सेंट्रल अडॉप्शन रिसॉर्स अथॉरिटी (CARA) के मुताबिक साल 2020-21 में साल 2015-16 के बाद से सबसे कम बच्चों को गोद लिया गया। इस दौरान 3,142 बच्चों को ही अडॉप्ट किया गया, जबकि साल 2019-20 में 3,351 बच्चों को गोद लिया गया था।
नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) के मुताबिक 1 अप्रैल, 2020 से 5 जून, 2021 के बीच कोरोना महामारी के दौरान भारत में 3,621 बच्चे अनाथ हुए हैं जबकि लांसेट पत्रिका की एक स्टडी के मुताबिक यह आंकड़ा 1 लाख से भी ज्यादा है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोविड की वजह से माता-पिता को खोने वाले बच्चों की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थीं, इनसे जुड़ी पोस्ट में ऐसे बच्चों को गोद लेने की अपील की जा रही थी।
इस पर कई संस्थाओं ने चिंता भी जताई थी। उन्हें डर था कि ऐसी गतिविधियां भारत में बच्चों की तस्करी को बढ़ावा दे सकती हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया कि भारत के अलग-अलग राज्यों में कोरोना के दौरान बच्चों की तस्करी वाकई बढ़ गई है और वायरस के प्रकोप के चलते अनाथ हुए बच्चे 2-5 लाख रुपये में बेचे जा रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स में बच्चों को गैरकानूनी तरीके से बेचने के लिए कुछ एनजीओ को भी जिम्मेदार ठहराया गया। रिपोर्ट में यह कहा गया था कि ये ट्रैफिकर सोशल मीडिया के माध्यम से ग्राहक जुटा रहे हैं। कुल मिलाकर बात यह कि कोरोना के दौरान अनाथ बच्चों की संख्या बढ़ने के बावजूद भारत में साल 2020-21 में कानूनी रूप से बच्चों को गोद लेने की दर कम हो गई है।
पांच साल के निचले स्तर पर
सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) के मुताबिक साल 2020-21 के आंकड़े पांच साल के सबसे निचले स्तर पर हैं। इस गिरावट के लिए महामारी को जिम्मेदार माना जा रहा है। 2019-20 में 3,351 बच्चों को गोद लिया गया था, जबकि 2020-21 में 3,142 बच्चों को ही अडॉप्ट किया गया। साल 2015-16 के बाद से यह आंकड़ा सबसे कम है। साल 2015-16 में सिर्फ 3,011 बच्चों को ही गोद लिया गया था।
महाराष्ट्र महिला और बाल विकास विभाग के मुताबिक राज्य में गोद लिए जाने वाले बच्चों की संख्या एक-तिहाई से भी ज्यादा घट गई है। अडॉप्शन एजेसियां, जानकार और कारा स्टीअरिंग कमेटी के सदस्य इसकी वजह लोगों के आने-जाने पर प्रतिबंध और सीमित प्रशासकीय प्रक्रिया को बता रहे हैं।
भारत में 3 करोड़ अनाथ बच्चे
कोरोना महामारी से बच्चों को गोद लेने और उनकी देखरेख पर पड़े प्रभाव के बारे में प्रोफेसर रत्ना वर्मा और रिंकू वर्मा ने एक रिसर्च पेपर लिखा है जिसमें भारत में अनाथ और छोड़ दिए गए बच्चों की कुल संख्या करीब 3 करोड़ बताई गई है। इनमें से ज्यादातर बच्चों को उनके मां-बाप ने गरीबी के चलते छोड़ दिया है। ये बच्चे कई बार बालश्रम, ट्रैफिकिंग और यौन शोषण का शिकार बनते हैं। इतनी बड़ी संख्या में अनाथ बच्चे होने के बाद भी भारत का अडॉप्शन रेट बेहद कम है।
डॉ. रत्ना वर्मा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (IIHMR) के स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। कोरोना के प्रभाव के बारे में वह बताती हैं, 'भारत में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया पहले भी आसान नहीं थी, कोरोना के बाद यह और भी मुश्किल हो चुकी है। गोद लेने वाले अभिभावकों को अपनी शादी के प्रमाण साथ ही कई डॉक्युमेंट्स देने होते हैं जिन्हें बाद में अडॉप्शन अथॉरिटी वैरिफाई भी करती है। इसमें काफी समय लगता है। अब कोरोना के चलते सरकारी कार्यालयों का काम बाधित हुआ है जिससे इन डॉक्युमेंट्स के बनने और मिलने में काफी देर हो रही है।'
