कोरोना महामारी ने भारत के मकान मालिकों की आय पर भी असर डाला है। कॉलेज और कोचिंग संस्थान बंद हैं, छात्र अपने घरों के चले गए हैं। मकान खाली कर दिया है। मकान मालिकों को अपनी प्रॉपर्टी से किराया नहीं मिल रहा है।
64 साल के विश्वास इनामदार मुंबई के लोवर परेल इलाके में रहते हैं। मुंबई के बीचोबीच टाउन और सबर्ब को जोड़ते इस इलाके में सिर्फ इस शहर ही नहीं, बल्कि पूरे देश की कुछ सबसे बड़ी कंपनियों का मुख्यालय है। न्यूज चैनल, कॉर्पोरेट, प्रोडक्शन हाउस सब इस इलाके में हैं। जाहिर है यहां के फ्लैट महंगे किराए के बावजूद हमेशा डिमांड में रहते हैं। इनामदार इस इलाके में 2 फ्लैटों के मालिक हैं। एक में वे खुद रहते हैं और दूसरा फ्लैट उनके घर की कमाई का साधन है।
मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में हजारों लोगों के लिए प्रॉपर्टी, कमाई का बड़ा साधन होती है। इनामदार ने भी फ्लैट इसी इरादे से खरीदा था कि ये उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा। पर लगातार भारी किराया देने वाला उनका ये फ्लैट पिछले 2 महीनों से खाली है। इनामदार के मुताबिक उनके घर के लिए किराएदार हमेशा खाली होने से पहले ही मिल जाता था। लेकिन इस बार न सिर्फ उनका मकान बीच साल में अचानक खाली हो गया, बल्कि उन्हें अभी तक कोई दूसरा किराएदार भी नहीं मिला है।
दिल्ली के साकेत में रहने वाले नरेंद्र सेजवाल भी आस-पास के इलाकों में कई फ्लैटों के मालिक हैं। उनके ज्यादातर फ्लैटों में दिल्ली में पढ़ाई करने वाले छात्र या कोचिंग कर सरकारी नौकरियों की तैयारी करने वाले लोग रहते हैं। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे कई लोगों ने उनका फ्लैट छोड़ दिया। उनके मुताबिक पहले कुछ छात्र कॉलेज बंद होने की वजह से घर गए और फिर कॉलेज या ऑफिस न खुलने के हालात में कई लोगों ने उनके घर छोड़ दिए। इस वक्त उनके आधे से ज्यादा घर खाली हैं।
प्रॉपर्टी पर भी कोरोना का असर
दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु समेत कई बड़े शहरों में ऐसे कई फ्लैट आज खाली हैं, जहां घर मिल पाना ही बेहद मुश्किल होता था और इनामदार और सेजवाल जैसे कई लोगों की आमदनी पर भी खतरा मंडरा रहा है। कोरोना लॉकडाउन लगाते वक्त भारत सरकार ने मकान मालिकों से किराया न लेने की अपील की थी। कई लोगों ने किराया नहीं लिया तो कुछ ने अपनी मजबूरी का हवाला देते हुए किराए की मांग की।
लेकिन कोविड-19 के आने से अन्य सेक्टरों पर पड़ा प्रभाव अब रियल इस्टेट सेक्टर को भी रुला रहा है। बड़े शहरों में किराए के मकान में रहने वाले ज्यादातर लोग छोटे शहरों से पढ़ाई या रोजगार के लिए आने वाले लोग होते हैं। लॉकडाउन के कारण इनमें से ज्यादातर लोगों का या तो काम बंद हो गया या फिर उन्हें घर से ही काम करने को बोला गया।
बेंगलुरु की ज्यादातर सॉफ्टवेयर कंपनियां कुछ महीनों तक वर्क-फ्रॉम-होम के जरिए ही काम करने वाली हैं, साथ ही मार्च से सभी कॉलेज बंद हैं और प्रतियोगिता परीक्षीएं टाल दी गई हैं। ऐसे में कई लोगों के लिए इन बड़े शहरों में रहने और किराया देते रहने का मतलब ही नहीं। इस कारण अचानक कई फ्लैट खाली कर दिए गए हैं।
इनामदार एक और परेशानी का जिक्र करते हैं। उनका कहना है कि कोरोना के कारण लगी रोक के चलते उनके लिए घर दिखाना और अगर कोई राजी होता है तो कागजी कार्यवाही कर पाना लगभग नामुमकिन हो गया है। उनका कहना है कि मुंबई जैसे शहर में बिना एग्रीमेंट या ब्रोकर के बीच में पड़े कोई फ्लैट किराए पर नहीं उठता और मौजूदा हालात में दोनों ही चीजें बेहद मुश्किल हैं। लेकिन वे ये भी मानते हैं कि किराए से आने वाला पैसा उनके लिए उनके रोजमर्रा के खर्च के लिए काफी जरूरी है।
