20वीं सदी की शुरुआत में जर्मनी में सार्वजनिक तौर पर वह एक समलैंगिक रिश्ते में रही और बाद में अपने विशेषाधिकार, संसाधन और साहस का इस्तेमाल कर उन्होंने कई यहूदी परिवारों को नाजी शासन के अत्याचार से बचाया।
द्वितीय विश्व युद्ध के इतिहास में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि गद्दी से हटाए गए एक शाही परिवार की ब्रिटिश मूल की सिख राजकुमारी ना सिर्फ नाजी जर्मनी के खिलाफ विरोध करेगी, बल्कि उस दौर में एक महिला साथी के साथ खुलकर जीवन भी जीएंगी। वह भी ऐसे समय में जब एलजीबीटीक्यू+ अधिकारों को ना तो मान्यता थी और ना ही समाज में स्वीकृति। लेकिन राजकुमारी कैथरीन हिल्डा दलीप सिंह ने ठीक यही किया।
सिख साम्राज्य के अंतिम महाराजा की बेटी कैथरीन ने अपना रास्ता खुद बनाया और सामाजिक नियमों को खुलकर चुनौती दी। उनकी पहचान हाल ही में सामने आई है। ब्रिटिश जीवनी लेखक, पीटर बैंस उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने उनकी पहचान सामने लाने में मदद की है। पिछले बीस सालों से वह दलीप सिंह के परिवार पर शोध और लेखन कर रहे हैं। वह कैथरीन के योगदान को बिखरे हुए रिकॉर्डों और पारिवारिक दस्तावेजों से जोड़कर सामने लाए हैं।
बैंस ने 2023 में ब्रिटिश अखबार, मेट्रो को बताया, "वह यह सब दिखावे के लिए नहीं करती थीं इसलिए उनकी कहानियां किताबों में नहीं है। उनकी कहानियां उन लोगों में जिंदा हैं, जिन्हें उन्होंने बचाया था। उस समय किए गए उनके हस्तक्षेप के कारण ही आज दुनिया भर में कई परिवार खुशहाल जीवन जी रहे हैं।”
शाही परिवार, बगावती फितरत
1871 में इंग्लैंड के सफ्फोक में कैथरीन का जन्म हुआ था। वह उस जगह से बहुत दूर पली-बढ़ी, जिस पर कभी उनके पिता ने शासन किया था। जब महाराजा दलीप सिंह 10 साल के थे। तब उन्हें सिख साम्राज्य और कोहिनूर हीरा ब्रिटिशों के हाथों सौंपने पर मजबूर कर दिया गया। बदले में ब्रिटिश राज ने उन्हें इस शर्त पर पेंशन दी कि वह "ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार रहेंगे।”
बाद में उन्होंने जर्मन-इथियोपियाई महिला, बाम्बा म्यूलर से शादी कर ली। जिनके साथ उनके छह बच्चे हुए। जिसमें से कैथरीन चौथी संतान थी। हालांकि, परिवार निर्वासन में रहा लेकिन उन्हें रानी विक्टोरिया का संरक्षण प्राप्त था, जो कि कैथरीन की गॉडमदर भी थी।
कैथरीन ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सोमरविल कॉलेज से पढ़ाई की। इसके साथ ही उन्होंने अपनी दो बहनों के साथ मिलकर महिलाओं के मतदान अधिकारों के लिए आंदोलन (सफ्रेजेट आंदोलन) किया। लेकिन उनका निजी जीवन खासकर जर्मनी में बिताए गया वक्त, उनकी बेमिसाल सोच और साहस का प्रतीक बने।
कासल: एक पराये देश में अपना सा घर
किशोरावस्था में ही अपने दोनों माता-पिता को खो देने के बाद, कैथरीन का अपनी जर्मन गवर्नेस, लीना शेफर से काफी गहरा रिश्ता था। 1900 के दशक की शुरुआत में कैथरीन इंग्लैंड छोड़कर लीना के साथ जर्मनी के शहर, कासल चली गई। जहां उन्होंने तीन दशक से भी ज्यादा का समय साथ बिताया। जिस घर में वह साथ रहे, वह आज भी मौजूद है। उनके रिश्ते को कभी औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया। यह रिश्ता उस समय की सामाजिक परंपराओं को चुनौती देता था और 1937 में लीना की मृत्यु तक अटूट बना रहा।