गोद लेने की प्रक्रिया लंबी
डॉ. रत्ना वर्मा बताती हैं, 'इन कागजात के वैरिफिकेशन के बाद माता-पिता को अपने स्वास्थ्य के बारे में जानकारियां देनी होती हैं जिसके बाद एक कुशल काउंसलर अभिभावकों से मिलकर एक रिपोर्ट तैयार करता है जिसके आधार पर बच्चे को गोद लिए जाने की प्रक्रिया आगे बढ़ती है। कोरोना से जुड़े प्रतिबंधों के चलते इन काउंसिलरों का लोगों के घर जाना और उनसे मिलना संभव नहीं रह गया है।'
वह कहती हैं, 'कोरोना ने संभावित माता-पिता की स्थितियों में भी कई बदलाव किए हैं। लोग आर्थिक रूप से कमजोर हो गए हैं, जिससे वे एक और सदस्य की देख-रेख करने में खुद को समर्थ नहीं पा रहे। इसके अलावा कोरोना ने कई अनिश्चितताओं को बढ़ाया है और लोग मानसिक रूप से बच्चा अडॉप्ट करने के लिए आत्मविश्वास नहीं हासिल कर पा रहे हैं।'
गोद लेने की स्वीकार्यता कम
हालांकि जानकार कहते हैं, सबसे बड़ी परेशानी कानूनी तौर पर गोद लेने के बारे में लोगों को जानकारी न होना है। सबसे पहले अडॉप्शन पॉलिसी के बारे में लोगों को जागरूक करने जरूरत है। भारत में बहुत सी सरकारी योजनाओं का प्रचार दिखता है, लेकिन अडॉप्शन पॉलिसी का नहीं। अन्य योजनाओं की तरह इसे भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
दरअसल भारतीय समाज की सोच और मान्यताएं बच्चों को गोद लेने के पक्ष में नहीं हैं। यहां लोगों में वंश और परिवार की भावना मजबूत होती है जिसके चलते अगर लोग बच्चों को अडॉप्ट करने के बारे में सोचते भी हैं, तो ज्यादातर वे अपने ही रिश्तेदारों के बच्चों को गोद लेते हैं। कई बार यह प्रक्रिया कानूनी नहीं होती। कई बार यह बात रिकॉर्ड में भी नहीं आती और बाद में कई विवादों की जड़ बनती है।
जानकार मानते हैं कि गोद लेने वाले माताओं-पिताओं की एक कम्युनिटी डेवलप करना सबसे जरूरी है ताकि यह कदम सामान्य बन सके और ऐसे लोग गोद लेने की प्रक्रिया में एक-दूसरे की मदद भी करें।
गोद लेने के लिए कई कानून
भारत में बच्चों को गोद लेने से जुड़े कानून हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटिनेंस एक्ट, 1956 (HAMA) और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2000 (JJ Act) हैं। JJ एक्ट आने से पहले गैर हिंदू सिर्फ गार्डियंस एंड वार्ड एक्ट, 1980 (GWA) के तहत ही बच्चों को गोद ले सकते थे। हिंदुओं पर लागू होने वाले कानून HAMA से अलग GWA व्यक्ति विशेष को बच्चे का सिर्फ कानूनी अभिभावक बनाता है, प्राकृतिक नहीं। ऐसे में बच्चे के 21 साल का होने पर अभिभावक का रोल खत्म हो जाता है।
गोद लेने की प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव 2015 में आया, जब चाइल्ड अडॉप्शन रिसॉर्स इन्फॉर्मेशन एंड गाइडेंस सिस्टम (CARINGS) की शुरुआत की गई। यह गोद लेने योग्य बच्चों और संभावित माता-पिता के लिए एक केंद्रीय डेटाबेस है। CARINGS का लक्ष्य देरी के बिना ज्यादा से ज्यादा बच्चों की गोद लेने की प्रक्रिया को पूरा करना है। फिर भी इस गोद लेने के सिस्टम में कई कमियां हैं। वेबसाइट पर गोद लेने वालों की संख्या कुल गोद लेने योग्य बच्चों के मुकाबले 10 गुना से भी ज्यादा है।