लड़का या लड़की में ऐसे तब्दील होता है भ्रूण

गुरुवार, 15 नवंबर 2018 (11:15 IST)
दो एक्स क्रोमोजोम मिले तो लड़की जबकि एक एक्स और एक वाई क्रोमोजोम मिले तो लड़का। लेकिन मामला इतना भी सीधा नहीं है। जानिए कैसे तय होता है कि लड़की होगा या लड़का।
 
 
जब भ्रूण तीस दिन का होता है तो उसका आकार सिर्फ छह मिलीमीटर होता है। लेकिन तब भी उसकी रीढ़ की हड्डी को पहचाना जा सकता है। इसी समय हाथ और पैर भी बनने लगे हैं। लेकिन अभी तक भ्रूण की संरचना ऐसी होता है कि उसका विकास नर या मादा, किसी भी रूप में हो सकता है।
 
 
आपने पढ़ा होगा कि अगर कोशिकाओं के अंदर दो एक्स क्रोमोजोम होंगे, तो मादा और अगर एक एक्स और एक वाई हुआ, तो नर। लेकिन ये इतना भी आसान नहीं है। लिंग निर्धारित करने में हमारे जीन, हार्मोन और दूसरे कई कारक भूमिका निभाते हैं।
 
 
छठे या सातवें हफ्ते तक भ्रूण की लंबाई एक सेंटीमीटर तक पहुंच जाती है। भ्रूण का नर के रूप में विकास तब शुरू होता है जब टेस्टीस यानी वीर्यकोष का निर्माण होता है। टेस्टीस टेस्टोस्टेरोन बनाती हैं। नर अंगों के विकास के लिए यह हार्मोन बेहद अहम है।
 
 
इस हार्मोन के अलावा और भी कुछ कारण होते हैं जिनसे नर अंगों जैसे कि वास डेफेरेंस, सेमिनल वेसिकल्स और प्रोस्टेट ग्लैंड का विकास होता है। इसी के साथ साथ लिंग का भी विकास होता रहता है।
 
 
इसी तरह भ्रूण मादा का रूप तब लेता है, जब ओवरीज़ यानी अंडाशय का विकास होता है। यहां से एस्ट्राडिओल नाम के हार्मोन का रिसाव होता है। लड़कों के शारीरिक विकास में जो भूमिका टेस्टोस्टेरोन की होती है, लड़कियों में वही भूमिका एस्ट्राडिओल निभाता है। इसी हार्मोन के चलते फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय और योनि का विकास होता है। साथ ही क्लिटोरिस, लेबिया और यूरेथ्रा का भी निर्माण होता है।
 
 
लड़के और लड़की के भ्रूण की तुलना से पता चलता है कि शुरुआत में दोनों की अंदरूनी रचना एक जैसी ही होती है। यानी भ्रूण के जननांगों का विकास किसी भी रूप में हो सकता है। इसे बाद में जीन और हार्मोन निर्धारित करते हैं।
 
 
लेकिन कई बार विकास की प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ भी हो जाती है। मिसाल के तौर पर एंड्रोजन इंसेंसिटिव सिंड्रोम। भ्रूण के इंटरसेक्स बनने का ये सबसे बड़ा कारण है। शुरुआत में सब कुछ वैसे ही चलता है जैसे कि लड़कों के विकास में। एक एक्स और एक वाय क्रोमोज़ोम, टेस्टीस का विकास, टेस्टोस्टेरोन का रिसाव। लेकिन जननांगों में कुछ ऐसी खराबी होती है कि वो इस हार्मोन के संदेश को ठीक से समझ नहीं पाते।
 
 
ऐसे में एस्ट्राडिओल हार्मोन अधिक प्रभावशाली हो जाता है। नतीजा, एक्स वाई क्रोमोजोम होने के बावजूद भ्रूण का विकास मादा के रूप में होने लगता है। इसे तीसरा लिंग या फिर इंटरसेक्स कहा जाता है।
 
डिर्क गिल्सन

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी