जापान ने अपने यहां ऐसे काबू किया कोरोना वायरस

Webdunia
गुरुवार, 26 मार्च 2020 (08:18 IST)
रिपोर्ट : मार्टिन फ्रित्स (टोकियो)
 
चीन के करीब होने के बावजूद जापान में कोरोना वायरस उतना नहीं फैला जितना यूरोप और अमेरिका में। आखिर जापान ऐसा क्या कर रहा है, जो वहां वायरस का फैलाव इतना कम है?
 
जापान वसंत में चेरी के फूलों की बहार के लिए दुनियाभर में मशहूर है। जब बीते वीकेंड लोग इसका आनंद लेने बाहर निकले तो निश्चित तौर पर उनके जेहन में कोरोना को लेकर चिंताएं थीं। राजधानी टोकियो के ऊएनो पार्क के एक कर्मचारी का कहना है कि हनामी यानी फूलों का यह महोत्सव हम जापानी लोगों के लिए साल का सबसे अहम आयोजन है।
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जापान में 24 मार्च तक कोरोना के कुल मामले 1,200 के आसपास थे जबकि 43 लोग वहां अब तक इस वायरस के चलते मारे गए हैं। हर दिन वहां कुछ ही दर्जन नए मामले सामने आ रहे हैं। इसे राहत की बात ही कहा जाएगा, क्योंकि जापान बहुत ही सघन आबादी वाला देश है और वहां दुनिया में जनसंख्या के अनुपात में सबसे ज्यादा बुजुर्ग लोग रहते हैं। चीन के साथ भी उसका बहुत नजदीकी संपर्क है, जहां से यह वायरस पूरी दुनिया में फैला। जनवरी में 9.2 लाख चीनी लोगों ने जापान की यात्रा की थी जबकि फरवरी में 89 हजार लोग चीन से जापान गए।
 
कोरोना वायरस के मद्देनजर जापान की सरकार ने मार्च के अंत में होने वाली वसंत की छुट्टियों से 2 हफ्ते पहले ही सभी स्कूलों को बंद कर दिया था और सभी सार्वजनिक आयोजन रद्द कर दिए गए। लेकिन दुकान और रेस्तरां खुले रह सकते थे और कुछ जापानी कर्मचारियों ने घर से काम करने का फैसला किया।
कैसे रोका फैलाव?
 
जापान में कोरोना वायरस के कम मामलों के चलते शुरू में संदेह हुआ कि सरकार शायद सच को छिपा रही है। टोकियो में जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर जैपेनीज स्टडीज में समाजशास्त्री बारबरा होल्थुस का कहना है कि 2011 के फुकुशिमा परमाणु हादसे के बाद शुरू में सरकार ने यह मानने से इंकार कर दिया था कि रिएक्टर पिघल गया था। इसीलिए आज भी लोग सरकारी बयानों पर आसानी से भरोसा नहीं कर पाते हैं।
 
जापान में हर दिन 6,000 डायग्नोस्टिक टेस्ट करने की क्षमता है, फिर भी वहां लगभग 14,000 नमूनों को ही परखा गया है। यह संख्या पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया के मुकाबले 20 गुना कम है, जो इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में शामिल है। 
 
जापान के मेडिकल गवर्नेंस रिसर्च इंस्टीट्यूट में वायरोलॉजिस्ट मासाहीरो कामी कहते हैं कि जिन लोगों में सबसे गंभीर लक्षण दिख रहे हैं, सिर्फ उन्हीं का टेस्ट हो रहा है। उनके मुताबिक इसका मतलब है कि ऐसे मामले बहुत ज्यादा हो सकते हैं, जो रिपोर्ट नहीं हुए हैं।
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राजनीति विज्ञानी कोइची नाकानो कहते हैं कि प्रधानमंत्री शिंजो आबे शायद जापान को एक सुरक्षित देश के तौर पर पेश करना चाहते थे ताकि उनके देश से ओलंपिक खेलों की मेजबानी न छिने। हालांकि अब अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने इन खेलों को अगले साल के लिए टाल दिया है।
 
स्वास्थ्य मंत्रालय के विशेषज्ञ ऐसी आलोचनाओं को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि बड़े पैमाने पर टेस्ट करने की बजाय उन्होंने कोविड-19 के बढ़ते केसों पर नजर रखी। जब उत्तरी द्वीप होक्काइदो में एक प्राइमरी स्कूल में वायरस फैलने का मामला सामने आया तो पूरे प्रीफैक्चर में स्कूलों को बंद करके इमरजेंसी लगा दी गई। इसके 3 हफ्ते बाद वायरस रुक गया।
 
टोकियो यूनिवर्सिटी में जर्मन राजनीतिक विज्ञानी सेबास्टियान मासलोव का कहना है कि कम संख्या में टेस्ट करने का मकसद यह था कि स्वास्थ्य सेवा संसाधन संक्रमण के गंभीर मामलों के लिए उपलब्ध रह सकें।
मास्क बना रक्षा कवच
 
इसके अलावा जापानी लोग जब एक-दूसरे से मिलते हैं तो हाथ मिलाने या फिर गाल पर चुंबन करने की बजाय वे झुकते हैं। साथ ही जापान में बचपन से ही लोगों को बहुत साफ-सफाई रखना सिखाया जाता है। 2 बच्चों की एक जापानी मां कहती है कि अपने हाथ धोना, डिसइंफेक्ट मिश्रण से गारगल करना और मास्क पहनना हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा हैं।
 
वे कहती हैं कि यह सब सीखने के लिए हमें कोरोना वायरस की जरूरत नहीं है। इसी का नतीजा था कि जब फरवरी में यह वायरस फैलने लगा तो पूरा समाज एकदम एंटी-इंफेक्शन मोड में आ गया। दुकानों और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों के दरवाजे पर सैनिटाइजर रख दिए गए और मास्क पहनना सबकी जिम्मेदारी बन गया।
 
जापान में हर साल 5.5 अरब मास्क की खपत होती है यानी एक व्यक्ति यहां औसतन 43 मास्क इस्तेमाल करता है। जाहिर है कि कोरोना वायरस फैलने के बाद मास्क की बिक्री यहां भी अचानक से बढ़ी। यहां तक कि मास्क की राशनिंग करनी पड़ी। लोग दुकान खुलने से पहले ही लाइन लगाकर खड़े हो जाते थे।
 
जापान में कई साल तक रहने वाले एक जर्मन बिजनेस मैनेजर मिषाएल पाउमन कहते हैं कि शायद जापानी लोगों ने यह समझ लिया है कि किसी व्यक्ति में लक्षण न दिखने के बावजूद संक्रमण हो सकता है। वे कहते हैं कि जब आप मास्क पहनते हैं तो दूसरों को बचाते हैं, उन तक वायरस नहीं फैलाते हैं। मास्क पहनने की वजह से भी कोरोना के मामलों को रोकने में मदद मिली है।
 
पश्चिमी देशों के 5 डॉक्टरों के हालिया अध्ययन में पता चला है कि मास्क पहनने से कोरोना को फैलाने वाली छोटी-छोटी बूंदों के दूसरे लोगों में जाने यानी वायरस फैलने की आशंका कम होती है।
 
इन डॉक्टरों में बॉन के काइजर रिसर्च ग्रुप के डॉ. फाबियान स्वारा और वियना की मेडिकल यूनिवर्सिटी के मथियास जामवाल्ड ने भी हिस्सा लिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि सामाजिक दूरी और हाथ धोने के अलावा मास्क इस वायरस को फैलने से रोकने में अहम रोल अदा कर सकते हैं। जापान का अनुभव इस बात को साबित करता है।

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