कार्ल मार्क्स: मोजेल का उस्ताद

Webdunia
शनिवार, 5 मई 2018 (17:47 IST)
कार्ल मार्क्स की गिनती निश्चित रूप से जर्मनी के सबसे महान दार्शनिकों में होती हैं। लेकिन अगर कार्ल मार्क्स आज जिंदा होते तो क्या उन्हें अपना काम पंसद आता? उन्होंने कुछ ही शर्तों में एक हाथ में ताकत की बात कही थी।
 
व्यावहारिक नजरें
कार्ल मार्क्स न सिर्फ एक महान चिंतक थे बल्कि वह एक स्टाइलिस्ट भी थे। उन्होंने उस वक्त ही इंसान के आधुनिक जीवन की अहम आर्थिक समीक्षा की। मार्क्स ने कहा कि आर्थिक दबाव के चलते इंसान "आखिरकार आपसी रिश्तों को व्यावहारिक नजरों से देखने के लिए बाध्य होंगे।" दार्शनिक मार्क्स के मुताबिक पूंजीवाद और पुर्नजागरण के बीच एक खामोश रिश्ता बनेगा।
 
विचारक और नदी
कार्ल मार्क्स बेहद रूमानी प्राकृतिक खूबसूरती के बीच पले बढ़े। उनका घर मोजेल नदी के किनारे बसे शहर ट्रियर में था। इसे आज भी जर्मनी के सबसे खूबसूरत इलाकों में गिना जाता है। ट्रियर से कुछ दूरी पर फ्रांस है, जहां 1789 में क्रांति हुई और उससे "आजादी, समानता और भाईचारे" के विचार निकले। बहुद जल्द ही ये नारे ट्रियर तक पहुंचे।
 
खूबसूरत मन
अपने शुरुआती जीवन में कार्ल मार्क्स एक रोमांटिक कवि थे। उनकी एक कविता है, "मैं भीतरी इच्छाशक्ति, लगातार घुमड़ती दहाड़ों और हमेशा बनी रहने वाली चमक से अविभूत हूं।" ये पंक्तियां उन्होंने अपनी प्रेमिका जेनी फॉन वेस्टफालेन के लिए लिखी। जेनी ने प्यार की स्वीकृति दी और जून 1843 में दोनों ने शादी कर ली। मार्क्स ने पहले रजिस्ट्रार ऑफिस में शादी की और फिर, आप माने न मानें, चर्च में भी।
 
दोस्त और फाइनेंसर
अपने जीते जी मार्क्स पैसे का इंतजाम नहीं कर सके। उनका परिवार बुरी तरह कर्ज में डूबा था। लेकिन 1840 के दशक में मार्क्स की जिंदगी में फ्रीडरिष एंगेल्स आए। एंगेल्स एक बौद्धिक शख्सियत होने के साथ साथ धनी फैक्ट्री मालिक के बेटे भी थे। उन्होंने ताउम्र मार्क्स की मदद की। मार्क्स को अब भी अक्सर साहूकारों से कर्ज की जरूरत होती, लेकिन पहले से बहुत कम।
 
स्वामित्व और स्वामी
कार्ल मार्क्स ने अपनी सबसे अहम किताब "दस कैपिटल" में लिखा है कि पूंजीपतियों पर नियंत्रण के लिए " उत्पादन के साधनों का राष्ट्रीयकरण जरूरी है।" मार्क्स कहते हैं, ऐसा करने से ही आखिरकार "पूंजीवादी कवच" टूटेगा। फिर शोषण करने वालों के गिरेबान पकड़े जाएंगे, दूसरों को लूटने वाले खुद लुटेंगे। शब्दों के चयन से पता चलता है कि पुराने स्कूल के समाजवादियोंको लैटिन भाषा की भी ठोस सम
 
