आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भारतीय रक्षा परिदृश्य को नया आकार दे रही है। सैन्य अभियानों में फायदा पहुंचाने के अलावा सीमा सुरक्षा को मजबूत बनाने में भी एआई से मदद मिल रही है। अपनी क्षमताओं को मजबूत बनाने के लिहाज से भारतीय सेना पाकिस्तान और चीन से जुड़ी सीमाओं पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की निगरानी प्रणालियां तैनात कर रही है।
अधिकारियों ने संकेत दिए हैं कि सेना ने एआई आधारित 140 निगरानी प्रणालियां लगाई हैं जिनमें हाई रिजॉल्यूशन वाले कैमरे, सेंसर, अनमैन्ड एरियल व्हीकल (यूएवी) फीड और रडार फीड शामिल हैं। इन्हें एआई से जोड़ा गया है। इरादा सीमाओं पर घुसपैठ की शिनाख्त करने का है।
एआई का बढ़ता इस्तेमाल
एआई आधारित रियल-टाइम मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर, आतंकवाद निरोधी अभियानों में खुफिया जानकारी हासिल करने के लिए भी लगाए जा रहे हैं। प्रशिक्षुओं के पहले बैच के लिए सेना हाइटेक सैन्य सिम्युलेटर तकनीकों का इस्तेमाल भी कर रही है। यह रुझान बताता है कि निकट भविष्य में समूचे सैन्य प्रशिक्षण का यह अभिन्न हिस्सा बन सकता है।
रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया कि लॉजिस्टिक्स, इंफॉर्मेशन ऑपरेशन, खुफिया सूचना के संग्रहण और विश्लेषण में एआई बड़ी भूमिका निभा सकती है। भारत में एआई तकनीक का सैन्य इस्तेमाल अपेक्षाकृत हालिया है, फिर भी हम एआई वाले सैन्य उपकरणों की तैनाती में ठोस प्रगति कर चुके हैं।
भारतीय सेना एआई की संभावनओं को खंगालने पर जोर देने लगी है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले साल जुलाई में पहले एआई इन डिफेंस सिंपोजियम में नई विकसित 75 एआई तकनीकें लॉन्च की थीं। इसमें रोबोटिक्स, ऑटोमेशन उपकरण और इंटेलिजेंस सर्विलांस उपकरण दिखाए गए थे। अमेरिका और भारत डिफेंस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डायलॉग शुरू करने और अपनी साझा साइबर ट्रेनिंग को विस्तार देने पर भी सहमत हो गए हैं।
इस साल के शुरू में एशिया के सबसे बड़े एयर शो में से एक एयरो इंडिया में अग्नि-डी नाम से एआई आधारित सर्विलांस सॉफ्टवेयर लॉन्च किया गया था। इसे पूर्वी लद्दाख सेक्टर में तैनात किया गया है, यह इलाका चीन के करीब होने की वजह से सामरिक महत्व का है।
सॉफ्टवेयर, सेना के सर्विलांस कैमरों की लाइव और रिकॉर्डेड गतिविधियों में किसी हरकत, हथियार, वाहन, टैंक या मिसाइल को पहचान सकता है। उच्च स्तर की अल्गोरिदम की मदद से एआई आधारित सिस्टम वीडियो फुटेज का विश्लेषण करता है और सीमा पर किसी संदिग्ध हरकत की पहचान कर सैनिको को आगाह कर देता है।
युद्ध के साजोसामान पर असर
सुरक्षा से जुड़े एक थिंक टैंक डेल्ही पॉलिसी ग्रुप (डीपीजी) के मुताबिक भारतीय सेना हर साल एआई पर खर्च के लिए करीब 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर (47।2 मिलियन यूरो) अलग निकाल रही है।
डीपीजी का कहना है कि यह एक अच्छा प्रारंभिक कदम है, लेकिन हमारी प्रमुख सामरिक चुनौती चीन की तुलना में साफ तौर पर अपर्याप्त है। चीन इस रकम का 30 गुना ज्यादा खर्च कर रहा है। अगर हम तकनीक के चक्र में पीछे नहीं रहना चाहते तो और ज्यादा पैसा लगाना होगा और देसी कंपनियों को प्रोत्साहित करना होगा।
वैसे तो अमेरिका और चीन दोनों ही एआई शोध और तकनीक में अव्वल हैं और अपनी अपनी रक्षा प्रणालियों में उन्होंने आला दर्जे की नई तकनीकें शामिल कर ली हैं, लेकिन भारत भी पीछे नहीं है। भारत इंटेलिजेंस युद्ध रणनीतियों के अग्रिम मोर्चे पर खुद को स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
रक्षा विश्लेषक शंकर प्रसाद ने डीडब्ल्यू को बताया कि सीमा नियंत्रण से लेकर व्यापक सर्विलांस और दिन रात के टोही अभियानों में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले, एआई आधारित विमान तकनीक से लैस ड्रोन का इस्तेमाल करते हुए, दुनिया की दूसरी सेनाओं की तरह भारत, युद्ध प्रणालियों में एआई को जोड़ने की अहमियत को महसूस करता है।
क्या इंसानी इंटेलिजेंस की अनदेखी की जा सकती है?
