इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़तीं महिलाएं

DW

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014 (11:24 IST)
इस्लामिक स्टेट आईएस के जिहादियों को रोकने के लिए कुर्दों ने अपनी सेना बनाई है। अब कुर्द महिलाएं भी लड़ाई में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रही हैं।

आसिया ने सैनिकों वाली खाकी वर्दी पहनी है। उसके कंधे पर एक बंदूक लटक रही है। जंग के मैदान में चमकती उसकी चटक पीली जुराब से उसकी उम्र का पता चलता है। 19 साल की आसिया कुर्द पीपुल्स प्रोटेक्शन यूनिट यानी वाईपीजी की सदस्य है। वाईपीजी में 40,000 से 50,000 कुर्द लड़ाके हैं जो सीरिया में इस्लामी चरमपंथियों से खुद को बचाना चाहते हैं।

इराक और सीरिया की सीमा पर अल यारूबिया में डीडब्ल्यू से बात कर रही आसिया ने कहा कि उन्होंने तीन वजहों से सेना में शामिल होना सही समझा, 'पहले तो उन लोगों के लिए जो हमारे देश के लिए कुर्बान हुए, दूसरे हमारे लोगों की राष्ट्रवादी भावना और हमारे राष्ट्रीय गीतों के लिए और इसलिए कि हमारे समाज में इतने सैनिक हैं। जहां भी देखों, वहां एक सिपाही खड़ा है।'

आसिया को अपने काम में मजा आता है। उनकी कई सहेलियां सेना में लड़ती हैं, 'हमारे पास हेलमेट या कवच नहीं है लेकिन लड़कियों को भी किसी से डर नहीं। अगर हम शहीद भी हो जाएं, तो वह हमारे नेता के लिए होगा।'

वाईपीजी के सैनिकों को एक महीने की ट्रेनिंग दी जाती है। वह मशीन गन, रॉकेट ग्रेनेड लॉन्चर और एके47 को इस्तेमाल करना सीखती हैं। ज्यादातर माएं जंग पर लड़ने नहीं जातीं, लेकिन कुछ ऐसी हैं जो बच्चे होने के बाद भी सिपाही बनी रहती हैं।

अच्छे सैनिक : वाईपीजी कुर्दिस्तान मजदूर आंदोलन पीकेके के करीब है। पीकेके तुर्की, अमेरिका और यूरोपीय संघ में आंतकवादी संगठन माना जाता है क्योंकि पिछले तीस साल से वह तुर्की के खिलाफ अलगाववादी कार्रवाई कर रहा है।

लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि कुर्द इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ने में सबसे सफल रहे हैं। हालांकि उन्हें पश्चिमी देशों से कम समर्थन मिल रहा है क्योंकि पश्चिमी देश उन्हें पीकेके से जोड़कर देखते हैं।

वाईपीजी के प्रवक्ता रेदूर खलील दलील देते हैं कि उनका संगठन पीकेके से सैद्धांतिक तौर पर करीब है लेकिन जहां तक संगठन की बात है, वाईपीजी अलग काम करता है। पश्चिमी देश इसीलिये शायद वाईपीजी की इतनी मदद नहीं करते क्योंकि वे तुर्की में एक स्वायत्त कुर्द इलाके के पक्ष में नहीं हैं।

'घर पर बैठने से अच्छा है' : जंग के मैदान से दूरी एक किलोमीटर की भी नहीं है लेकिन टीवी के सामने बैठी कुछ लड़कियां आपस में हंसी मजाक कर रही है। पीछे एक लड़की मोबाइल फोन पर इस्लामिक स्टेट के जिहादियों की तस्वीर दिखा रही है जो लड़ाई में मारे गए हैं। एक लड़की बताती है कि आईएस ही उनका मकसद है।

18 साल की गुलन सिगरेट पीते हुए एलान कर रही है कि वह उम्र में सबसे छोटी सिपाही है। वह एक साल पहले सेना में भर्ती हुई। 21 साल की गुलबहार की चोटी में रंग बिरंगे क्लिप लगे हैं। वह कहती है, 'मैं घर और आसपास काम करते करते थक जाती थी। फिर सो जाती थी। करने को कुछ भी नहीं था। जब माहौल बदला तो मैं वाईपीजे की सदस्य बन गई...घर पर बैठे रहने से यह अच्छा है।'

डर नहीं लगता : गुलबहार को मरने का डर नहीं, 'जाहिर है, पहली बार आप सीमा पर लड़ते हैं और लोग गोली मारते हैं तो आपको डर लगता है, लेकिन अब आदत हो गई है।' लेकिन जब युद्ध खत्म हो जाएगा, तब क्या करेंगे, यह गुलबहार नहीं जानती, 'शायद हम शहीद हो जाएंगे, पता नहीं।'

फिर खबर आती है कि सरहद पर दोबारा गोलियां चलने लगी हैं। एक लड़की कहती है, 'चलो अब मजा आने वाला है' और जल्दी से अपने कंधों पर बंदूक लटकाते हुए सारी लड़कियां एक जीप में बैठकर जंग के मैदान की ओर रवाना होती है।

रिपोर्टः सोफी कूजां, अल यारुबिया, सीरिया/एमजी
संपादनः आभा मोंढे

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