यूएन के सख्त प्रतिबंध लागू होने के बाद अब क्या करेगा ईरान?

DW

रविवार, 5 अक्टूबर 2025 (08:07 IST)
नीलूफर घोलामी
ईरान को एक बार फिर अपने हथियारों के व्यापार, तेल निर्यात, अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग समेत कई अन्य क्षेत्रों पर सख्त अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। ये प्रतिबंध 2015 के परमाणु समझौते की स्नैपबैक व्यवस्था के तहत लागू किए गए हैं।
 
इस समझौते में एक तरफ ईरान है, और दूसरी तरफ अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस, चीन व यूरोपीय संघ (ईयू)। इस समझौते के तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित रखने का वादा किया था। इस आश्वासन के बदले उसपर लगे प्रतिबंध हटा लिए गए थे।
 
समझौते में यह भी लिखा था कि अगर ईरान नियम तोड़ेगा, तो किसी वोटिंग या वीटो के बगैर ही प्रतिबंध दोबारा लागू हो जाएंगे। यही स्नैपबैक है, जो असल में 'वीटो प्रूफ' है। इसका मतलब है कि समझौते के पक्षों में शामिल चीन और रूस भी इसे लागू करने में रुकावट नहीं डाल सकते।
 
साल 2018 में अमेरिका ने डॉनल्ड ट्रंप के शासनकाल में इस समझौते से बाहर निकलने का फैसला किया। साथ ही, उसने प्रतिबंधों को फिर से लागू कर दिया। वहीं, अन्य भागीदार देशों ने इस समझौते को बचाने और आर्थिक प्रतिबंधों में मिली छूट को जारी रखने की कोशिश की।
 
मगर इस साल अगस्त में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने मिलकर स्नैपबैक लागू कर दिया। इन तीनों देशों का आरोप है कि ईरान लगातार बहुत ज्यादा संवर्धित यूरेनियम बनाकर, अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों को पूरी पहुंच न देकर और अमेरिका के साथ 'सीधी और बिना शर्त बातचीत' न करके समझौते की शर्तों का पालन नहीं कर रहा है।
 
ईरान 'पूरी तरह से दमघोंटू प्रतिबंध' का सामना कर रहा है
चीन और रूस ने इस प्रक्रिया में देर करने की काफी कोशिश की। इसके बावजूद 30 दिनों की स्नैपबैक छूट की अवधि इस हफ्ते समाप्त हो गई। इसका साफ मतलब है कि ईरान पर पहले हटाए गए सभी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध अब अपने-आप फिर से लागू हो गए।
 
अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषक शाहीन मोदार्रेस ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह सिर्फ प्रतिबंधों का एक और दौर नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से दम घोंटने वाले प्रतिबंध हैं। ईरान ने वर्षों से इनका सामना नहीं किया है।" उन्होंने आगे कहा, "इसका मतलब है कि बैंकिंग चैनल बंद हो जाएंगे, तेल निर्यात बाधित होगा और बुनियादी व्यापार पर भी गंभीर असर पड़ेगा। आम ईरानियों की रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किलों से घिर जाएगी।"
 
मोदार्रेस के मुताबिक, इन दंडात्मक उपायों से ईरान की मुद्रा की कीमत कम होगी। नतीजतन, आयात काफी ज्यादा महंगा हो जाएगा। नौकरियां खत्म हो जाएंगी। महंगाई इतनी बढ़ जाएगी कि लोगों के लिए अपनी तनख्वाह में गुजारा करना मुश्किल हो जाएगा। मोदार्रेस बताते हैं, "अर्थशास्त्री इसके लिए एक शब्द का इस्तेमाल करते हैं- दुख सूचकांक। यह बेरोजगारी और महंगाई का संयुक्त सूचकांक है। ईरान में यह पहले से ही बहुत ज्यादा है। स्नैपबैक के कारण यह और भी ऊपर चढ़ जाएगा।"
 
