सऊदी अरब बच्चों को भी मौत की सजा दे रहा है

बुधवार, 12 अक्टूबर 2016 (12:46 IST)
सऊदी अरब में बच्चों को मृत्युदंड देने और शरीर का कोई अंग काटकर या कोड़े मारकर दी जाने वाली सजा पर संयुक्त राष्ट्र की एक मानवाधिकार संस्था ने विरोध जताया है।
संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकार समिति ने पिछले दिनों सऊदी अरब में बच्चों की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की। इसमें कहा गया है कि सऊदी अरब में नाबालिगों को भी वयस्कों की तरह सजा दी जा रही है। इसमें अन्य सजाओं के साथ साथ मौत की सजा भी शामिल है। रिपोर्ट में सऊदी अरब में लड़कियों की खराब स्थिति पर भी चिंता जताते हुए कहा गया है कि नौ साल की उम्र में उनकी शादियां हो रही हैं।
 
रिपोर्ट के मुताबिक, 'सऊदी अरब में 15 साल के ऊपर की उम्र के बच्चों के खिलाफ वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जाता है और उन्हें मौत की सजाए सुनाई जा रही हैं। लोगों को ऐसे अपराधों के मौत की सजा दी जा रही है जो उन्होंने 18 साल का होने से पहले किए थे।'
बाल अधिकार समिति में 18 स्वतंत्र विशेषज्ञ होते हैं और उनका काम ये देखना है कि बच्चों को लेकर संयुक्त राष्ट्र के कन्वेशन पर अमल हो रहा या नहीं। रिपोर्ट में सऊदी अरब के ऐसे कई मामलों की जिक्र है जब नाबालिगों को मौत की सजा दी गई। इसके मुताबिक इस साल 2 जनवरी को जिन 47 को मौत की सजा दी गई उनमें कम से कम चार लोगों की उम्र 18 साल से कम थी।
 
बाल अधिकार संस्था ने सऊदी अरब से मांग की है कि नाबालिग के तौर पर किए गए अपराधों के लिए मृत्युदंड पाने वाले लोगों की सजा पर अमल को तुरंत रोका जाएगा। रिपोर्ट में ऐसे चार लोगों अली मोहम्मद बक्र अल निम्र, अब्दुल्लाह हसन अल जहर और सलमान बिन अमीन बिन सलमान अल कुरैश का खास तौर से जिक्र किया गया है।
 
समिति के अध्यक्ष बेनयाम मेजमूर का कहना है कि सऊदी अरब पांच देशों में शामिल है जहां मौत की सजा को लेकर बाल अधिकार विशेषज्ञों को चिंता जाहिर करनी पड़ी है। सऊदी अरब के अलावा इन देशों में चीन, ईरान, पाकिस्तान और मालदीव के नाम शामिल हैं। उन्होंने कहा, 'ये बहुत ही गंभीर मुद्दा है।'
 
समिति ने सऊदी अरब से कहा है कि वो बच्चों को पत्थर मार कर, उनके शरीर का अंग काटकर या कोड़े मार दी जाने वाली सजा के कानून को तुरंत खत्म करे। समिति के अनुसार बड़ी समस्या ये है कि देश ये निर्धारित करने का काम जजों को सौंप देता है कि किसी व्यक्ति को बालिग माना जाए या नहीं।
 
संयुक्त राष्ट्र की पिछले महीने की एक समीक्षा रिपोर्ट कहती है कि सऊदी अरब के मानवाधिकार आयोग के प्रमुख बांदर बिन मोहम्मद अल-ऐबान ने बाल अधिकार समिति को बताया कि 'इस्लामी शरिया कानून सभी कानूनों और संधियों से ऊपर है जिनमें बाल अधिकार कन्वेशन भी शामिल है।' लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि सऊदी अरब बच्चों समेत सभी लोगों के अधिकारों को बढ़ावा देने की 'राजनीतिक इच्छाशक्ति' रखता है।
 
बाल अधिकार समिति के सदस्य योर्गे कारोडना कहते हैं, 'कन्वेशन में जिन अधिकारों को सुरक्षित रखने की बात कही गई है, शरिया कानून की व्याख्या कुछ मामलों में उनके लिए समस्याएं पैदा करती है।' संयुक्त राष्ट्र के पैनल ने सऊदी अरब में 9-10 साल की उम्र में बच्चियों की शादी पर भी सवाल उठाया है। कारडोना कहते हैं, 'ज्यादातर लड़कियों की उम्र नौ या दस साल होती है और ये लड़कियों के लिए बहुत बड़ी समस्या है।'
 
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है कि सऊदी अरब ने अभी तक लड़कियों को पूर्ण नागरिक नहीं माना है जिनके पास सभी अधिकार हों। सऊदी कानून में लड़कियों के खिलाफ भेदभाव की पूरी गुंजाइश मौजूद है। यहां तक कि उन्हें अपनी पूरी जिंदगी किसी न किसी पुरुष सरपरस्त की निगरानी में बितानी होती है, जो भाई, पिता, पति और यहां तक कि बेटा भी हो सकता है। 
 
- एके/वीके (रॉयटर्स, एएफपी)

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