भारत: कैसे एक महिला संगठन के सवालों से सीख रहा है एआई?

DW
शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024 (10:12 IST)
-सीके/एए (एपी)
 
स्वास्थ्य के क्षेत्र में एआई (AI) के इस्तेमाल की कई संभावनाएं हैं। भारत में एक फाउंडेशन महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी सटीक जानकारी देने वाले एक एआई चैटबॉट (AI chatbot) को बनाने की कोशिश कर रहा है। कोमल विलास तटकरे कहती हैं कि उनके पास ऐसा कोई नहीं है जिससे वो अपने सबसे निजी (personal) स्वास्थ्य संबंधी सवाल पूछ सकें। वो 32 साल की हैं और एक गृहिणी और मां हैं।
 
उन्होंने बताया, 'मेरे घर में सिर्फ मर्द हैं। कोई और औरत नहीं है। मैं यहां किसी से बात नहीं करती इसलिए मैं मैंने इस ऐप का इस्तेमाल किया, क्योंकि यह मेरी निजी समस्याओं को सुलझाने में मेरी मदद करता है।' जिस ऐप की वो बात कर रही हैं, वह ओपनएआई के चैटजीपीटी मॉडल पर चलने वाले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ऐप है। इसे एक स्थानीय महिला संगठन 'मैना महिला फाउंडेशन' बना रही है।
 
तटकरे 'मैना बोलो' चैटबॉट से सवाल पूछती हैं और वह जवाब देता है। इसे बातचीत के जरिए तटकरे को एक गर्भ-निरोधक गोली के बारे में और उसे कैसे लेना है, पता चला। वो उन 80 टेस्ट यूजरों में से हैं जिन्हें इस संस्था ने चैटबॉट के प्रशिक्षण में मदद करने के लिए भर्ती किया है।
 
प्रजनन संबंधी विषयों पर जानकारी
 
चैटबॉट के पास यौन स्वास्थ्य से जुड़ी मेडिकल जानकारी का एक कस्टमाइज्ड डाटाबेस है लेकिन इसकी सफलता तटकरे जैसे टेस्ट यूजरों से मिले प्रशिक्षण पर निर्भर करती है। चैटबॉट इस समय एक पायलट परियोजना है लेकिन वह दुनियाभर में स्वास्थ्य पर एआई के असर को लेकर उस उम्मीद का प्रतिनिधित्व करता है, जो कई लोगों को है।
 
उम्मीद यह है कि आने वाले समय में एआई अलग अलग लोगों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में उनके अनुकूल सटीक मेडिकल जानकारी दे पाएगा और क्लिनिक या प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों से कहीं ज्यादा लोगों तक पहुंच पाएगा। प्रजनन संबंधी विषयों पर चैटबॉट के ध्यान देने की वजह से ऐसी जरूरी जानकारी भी मिल सकती है जिसे सामाजिक मानकों की वजह से और कहीं पर ढूंढना मुश्किल है।
 
मैना महिला फाउंडेशन की संस्थापक और सीईओ सुहानी जलोटा कहती हैं, 'अगर यह वाकई महिलाओं को यह गैर-आलोचनात्मक, निजी सलाह दे पाएगा तो यह यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी हासिल करने में क्रांतिकारी हो सकता है।'
 
फाउंडेशन को इस चैटबॉट को विकसित करने के लिए पिछले साल बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से करीब 82 लाख रुपयों का अनुदान मिला। गेट्स फाउंडेशन, पैट्रिक जे मैकगवर्न फाउंडेशन और डाटा डॉट ओआरजी जैसी फंडिंग संस्थाएं विशेष रूप से स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में समुदायों की भलाई के लिए एआई के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही हैं।
 
अभी काफी काम बाकी है
 
मैना महिला फाउंडेशन ने तटकरे जैसे टेस्ट यूजरों को भर्ती किया ताकि वे अपने असली सवाल लिख सकें। जैसे, 'क्या कंडोम के इस्तेमाल से एचआईवी हो सकता है?' या 'क्या मैं माहवारी के दौरान सेक्स कर सकती हूं?' फाउंडेशन का स्टाफ उसके बाद चैटबॉट की प्रतिक्रियाओं को करीब से मॉनिटर करता है और सत्यापित सवालों और जवाबों का डाटाबेस बनाता है जो आगे आने वाली प्रतक्रियाओं को बेहतर बनाने में मदद करता है।
 
यह चैटबॉट अभी व्यापक इस्तेमाल के लिए तैयार नहीं है। जलोटा ने बताया कि इसकी प्रतिक्रियाओं की सटीकता अभी बहुत अच्छी नहीं है और इसके अनुवाद में भी समस्याएं हैं। यूजर अक्सर सवाल एक से ज्यादा भाषाओं में लिखते हैं और हो सकता है कि वो चैटबॉट को प्रासंगिक प्रतिक्रिया देने में मदद करने के लिए पर्याप्त जानकारी न दे रहे हों।
 
जलोटा ने यह भी बताया, 'हम अभी तक पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हैं कि महिलाएं सब कुछ स्पष्ट समझ पा रही हैं या नहीं और जो भी जानकारी हम दे रहे हैं वह पूरी तरह से चिकित्सा की दृष्टि से सटीक है या नहीं।' अमेरिका के यूसी सान डिएगो हेल्थ के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर क्रिस्टोफर लॉन्गहर्स्ट ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में एआई के इस्तेमाल की परियोजनाओं का नेतृत्व किया है। उनका कहना है कि नए टूल्स के मरीजों पर असर को मापने और उसका परीक्षण करना जरूरी है।
 
उन्होंने बताया, 'हम बस यह मान नहीं सकते या बस भरोसा या उम्मीद नहीं कर सकते कि ये चीजें अच्छी ही होंगी। आपको वाकई उन्हें टेस्ट करना होगा।' उन्हें यह भी लगता है कि अगले 2 से 3 सालों में स्वास्थ्य में एआई की संभावनाओं को काफी ज्यादा आंका जा रहा है। लेकिन उन्हें लगता है कि 'अगले एक दशक में एआई स्वास्थ्य क्षेत्र में इतना असरदार हो जाएगा जितना पेनिसिलिन का लाया जाना था।'

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