भारत के महाराष्ट्र में महिलाएं पुलिस में भर्ती होकर अपना जीवन तो संवार ही रही हैं, उनके माता—पिता को दहेज देने से भी छुटकारा मिल रहा है। उन्हें समाज में इज्जत और प्रतिष्ठा भी मिल रही है।
कॉस्टेबल मीना घोड़के स्थानीय पुलिस बल में भले ही सबसे निचले पायदान पर हैं लेकिन अपने गांव में वह इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला या पुरुष हैं। एक ओर स्कूल से लेकर खेत पर काम करने, जल्दी शादी और मां बनने तथा दूसरी ओर नौकरी लेने के बीच गहरी खाई थी, जिसे घोड़के ने पार किया। गांव की वैसी महिलाएं जो अपने जीवन में कुछ अलग करना चाहती थी, उन्हीं में से एक 26 वर्षीय घोड़के हैं, जिन्होंने इसके लिए पूरी तैयारी की।
वह कहती हैं, "न तो मैं खेतों में काम करना चाहती थी और न ही शादी। मैंने अपने स्कूल के आधे दिन खेत में ही गुजारे लेकिन पैदावार हमेशा खराब रही। मैं खुद को कभी सम्मानित महसूस नहीं कर सकी।" पश्चिमी भारत के महाराष्ट्र के बीड की रहने वाली घोड़के ने अपने 'नेम टैग' को पिन किया, बेल्ट और बाल बांधे तथा स्थानीय थाने के लिए निकल गई, जहां वह काम करती हैं। इस दौरान वे कहती हैं, "जब मेरा पुलिस में चयन हुआ तो गांववालों ने मुझे बधाई दी।" घोड़के करीब चार साल से कॉस्टेबल के रूप में काम कर रही हैं और बीड के एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट में तैनात हैं।
बीड महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाके में है, जहां वर्षों से सूखे की वजह से पैदावार न के बराबर होती है और किसानों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता है। पुरुषों के साथ काम करने के लिए दुल्हनों की मांग बढ़ जाती है, जिससे परिवार अधिक कमाता है। घोड़के कहती हैं, "मेरी बड़ी बहन की शादी तब हुई जब वह सातवीं कक्षा में थी। उस समय उसकी उम्र करीब 14 साल थी। मेरे साथ स्कूल में पांच दूसरी लड़कियां भी थी। शादी के लिए उनकी पढ़ाई छुड़वा दी गई और वे खेतों में काम करने लगी। मैं उनकी तरह नहीं बनना चाहती थी।"
जब घोडके ने एक स्थानीय अखबार में पुलिस भर्ती विज्ञापन देखा, तो उसने आगे की योजना बनाई। उस समय परिवारवाले उसकी शादी की योजना बना रहे थे लेकिन उसने अपने पिता से परीक्षा में शामिल होने का आग्रह किया। पिता ने इस शर्त के साथ स्वीकृति दी कि यदि वह फेल हो गई तो उसकी शादी करवा दी जाएगी।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में पुलिस में महिलाओं की संख्या महज 7 प्रतिशत के आसपास है। इसमें ज्यादातर कॉन्सटेबल हैं। महाराष्ट्र ने दो दशक पहले महिलाओं के लिए पुलिस में 33 प्रतिशत आरक्षण देना शुरू किया था। पूरे देश में महाराष्ट्र में ही सबसे ज्यादा महिलाएं पुलिस में है। पूरे भारत में कुल 1,00,000 महिला कांस्टेबलों में से लगभग 20% इसी राज्य में हैं।
पुलिस डाटा के अनुसार, 2014 से 2018 तक बीड में पुलिस विभाग में 100 पदों पर निकली बहाली के लिए 3500 से ज्यादा महिलाओं ने आवेदन किए। अधिकारियों का कहना है कि महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के एक पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में 630 महिला कांस्टेबल प्रशिक्षित हुए, इनमें अधिकांश गांवों की रहने वाली थी।