सबसे आला दर्जे की सर्विलांस प्रणालियों की भी सीमाएं होती हैं, प्रसाद इसे रेखांकित करते हुए 7 अक्टूबर को आतंकी समूह हमास के इस्राएल पर अचानक हमले का उदाहरण देते हैं। प्रसाद कहते हैं कि यह सबक हमें याद रखना होगा। इस्राएली सर्विलांस और इंटेलिजेंस दुनिया में सबसे आला दर्जे की प्रणालियों में शामिल हैं। फिर भी वो उस हमले को नहीं ताड़ पाए, चेतावनी का कोई सिग्नल उन्हें मिला ही नहीं।
सैन्य अभियानों के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पी आर कुमार की राय भी यही है। वो मानते हैं कि एआई उपकरणों से हासिल डाटा के आकलन के लिए इंसानी इंटेलिजेंस की दरकार थी।
कुमार ने डीडब्ल्यू को बताया कि जब बात उग्रवाद विरोधी और आतंकवाद विरोधी उपायों की होती है, तो इस बारे में कोई लिखित नियम कायदे नहीं होते। संचार या एआई डाटा की इलेक्ट्रॉनिक जासूसी, कभी आला दर्जे की नहीं हो सकती, खासतौर पर जब इंसानी गतिविधि का अंदाजा लगाना मुश्किल हो।
कुमार कहते हैं कि उन्नत सैन्य क्षमताएं तो हासिल की जा सकती हैं लेकिन डाटा तभी उपयोगी होगा जब इंसान उसे पढ़ और समझ सकें। दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र वैश्विक थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन से प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, सैन्य मंत्रालय की सभी तीनों सेवाएं आधुनिक युद्ध में तकनीकी उन्नतियों की अहमियत को समझती हैं, लेकिन सभी शाखाओं में उनका विकास एक जैसा नहीं रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक कि भारतीय सशस्त्र बल, सेवाओं में उभरती प्रौद्योगिकियों को शामिल करने के लिए तैयार हो रहे हैं। लेकिन नौसेना कई चुनौतियों से जूझ रही है, खासतौर पर वहां एआई के इस्तेमाल वाले क्षेत्रों की प्रामाणिक और ठोस पहचान करने के लिए पर्याप्त जैविक प्रतिभा की कमी है।
हाइटेक समाधानों के इस्तेमाल ने निगरानी के काम में इंसानी भागीदारी को कम किया है। दूरस्थ क्षेत्रों में देश की सीमाओं पर घुसपैठ की पहचान में भी आसानी हुई है, लेकिन उसकी संभावनाओं का पूरा उपयोग करने के लिए उससे जुड़ी बहुत सी चुनौतियों से निपटने की जरूरत है।
आधुनिक रक्षा प्रणाली में अपरिहार्य एआई
सेना के उप-प्रमुख पद से रिटायर हुए जनरल रवि साहनी बताते हैं कि एआई, आने वाले वर्षों में युद्ध का चेहरा बदलने को तत्पर कई सक्षम प्रौद्योगिकियों में एक है। साहनी ने डीडब्ल्यू को बताया कि अब ये ऐसी अवस्था में है कि एआई को शामिल ना करने वाली रक्षा सेवाओं को तकनीकी तौर पर कमजोर माना जाएगा। समस्या यह है कि सूचना का संग्रहण और विश्लेषण, वक्त खपाने वाली प्रक्रिया है।
वह कहते हैं कि लेकिन ये जानना अहम है कि सैन्य शक्ति के लिए एआई पर ज्यादा निर्भरता, युद्ध में इंसानी भागीदारी को कमतर नहीं बल्कि और भी ज्यादा महत्वपूर्ण बना देगी।