शुरुआती दौर में कैथरीन को कासल में सुकून मिलता था। वह दोनों हर साल बायरूथ महोत्सव में भी जाती थी। हालांकि 1930 के दशक में जर्मनी, हिटलर के शासन में एक तानाशाही में बदलने लगा। पीटर बैंस के अनुसार, "हिटलर के उदय के दौरान जर्मनी में एक भूरे रंग की समलैंगिक महिला होना उनके लिए बेहद खतरनाक हो गया था। मुझे याद है कि मैंने उनके और उनके अकाउंटेंट के बीच भेजे गए कुछ पत्र पढ़े थे। अकाउंटेंट ने उन्हें देश छोड़ने की सलाह दी थी। उन्हें कहा गया था कि उन्हें निशाना बनाया जा सकता है। स्थानीय नाजी उन पर लगातार नजर रख रहे थे, लेकिन उन्होंने जाने से साफ इंकार कर दिया था।”
इंसानियत को अपना धर्म बना लिया
जैसे-जैसे नाजी शासन जर्मनी में अपनी पकड़ मजबूत करता गया, कैथरीन ने अपने संसाधनों और प्रभाव का इस्तेमाल कर कई यहूदी व्यक्तियों और परिवारों को नाजी अत्याचार से बचाया और उन्हें ब्रिटेन में नया जीवन शुरू करने में मदद की। उन्होंने सिफारिश पत्र लिखे, आर्थिक मदद दी, और खुद उन दस्तावेजों की गारंटी ली जो दूसरे देश में शरण पाने के लिए बेहद जरूरी थे।
सबसे जाना-माना उदाहरण हॉर्नस्टाइन परिवार का है। विल्हेम हॉर्नस्टाइन, एक यहूदी वकील और प्रथम विश्व युद्ध के सम्मानित सैनिक थे। जिनको नवंबर 1938 के नाजी हमलों के दौरान गिरफ्तार कर एक यातना शिविर में डाल दिया गया था। बाद में उन्हें इस शर्त के साथ रिहा कर दिया गया कि वह जर्मनी छोड़कर चले जाएंगे। तब कैथरीन ने ही उनके, उनकी पत्नी, इल्स और दोनों बच्चों के इंग्लैंड पहुंचने की व्यवस्था की थी।
कैथरीन ने उन्हें बकिंघमशायर के पेन्न गांव में स्थित अपने कंट्री हाउस, कोलहैच हाउस में ठहरने की व्यस्था कराई। उन्होंने वहां चिकित्सक, विल्हेम मेयरस्टाइन और उनकी पत्नी, मारिएलुइज वोल्फ और वायलिन वादक, आलेक्जांडर पोलनारिओफ जैसे अन्य यहूदी शरणार्थियों को भी पनाह दी थी। इसके अलावा, कैथरीन ने उन यहूदियों के लिए भी आवाज उठाई थी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने "विदेशी शत्रु” घोषित कर दिया था। यह उन लोगों के लिए क्रूर था, जो खुद नाजियों से जान बचाकर भागे थे।
बैंस ने डीडब्ल्यू को बताया, "मुझे लगता है कि उन्होंने मानवता के प्रति अपना फर्ज निभाया। वह भी उस दौर में जब बहुत अत्याचार हो रहा था और ज्यादातर लोग उन्हें नजरअंदाज कर रहे थे। ऐसे में वह भी आराम से कह सकती थी कि यह मेरी परेशानी नहीं है, लेकिन उन्होंने उसे अपना मकसद बना लिया।”
2002 में उनके इस "एक महिला राहत मिशन” का असर संयोग से सामने आ गया। बैंस बताते हैं कि जब उन्होंने कैथरीन पर एक स्थानीय लेख प्रकाशित किया था, तो एक व्यक्ति माइकल बॉल्स उनके कार्यालय आए और बोले, "मेरी मां, मेरे मामा और मेरे नाना-नानी को जर्मनी में राजकुमारी कैथरीन ने बचाया था। अगर वह नहीं होती, तो मैं भी आज जिंदा नहीं होता।”
बाद में पता चला कि बॉल्स की नानी, उर्सुला हॉर्नस्टाइन परिवार की ही बेटी थी। जिन्हें कैथरीन की मदद से नाजी जर्मनी के बाहर निकाला गया था।
सम्मान के साथ विदाई