खाली हो गए हैं मकान
ग्रेटर नोएडा में रहने वाले ब्रोकर आशीष का भी कहना है कि उनके पास अचानक कई खाली फ्लैट्स के लिए किराएदार ढूंढने की मांग आ गई है। आशीष के मुताबिक कई लोग नौकरी जाने या वर्क-फ्रॉम-होम की स्थिति में अपने घरों में वापस चले गए हैं। उनका कहना है कि जिन मकान मालिकों को किस्त चुकाने के लिए किराए की जरूरत है, वे कम किराए पर भी घरों को देने को तैयार हैं।
आशीष के मुतबिक 'यहां कई ऐसे लोग हैं, जो मकान से आए किराए से ही अपनी किस्त भरते हैं। सरकार ने फिलहाल तो किराया और किस्त देने के लिए मोहलत दे दी है, पर कुछ वक्त में तो सभी को अपनी किस्तें ब्याज के साथ चुकानी ही होंगी, यही बात कई लोगों को परेशान कर रही है।'
पलायन करने वाले सिर्फ मजदूर ही नहीं
गुरुग्राम में रहने वाले रिंकू शाह ने कोरोना महामारी आने के कुछ ही वक्त पहले अपनी एक ट्रैवल एजेंसी शुरू की थी। लॉकडाउन लगने पर जब उनका काम रुक गया तो उन्होंने एक नौकरी कर ली, लेकिन कोरोनावायरस का कहर वहां भी पड़ा और उस कंपनी से उन्हें 1 हफ्ते में ही निकाल दिया गया। रिंकू का कहना है कि 1 महीने तक तो उन्होंने अपना खर्च जैसे-तैसे चलाया, लेकिन उसके बाद उनके पास किराया देने या खाने तक के भी पैसे नहीं बचे।
उनके पास झारखंड वापस जाने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा। वे अब अपना मकान छोड़कर वापस अपने गांव चले गए हैं। लेकिन किराया न मिलने की सूरत में उनके मकान मालिक ने उनका लैपटॉप जब्त कर लिया। रिंकू से पूछने पर कि वो कैसे अपना सामान वापस लेंगे? तो वे कहते हैं कि मैं घर में रहकर कुछ पैसे जमा कर लूंगा, लेकिन मकान मालिक की भी मजबूरी है। वे यह भी कहते हैं कि जब तक काम नहीं मिलता, वे शहर वापस नहीं जाएंगे।
काम नहीं तो क्यों रहें बड़े शहरों में?
मुंबई के बोरिवली में रहने वाले गणेश पाटिल को भी नौकरी जाने के कारण अपने गांव धुले जाना पड़ा। उनका कहना है कि मकान मालिक से उनके रिश्ते अच्छे थे, लेकिन किराया न दे पाने की स्थिति में उन्हें डर था कि उनके ऊपर मुसीबतें बढ़ जाएंगी। उनके मुताबिक सरकार के 4 महीने किराया न मांगने के फैसले से किरायदारों का सिरदर्द कम नहीं बल्कि बढ़ता है। वे कहते हैं कि मैं 4 महीने का किराया एकसाथ कैसे दे पाऊंगा? ऐसी हालत में जब काम ठप है और नौकरियां मिल नहीं रहीं, तो मुंबई में रहने का क्या फायदा?
किराए पर रहने वाले कई लोग या तो अब अपने शहरों में ही काम ढूंढ रहे हैं या फिर वे कोरोना की मुसीबत टलने तक अब शहर आने को तैयार नहीं। छात्रों को भी स्कूल या कॉलेज खुलने तक अपने घर वापस बुला लिया गया है। दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों में हर कॉलेज के आस-पास कई पीजी या हॉस्टल होते हैं, जहां उन शहरों में पढ़ने वाले लोग कम किराए और बेहतर सुविधाओं के लिए रुकते हैं। कोरोना के असर से अब वो पीजी भी लगभग खाली हो गए हैं।
बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी कॉलेज में पढ़ने वाले निशांत का कहना है कि वो भी अब इंदौर वापस आ गए हैं और फिलहाल क्लास ऑनलाइन होने की वजह से उनके सभी दोस्त भी अपने-अपने घरों से पढ़ाई कर रहे हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के भी कई छात्र फिलहाल अपने घर वापस जा चुके हैं। जाहिर है, वापस जाने वालों में से हर कोई बिना रहे अपना किराया देने में खुश नहीं, इसलिए लगातार कई घर खाली होते जा रहे हैं।