इतिहास त्रासदी है और नाटक भी
मार्क्स ने फ्रांस के राजा चार्ल्स लुई नेपोलियन बोनापार्ट का बड़ी गहराई से अध्ययन किया। नेपोलियन बोनापार्ट ने 1851 में खुद को फ्रांस का राजा घोषित किया। उसका आदर्श पूर्व राजा नेपोलियन था। इस पर टिप्पणी करते हुए मार्क्स ने कहा, "इतिहास खुद को दोहराता है, पहली बार त्रासदी के रूप में और दूसरी बार हास्य से भरे नाटक के रूप में।
 
"मैं कोई मार्क्सवादी नहीं हूं"
मार्क्स के नाम पर क्रांति का झंडा उठाकर दुनिया भर में कई तानाशाही ताकतें सत्ता में आईं। ताकत के बल पर उन्होंने मार्क्स के विचारों को अमल में लाने की कोशिश की। लेकिन मार्क्स इस खतरे को पहले ही भांप चुके थे। एक बार उन्होंने कहा, मैं जो कुछ भी जानता हूं, उसके आधार पर कहता हूं कि "मैं कोई मार्क्सवादी नहीं हूं।" हालांकि इस बयान की कभी पुष्टि नहीं हुई। मार्क्स अपने काम को उदारवाद से जोड़कर देखते थे।
 
लाल पूरब
पूरब लाल है और अफ्रीका में भी। इसी अंदाज में इथोपिया में मार्क्स और एंगेल्स का जश्न मना। इसके बाद दुनिया ने लेनिन को देखा और ऐसा लगने लगा जैसे मार्क्स और लेनिन ही दुनिया का उज्ज्वल भविष्य हैं। उनके विचारों का समर्थन दुनिया भर में बड़े जनसमुदाय ने किया। 1987 में अदीस अबाबा में हाइले मेनगिस्टुस के सत्ता में आने की 13वीं वर्षगांठ के मौके पर इसका सबूत मिला।
 
देश छोड़कर भागे लोग
1989 तक मार्क्स के सिद्धांतों के नाम पर पूर्वी यूरोप में कई तानाशाही सत्ताएं आईं। बाद में आर्थिक तंगी के चलते वो पस्त पड़ गईं। दुनिया को हैरान करते हुए समाजवादी ढांचे वाले देश धराशायी हो गए। हंगरी ने पश्चिम के लिए अपनी सीमा खोल दी। पूर्वी जर्मनी के नागरिक भी एक ही चीज चाहते थे, देश छोड़कर भागना। 1989 के बाद मार्क्स के आसपास खामोशी छाने लगी।
 
क्रांति का अधूरा प्रोजेक्ट
कम्युनिज्म के धराशायी होने के कुछ समय बाद मार्क्स फिर से सामने आ गए। इस बार बर्लिन में ग्रैफिटी आर्ट के जरिए। उनकी टीशर्ट पर पर लिखा है, "मैं तुम्हें समझा चुका हूं कि तुम कैसे दुनिया बदल सकते हो।" तस्वीर में मार्क्स उम्रदराज और रिटायर हो चुके शख्स हैं, जो कमाई के लिए बिखरी बियर की बोतलें जमा कर रहे हैं।
 
सुपरमैन
चीन के कलाकार वू वाईशान ने कार्ल मार्क्स की चार मीटर से ऊंची प्रतिमा बनाई है। कलाकार के मुताबिक, "उनके लंबे बाल और लंबा कोट उनकी बुद्धिमत्ता को आत्मसात करते हैं।" ट्रियर के लोगों ने लंबे वक्त तक चीन की इस मूर्ति को स्वीकार नहीं किया। लोग मानवाधिकारों को लेकर चीन से नाराज थे। क्या मार्क्स को इसका अंदाजा था?
 
आखिरी पुकार
1883 में 64 साल की उम्र में लंदन में कार्ल मार्क्स ने आखिरी सांस ली। उनकी कब्र हाईगेट सिमेट्री में है। कब्र के ऊपर मार्क्स की प्रतिमा लगी है और नीचे लिखा है, "दुनिया भर के मजदूरों एक हो जाओ।" (रिपोर्ट: केर्स्टन क्निप/ओएसजे)
 

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