहले ही क्षेत्र को छोड़ देते हैं। वैज्ञानिकों को लगता है कि पक्षियों के पास ऐसा सिक्स्थ सेंस है जिसकी मदद से वे ऐसी आवाज सुन सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने अमेरिका में सुनहरे पंखों वाली चिड़िया वॉर्ब्लर यानी फुदकी पर यह शोध किया है। यह चिड़िया चहचहाने के लिए भी जानी जाती है। इस छोटी और नाजुक चिड़िया का वजन मात्र नौ ग्राम होता है, लेकिन किसी तरह उन्हें उनके इलाके की तरफ बढ़ रहे तूफान का एक या दो दिन पूर्व ही पता चल जाता है। शोध के मुताबिक अप्रैल 2014 के अंत में अमेरिका के उत्तरी और मध्य क्षेत्रों में आने वाले तूफान से पहले यह पक्षी देश के पूर्वी हिस्से टेनेसी में स्थित पहाड़ियों को छोड़कर चले गए। वे टेनेसी में प्रजनन के लिए इकट्ठा होते हैं। इस तूफान के कारण 84 बवंडर पैदा हुए और 35 लोग मारे गए।
यूनीवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया बर्कले के पारिस्थितिकीविद हेनरी स्ट्रेबी के मुताबिक, 'यह पहला मौका है जब हमने प्रजनन के मौसम के दौरान पक्षियों के तूफान से बचकर निकल जाने के व्यवहार का दस्तावेजी सबूत इकट्ठा किया है। यह तो हम जानते ही हैं कि पक्षी अपने नियमित प्रवसन के दौरान कई चीजों से बचने के लिए रास्ता बदल लेते हैं। लेकिन हमारे शोध से पहले यह स्टडी नहीं की गई थी कि पक्षी प्रवसन के एक बार खत्म होने और प्रजनन की प्रक्रिया शुरू करने के बाद भी चरम मौसम से बचने के लिए जगह छोड़ देते हैं।'
सैकड़ों किलोमीटर दूर का पता : जब ये पक्षी अपने निवास स्थान को छोड़कर उड़ गए तो तूफान कई सौ किलोमीटर दूर था। इसलिए हो सकता है कि मौसम, हवा का दबाव, तापमान और हवा की गति आदि में ऐसे बदलाव हो रहे थे जिनका इन पक्षियों को पता चल गया था। स्ट्रेबी कहते हैं, 'हमारे शोध में वॉर्ब्लर ने कठोर मौसम से बचने के लिए कम से कम पंद्रह सौ किलोमीटर की उड़ान भरी। तूफान के गुजर जाने के बाद वे अपने घरों को लौट आईं।'
यह बात मालूम है कि पक्षी और कुछ जानवर इंफ्रा ध्वनि सुन सकते हैं, जिनकी आवृति 20 हर्ट्ज से कम हो। इसलिए संभव है कि बहुत फासलों पर मौजूद हवाओं की आवाज, सागर की लहरों के टकराने और ज्वालामुखी के फूटने से ऐसी इंफ्रा ध्वनि पैदा होती है जो पक्षी सुन सकते हैं। भले ही वे इन घटनाओं से हजारों किलीमीटर दूर ही क्यों न हों। बड़े तूफान या टॉरनेडो ऐसी शक्तिशाली इंफ्रा साउंड पैदा करते हैं।
स्ट्रेबी के मुताबिक, 'ऐसे बहुत से शोध हो रहे हैं जिनसे पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण टॉरनेडो अधिक आम और शक्तिशाली होते जा रहे हैं। इसलिए फुदकी की तर्ज पर बचाव विधि अपनाने की जरूरत हो सकती है।'