इंडोनेशिया में बहुत सारे लोग चाहते हैं कि देश में शरिया कानून लागू हो और महिला हिजाब पहनें। एक नए सर्वे में यह बात उभरकर सामने आयी है, जिससे देश में बढ़ते कट्टरपंथ का संकेत मिलता है।
सिंगापुर स्थित आईएसईएएस-यूसोफ इशाक इंस्टीट्यूट ने इंडोनेशिया में राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वे कराया जिसमें 1,620 लोगों ने हिस्सा लिया। इनमें से 82 प्रतिशत लोगों ने महिलाओं के लिए हिजाब का समर्थन किया। साथ ही देश में शरिया कानून को लागू करने के हक में भी बहुत सारे लोग हैं।
सर्वे के ये नतीजे ऐसे समय में सामने आए हैं जब इंडोनेशिया में दक्षिणपंथी इस्लामी राजनीतिक सरगर्मियों को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। 20 करोड़ आबादी वाला इंडोनेशिया दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश है। दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व में तुलनात्मक राजनीति, धर्म और राजनीति से जुड़े विषयों पर काम करने वाले और बॉस्टन यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर जेरमी मेंचिक कहते हैं, "इंडोनेशिया के लोग भी वैश्विक इस्लामी उभार का हिस्सा हैं, जिसके कारण धार्मिकता और इस्लाम के साथ सामाजिक पहचान का चलन लगातार बढ़ रहा है।"
वॉशिंगटन के नेशनल वार कॉलेज में प्रोफेसर और दक्षिणपूर्व एशिया सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ जाचरी अबुजा भी इस बात से सहमत हैं कि इंडोनेशिया में धार्मिकता और उसके प्रदर्शन का चलन बढ़ रहा है। वह बताते हैं कि यह चलन कई दशकों से चली आ रही उस प्रक्रिया का हिस्सा है जो 1980 के दशक में शुरू हुई। उस समय इंडोनेशिया में तानाशाह सुहार्तो का शासन था और जब वह वैधानिकता खोने लगे तो उन्होंने अपनी गिरती लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए इस्लाम और इस्लामी संस्थाओं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
वह कहते हैं, "अब राजनेता इस्लामी कट्टरपंथियों को खुश करने में लगे हुए हैं और शरियाकरण की नीतियों को चुनौती नहीं देते हैं।" अबुजा का इशारा ईशनिंदा कानून और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगाने वाले कदमों की तरफ है। यही नहीं, कभी धर्मनिरपेक्ष समझी जाने वाली सेना और पुलिस भी अब वैसी नहीं रही।
अबुजा बताते हैं कि देश में बढ़ती कट्टरता की एक वजह सऊदी अरब से आने वाला पैसा भी है जिससे कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले स्कूल चलाये जा रहे हैं। सऊदी अरब से भी लोग वहां जाकर कट्टर वहाबी विचारधारा का प्रचार कर रहे हैं।
हाल के सालों में ऐसे मौलवियों का प्रभाव भी बढ़ा है जो देश को पूरी तरह एक इस्लामी राष्ट्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आईएसईएएस के सर्वे में हिस्सा लेने वाले लोगों की बड़ी तादाद का मानना है कि अगर शरिया कानून को लागू किया जाए तो उसके बहुत फायदे होंगे। उनके अनुसार सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि समाज के नैतिक मूल्यों को सुरक्षित किया जा सकेगा।
दूसरी तरफ यह स्पष्ट नहीं है कि शरियत से लोगों का क्या अर्थ है क्योंकि इसे लेकर कई अलग अलग तरह की व्याख्याएं हैं। वैसे, चुनावों में इंडोनेशिया के लोग इस्लामी राजनीतिक दलों का ज्यादा समर्थन नहीं करते। राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें ज्यादा कामयाबी नहीं मिलती, लेकिन स्थानीय स्तर पर जरूर वे सत्ता में आ जाते हैं और फिर अपना सामाजिक एजेंडा लागू करते हैं। 1998 से स्थानीय स्तर पर ऐसे 440 कानून बने हैं जो शरियत को लागू करने से जुड़े हैं।
ऐसे में, सर्वे रिपोर्ट के लेखकों का कहना है कि सामाजिक नैतिक मूल्यों को सुरक्षित रखने के लिए ही ज्यादातर लोग शरिया कानून की पैरवी कर रहे हैं। अबुजा कहते हैं, "लोग समझते हैं कि शरियत नैतिकता से जुड़ी हुई है।" इंडोनेशिया मामलों की विशेषज्ञ रैचेल रिनाल्डो कहती हैं, "इंडोनेशिया में इस्लाम निश्चित तौर पर ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक हो गया है और राजनेता ऐसे रुढ़िवादी और कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों से निकटता बढ़ा रहे हैं जो शरियत को लागू करने जैसे कदमों का समर्थन करते हैं।"