1942 में 71 वर्ष की उम्र में कैथरीन का निधन हुआ। उनके या उनके किसी भाई-बहन किसी के भी कोई संतान नहीं थी। अपनी वसीयत में उन्होंने इच्छा जताई थी कि उनकी राख को लीना शेफर के कब्र के साथ कासल में दफन कर दिया जाए।
हालांकि, समय के साथ वह कब्र उपेक्षा का शिकार हो गई, लेकिन अब पीटर बैंस कासल के कब्रिस्तान प्रशासन के साथ मिलकर उनकी कब्रों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "मुझे सच में लगता है कि राजकुमारी कैथरीन को इससे काफी खुशी मिलती। उन्होंने अपना पूरा जीवन लीना के साथ बिताया था और वह उनसे बेहद प्यार करती थी।”
उनका रिश्ता उस दौर में बहुत शांत और निजी था, लेकिन उसकी गूंज आज भी सुनाई देती है। बैंस डीडब्ल्यू से कहते हैं कि हालांकि कैथरीन ने कभी अपने रिश्ते को छुपाया नहीं, उनकी बहनों को भी इस बारे में पता था, लेकिन उस समय इसे लेकर बहुत चुप्पी रहती थी। क्योंकि उस दौर में ऐसे रिश्तों को खुले तौर पर दिखाना या प्रचार करना आम बात नहीं थी।
हालांकि, जैसे-जैसे कैथरीन के साहस और योगदान को मीडिया में जगह मिल रही है, लजीबीटीक्यू+ समुदाय ने उन्हें एक आदर्श के रूप में अपनाया है। एक ऐसी महिला जिन्होंने निडरता से अपना जीवन जिया और प्यार किया। 2023 में बीबीसी की रिपोर्टिंग समेत, वह अब विभिन्न प्राइड मंथ अभियानों में एक प्रेरणा स्रोत के रूप में उभर चुकी हैं।
साहसी राजकुमारियां
पीटर बैंस अब एक नई किताब पर काम कर रहे हैं, जो मार्च 2026 में केनसिंग्टन पैलेस में होने वाली प्रदर्शनी "प्रिंसेसेज ऑफ रेजिस्टेंस” (साहसी राजकुमारियां) के साथ जारी की जाएगी। यह प्रदर्शनी कैथरीन और उनकी बहनों, सोफिया और बाम्बा पर केंद्रित होगी।
बैंस डीडब्ल्यू को बताते हैं, "यह एक महिला-केंद्रित प्रदर्शनी है, जो महाराजा दलीप सिंह की राजकुमारियों के प्रयासों को उजागर करेगी।” वह यह भी बताते हैं कि वह अपने निजी संग्रह से लगभग 2,000 वस्तुओं में से कुछ वस्तुएं प्रदर्शनी के लिए देंगे, जिन्हें उन्होंने पिछले 25 वर्षों में इकट्ठा किया है।
हालांकि, अभी भी और यहूदी परिवारों की जानकारियां सामने आ रही हैं, कैथरीन ने जिनकी मदद की थी। बैंस ने उन्हें "भारतीय शिंडलर” का नाम दिया है। उन्हें यह नाम जर्मन उद्योगपति, ऑस्कर शिंडलर (1908–1974) के संदर्भ दिया गया है, जिन्होंने होलोकॉस्ट के दौरान लगभग 1,200 यहूदियों की जान बचाई थी।
बैंस मानते हैं कि कैथरीन के प्रयास शायद शिंडलर के स्तर तक ना हों, तो भी चाहे आप एक जान बचाएं या दस, वह बचाना ही है। आप किसी ऐसे व्यक्ति को बचा रहे हैं जो ना आपकी जाति से है, ना धर्म से, ना नस्ल से, लेकिन आप यह सब सिर्फ इंसानियत के लिए करते हैं।
उनके कॉलेज सोमरविल की वेबसाइट पर उनकी प्रोफाइल में लिखा है, "एक सच्ची एलजीबीटीक्यू+ आइकन, जिसने अपनी उम्रदराज प्रेमिका की सुरक्षा के लिए खुद को खतरे में डाला और सोमरविल के मूलमंत्र इन्क्लूड द एक्सक्लूडेड' (अलग को भी खुद के साथ शामिल करने) का सच्चा उदाहरण बनी। कैथरीन ने ना सिर्फ उन्हें शामिल किया। बल्कि जिन्हें दुनिया ने ठुकरा दिया था, उनको भी बचाया, उनके लिए संघर्ष किया और उनके लिए आवाज उठाई।”
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