क्षेत्रीय राजनीतिक दलों में किंगमेकर बनने की अकुलाहट
बुधवार, 22 मई 2019 (18:06 IST)
लोकसभा चुनावों के बाद आए तमाम एग्जिट पोलों में एनडीए को बहुमत के पास बताया गया है। लेकिन अगर असली नतीजों और इन आंकड़ों में अंतर हुआ यानी एनडीए बहुमत के पास नहीं पहुंची तो कुछ क्षेत्रीय दल किंगमेकर के तौर पर उभर सकते हैं।
एक ओर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दावा है कि पूर्ण बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे और एग्जिट पोलों ने भी इस पर मुहर लगा दी है। दूसरी ओर, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के महागठबंधन ने भी अभी उम्मीदें नहीं छोड़ी हैं। अगर किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला तो अब तक एनडीए और यूपीए से समान दूरी बना कर चलने वाले क्षेत्रीय दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। यानी ऐसी स्थिति में विभिन्न क्षेत्रीय दल किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बार एनडीए या यूपीए को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में समाजवादी पार्टी (एसपी), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी), बीजू जनता दल (बीजेडी), तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और वाईएसआर कांग्रेस की भूमिका अहम हो सकती है।
बहुमत पर असमंजस
लोकसभा चुनावों के आखिरी चरण के बाद रविवार को एग्जिट पोलों के पूर्वानुमानों पर भरोसा करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दोबारा सत्ता में लौटना तय माना जा रहा है। लेकिन पिछले कुछ चुनावों की तरह इस बार भी इन अनुमानों और असली नतीजों में भारी अंतर होने की स्थिति में एनडीए को 272 के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए बाहरी समर्थन की जरूरत पड़ेगी। दूसरी ओर, विपक्षी राजनीतिक पार्टियां भी वैसी स्थिति में मौके का फायदा जरूर उठाने का प्रयास करेंगी। तब क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम हो जाएगी। एनडीए और यूपीए में से किसी भी गठजोड़ को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में क्षेत्रीय नेता ही तय करेंगे कि दिल्ली की गद्दी किसे मिलेगी।
इस बार केंद्र सरकार के गठन में उत्तर प्रदेश के अलावा ओडीशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य अहम भूमिका निभा सकते हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में सपा को सिर्फ पांच सीटें मिली थीं। जबकि बसपा का खाता तक नहीं खुल सका था। इसी तरह ओडीशा में बीजेडी को 19 और तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस को 10 और वाईएसआर को नौ सीटें मिली थीं। लेकिन वर्ष 2014 के बाद सियासी समीकरण काफी बदल गए हैं। उत्तर प्रदेश में में 80 में से 71 सीटें जीतने वाली बीजेपी को उप-चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था। इस बार वहां सपा-बसपा ने मिल कर चुनाव लड़ा है। ऐसे में चुनावी तस्वीर पिछली बार से काफी भिन्न हो सकती है।
ममता-मायावती की अहमियत
इन चुनावों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी भी काफी सक्रिय रही हैं। दरअसल, वह अकेली ऐसी नेता हैं जिन्होंने अपने बूते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के तमाम नेताओं को कड़ी टक्कर दी है। इस साल जनवरी में कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड पर तमाम विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर ममता बनर्जी ने अपनी ताकत भी दिखाई थी। दूसरी तरफ, चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता भी ममता बनर्जी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।
मौजूदा हालात में चुनावी नतीजों के बाद गैर-एनडीए और गैर-यूपीए सरकार के गठन की तस्वीर उभरने पर ममता बनर्जी की भूमिका भी काफी अहम हो सकती है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 42 में से 34 सीटें जीतकर टीएमसी चौथी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। एग्जिट पोलों में भले ममता की पार्टी को 24 से 29 तक सीटें दी जा रही हों, ममता इसे मजाक और ईवीएम में छेड़छाड़ की साजिश बताती हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी से वैचारिक मतभेद होने की वजह से टीएमसी जरूरत पड़ने पर कांग्रेस को समर्थन दे सकती है।