जर्मन-ईरानी भौतिक विज्ञानी और परमाणु नीति विशेषज्ञ बेहरोज बयात ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस संकट का खामियाजा जनता को दो मोर्चों पर भुगतना पड़ेगा। उन्होंने कहा, "पहला, वे सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। खासकर मध्यम वर्ग, जो किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ होता है। दूसरा, इस्लामिक रिपब्लिक जैसी सरकारें पीछे हटने से इंकार कर सकती हैं और स्थिति पूर्ण युद्ध में बदल सकती है। आखिरकार यह सरकार गिर सकती है, लेकिन इसकी कीमत देश की बर्बादी के रूप में चुकानी पड़ सकती है। यह एक ऐसी स्थिति होगी जिसमें ईरानी जनता को इससे कोई लाभ नहीं होगा।"
 
क्या कूटनीति के जरिए कुछ किया जा सकता है?
प्रतिबंध फिर से लागू होने के बावजूद यूरोपीय अधिकारियों और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने दोहराया है कि वे ईरान के साथ कूटनीति और बातचीत जारी रखने के इच्छुक हैं।
 
हालांकि, ईरान के सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह अली खामेनेई ने हाल ही में अमेरिका के साथ बातचीत के विचार को 'पूरी तरह से बंद रास्ता' बताकर खारिज कर दिया था। वरिष्ठ ईरानी अधिकारियों ने भी इसी तरह की बात कही। इस वजह से कूटनीतिक विकल्प बहुत सीमित नजर आ रहे हैं। जैसा कि सुरक्षा विश्लेषक मोदार्रेस बताते हैं, "तेहरान के मौलवियों को पता है कि वैश्विक समुदाय ईरान के परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल, दोनों कार्यक्रमों को पूरी तरह से खत्म किए बिना किसी भी बात पर समझौता नहीं करेगा।"
 
उन्होंने आगे कहा, "अगर वे स्वेच्छा से इन कार्यक्रमों (परमाणु और मिसाइल) को खत्म कर देते हैं, तो वे उस एकमात्र समूह का समर्थन खो देंगे जो अभी भी उन्हें सत्ता में बनाए रखता है। यह समूह छोटा है, लेकिन सत्ता में इनकी पकड़ मजबूत है। ये लोग कट्टरपंथी विचारधारा पर चलते हैं। देश के अंदर सख्ती, जोर-जबरदस्ती और ताकत के बल पर लोगों को नियंत्रित करते हैं और विरोध को दबाते हैं।"
 
मोदार्रेस के मुताबिक, सरकार में शामिल लोग अपने जनाधार को खुश रखने के लिए हर संभव जोखिम उठाएंगे। यहां तक कि वे युद्ध भी छेड़ सकते हैं। उन्होंने कहा, "वे सोचते हैं कि अगर पश्चिमी देश हमला करते हैं, तो वही बाहरी लोग परमाणु ठिकाने और मिसाइल बेस नष्ट करेंगे, न कि वे खुद। इस तरह सरकार यह दावा कर सकेगी कि उसने कभी हार नहीं मानी, बल्कि उसे विदेशी हमले की वजह से इस स्थिति में आना पड़ा।"
 
मोदार्रेस का दावा है कि नेता टूटे हुए और बर्बाद ईरान को भी स्वीकार कर लेंगे, बशर्ते कि सत्ता की बागडोर तब भी उन्हीं के हाथों में हो।
 
क्या ईरान की सत्ता में बदलाव चाहता है अमेरिका?
ईरान में यह डर बढ़ रहा है कि वॉशिंगटन, तेहरान में सत्ता परिवर्तन कराना चाहता है। प्रतिबंधों की वापसी और हाल ही में इस्राएल के साथ हुए 12 दिन के युद्ध के कारण वहां के इस्लामी नेताओं की हालत पहले से ही अस्थिर हो चुकी। वे कमजोर महसूस कर रहे हैं।
 
पिछले हफ्ते तुर्की में अमेरिकी राजदूत टॉम बैरक की ओर से की गई टिप्पणियों से यह डर और बढ़ गया है। उन्होंने ईरान और हिज्बुल्लाह को वॉशिंगटन का दुश्मन कहा और बयान दिया कि अमेरिका को 'इन सांपों का सिर काट देना चाहिए।'
 