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव को बीते लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में महज सात सीटें मिली थीं। लेकिन इस बार बसपा प्रमुख मायावती और राष्ट्रीय लोकदल के अजित सिंह के साथ गठजोड़ ने पार्टी की स्थिति मजबूत की है। तमाम एग्जिट पोलों में इस गठजोड़ को राज्य की 80 में से 45 सीटें तक मिलने का अनुमान जताया गया है।
यूपी में पिछली बार मायावती की अगुवाई वाली बसपा का खाता तक नहीं खुल सका था। लेकिन अबकी एसपी और आरएलडी के साथ तालमेल की वजह से उनकी पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। उनका एनडीए में शामिल होना तो मुश्किल है, लेकिन परिस्थिति की मांग हुई तो ममता की तरह वह भी कांग्रेस को समर्थन दे सकती हैं। बीते सप्ताह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू के साथ मुलाकात में भी उन्होंने इस आशय का संकेत दिया था।
ओडीशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के प्रमुख नवीन पटनायक की भी केंद्र सरकार के गठन में अहम भूमिका रहने का अनुमान है। वर्ष 2014 में बीजेडी के 18 सांसद जीते थे। एग्जिट पोल की मानें तो पार्टी को इस बार भी राज्य में कम से कम 15 सीटें मिल सकती हैं। हाल के दिनों में खासकर फानी तूफान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवीन पटनायक के रिश्तों पर जमी बर्फ पिघली है। मोदी ने भी उस तूफान से निपटने के लिए उनकी तारीफ की थी और उसके बाद पटनायक भी एनडीए को समर्थन देने का संकेत दे चुके हैं।
दक्षिण भारतीय नेता किसके साथ
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी बीती जनवरी से ही गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी मोर्चे के सरकार की वकालत करते रहे हैं। हालांकि राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए वह अबकी बीजेपी के पाले में भी जा सकते हैं। उनकी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के पास फिलहाल 10 सांसद हैं और अबकी एग्जिट पोल में दावा किया गया है कि यह तादाद बढ़ कर 13 तक पहुंच सकती है।
आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख जगन मोहन रेड्डी के सांसदों की तादाद बढ़ने का अनुमान है। उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी से बेहतर प्रदर्शन की अटकलें लगाई जा रही हैं। यही वजह है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों उनको अपने पाले में खींचने का प्रयास कर रही हैं। लेकिन जगन ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। फिलहाल उनकी पार्टी के चार सांसद हैं। लेकिन अबकी इस तादाद बढ़ कर 20 तक पहुंचने का दावा किया जा रहा है।
इन नेताओं के अलावा टीडीपी प्रमुख चंद्र बाबू नायडू भी लोकसभा चुनावों के बाद से ही महागठबंधन को लेकर सक्रिय हैं। लोकसभा चुनावों का आखिरी चरण पूरा होने से पहले ही वह कोलकाता, दिल्ली व लखनऊ में तमाम विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मैराथन बैठकें करते रहे हैं। ममता बनर्जी की तरह उन्होंने भी एग्जिट पोल के नतीजों को निराधार करार दिया है। उनके अलावा तमिलनाडु में डीएमके अध्यक्ष स्टालिन हाल तक सार्वजनिक रूप से राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की वकालत करते रहे हैं। लेकिन राज्य के बीजेपी नेताओं का दावा है कि स्टालिन पाला बदलने के लिए तैयार हैं। स्टालिन ने हालांकि इस बात का खंडन कर दिया है। लेकिन चुनावी नतीजों के बाद ही उनका रुख साफ होने की संभावना है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक प्रोफेसर हरिपद दास कहते हैं, "यह तमाम नेता फिलहाल चुनावी नतीजों का इंतजार कर रहे हैं। इसके साथ ही मैराथन बैठकों में संभावित नतीजों और उसके बाद बनने वाले समीकरणों की स्थिति में संभावित कदमों के बारे में भी बातचीत चल रही है।” उनका कहना है कि चुनावी तस्वीर साफ होने के बाद ही इन दलों की भूमिका स्पष्ट होगी और उसी समय पता चलेगा कि इनमें से किस पार्टी के नेता किंगमेकर के तौर पर उभरते हैं। उससे पहले तो अटकलों व कयासों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है।