हालांकि, ईरानी विश्लेषक शाहीन मोदार्रेस का मानना है कि सिर्फ यह बयान अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव की उम्मीद करने के लिए काफी नहीं है। उन्होंने कहा, "इतिहास बताता है कि किसी देश की सरकार को बदलना सिर्फ भाषणों या बयानबाजी का मामला नहीं होता है। इसके लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति, जरूरी संसाधन और सबसे अहम, बदलाव के बाद के भविष्य का स्पष्ट नजरिया होना चाहिए।"
 
मोदार्रेस ने आगे कहा, "सत्ता परिवर्तन एक वास्तविक लक्ष्य तब बन सकता है, जब यह एक सामूहिक निर्णय के तौर पर उभरे। जिसे सिर्फ कुछ लोगों द्वारा नहीं, बल्कि व्हाइट हाउस, अमेरिकी संसद यानी कांग्रेस और अमेरिका की सुरक्षा संस्थाओं द्वारा स्वीकार किया जाए। साथ ही, विदेशी सहयोगियों से भी इसे लगातार समर्थन मिलता रहे।"
 
मोदार्रेस का कहना है कि अगर अमेरिका ईरान की सत्ता में बदलाव चाहता है, तो अमेरिकी नेताओं और संस्थाओं को इसे एक साझा लक्ष्य बनाना होगा। उन्हें 'इसके बाद के परिणामों के लिए तैयार रहना' होगा।
 
वह बताते हैं, "इन सबके बिना हमें जो दिख रहा है वह सिर्फ दबाव है, बदलाव नहीं। सरकार को कमजोर करने के लिए प्रतिबंध लगाना, उसके कार्यक्रमों को धीमा करने के लिए गुप्त कार्रवाई करना और उसकी पहुंच कम करने के लिए राजनयिक तौर पर अलग-थलग करना, ये उपाय ईरान के इस्लामी गणराज्य को मुश्किल में डाल सकते हैं। लेकिन ये अभी तक सत्ता परिवर्तन के लिए अमेरिका के आधिकारिक विचार को नहीं दिखाते हैं।"
 
ईरान के लिए आगे का रास्ता
चूंकि तेहरान एक बार फिर से अलग-थलग पड़ गया है, इसलिए ईरानी सरकार अपने कट्टरपंथी नेताओं की ओर से तय किए गए रास्ते पर चलने के लिए दृढ़ संकल्पित नजर आ रही है। स्नैपबैक लागू होने के साथ ही ईरान एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र चार्टर के चैप्टर VII के दायरे में आ गया है। इस दर्जे का मतलब है कि नौ करोड़ से अधिक आबादी वाला यह देश अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए एक खतरा बन गया है। 
 
ईरान के भीतर कई लोग इस चैप्टर के अनुच्छेद 41 के गंभीर असर पर बहस कर रहे हैं। यह अनुच्छेद संयुक्त राष्ट्र के फैसलों को 'लागू करने' के लिए 'सैन्य शक्ति का उपयोग किए बिना उपायों' को अपनाने की अनुमति देता है। इसमें आर्थिक, परिवहन, संचार और राजनयिक संबंध पूरी तरह से तोड़ने जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।
 
इसके अलावा, इस अध्याय के अनुच्छेद 42 में यह कहा गया है कि अगर इस तरह के उपाय 'अपर्याप्त साबित' होते हैं, तो सुरक्षा परिषद आगे की कार्रवाई कर सकती है। इसमें 'संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की हवाई, समुद्री या जमीनी सेनाओं द्वारा किए गए सैन्य अभियान' तक शामिल हैं।
 
इस मामले पर जर्मन-ईरानी विशेषज्ञ बयात बताते हैं, "संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ये प्रस्ताव और ईरान को चैप्टर VII के तहत रखना, फिलहाल किसी सैन्य संघर्ष को शुरू करने का आधार नहीं बनता है।" उन्होंने आगे कहा, "खास बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 41 सैन्य कार्रवाई की अनुमति नहीं देता है। बल प्रयोग की अनुमति सिर्फ अनुच्छेद 42 में दी गई है। हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि दुनिया हमेशा सख्त कानूनी नियमों के हिसाब से नहीं चलती है।"

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