सोलापुर ट्रेनिंग सेंटर की प्रमुख कविता नेरकर कहती हैं, "यहां न तो पानी है और न ही रोजगार है। 12वीं पास होने के बाद 18 साल की उम्र में आप एक नौकरी और पुलिस वर्दी पाते हैं। यह कई लोगों के लिए प्रेरणादायक है। नौकरी पाने वालों के माता-पिता को गांव में ज्यादा इज्जत मिलती है। यह काफी मायने रखता है। मैंने देखा कि कई माता-पिता अपने बच्चों को फोर्स में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।"
महाराष्ट्र के एक पहाड़ी शहर खंडाला में ऑल वुमेन पुलिस ट्रेनिंग सेंटर की अधीक्षक और प्रिंसिपल स्मिता पाटिल ने कहा, "जुनून और गर्व" लड़कियों को फोर्स में लाती है। जब मैं गांव जाती हूं, कई सारी लड़कियां मुझसे पूछती हैं कि उन्हें फोर्स में शामिल होने के लिए क्या करना चाहिए।
काम करने के लिए दुल्हन
गन्ने के खेतों में काम करने वालों के लिए कर्ज से मुक्ति पाना जीवन में बड़ा बदलाव होता है। श्रमिक आमतौर पर छह महीने काम करने के लिए अनुबंध करते हैं। वे एडवांस में पैसे लेते हैं और फिर पैसे चुकाने की वजह से जाल में फंस जाते हैं। यहां उनका लगातार शोषण होता रहता है और शायद ही वे इस चक्र से बाहर निकल पाते हैं। पलायन के इस तरीके ने बाल विवाह को बढ़ावा दिया है क्योंकि खेतों में काम करवाने वाले जोड़ों (पति-पत्नी) को तवज्जो देते हैं क्योंकि यहां दो लोगों का काम होता है। एक गन्ना काटता हैं और दूसरा उसे बांधता हैं।
ढेंकमोहा गांव के प्रमुख प्रकाश ठाकुर कहते हैं, "यह काम कर एक जोड़ा छह महीने में करीब 1 लाख रुपये तक कमा लेते हैं। ऐसे में माता—पिता 'काम के लिए दुल्हन' की तलाश कर रहे व्यक्ति से अपनी बेटी की शादी कर देते हैं।" राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े यह बताते हैं कि बीड में आधे से ज्यादा स्थानीय महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है। यह राष्ट्रीय औसत से दोगुना है।
ठाकुर कहते हैं, "ढेंकमोहा और उससे सटे जुजगावन गांवों में पिछले चार वर्षों में पांच महिलाएं पुलिस में शामिल हुई हैं। ऐसा पहली बार हुआ है।" पुलिस में नौकरी की शुरूआत में करीब 18 हजार रुपये प्रति महीने वेतन मिलता है और माता-पिता को बेटी की शादी के लिए दहेज भी नहीं देना पड़ता है। ठाकुर कहते हैं, "इस इलाके में दहेज आम बात है लेकिन उन माता-पिता को दहेज नहीं देना पड़ा है जिनकी बेटियों का चयन पुलिस में हुआ।"
महिलाओं के बीच एक नई लहर
भारतीय पुलिस सेवा से 2017 में सेवानिवृत होने वाली मीरा बोरवंकर याद करते हुए बताती हैं कि उन्होंने वर्ष 1996 में एक स्थानीय पुलिस अधीक्षक के तौर पर एक कॉस्टेबल भर्ती अभियान का आयोजन करवाया था। वे कहती हैं, "एक भी लड़की उत्तीर्ण नहीं हुई थी। वे दुबली-पतली और कमजोर थीं। इसके बाद एक और भर्ती अभियान चला जिसमें दर्जनों की संख्या में लड़कियां आयी। वे शारीरिक रूप से तैयार, फुर्तीली और प्रेरित थीं। जब उनका चयन हुआ तो वे काफी खुश हुईं।"
कॉन्स्टेबल बनने के लिए आवेदक को कम से कम 12वीं पास होना चाहिए। इसके बाद शारीरिक फिटनेस टेस्ट और एक लिखित परीक्षा होती है। सिंधू उगाले 33 साल की उम्र में नायक है जो कॉन्स्टेबल से एक पद ऊपर है।
वे कहती हैं, "स्कूल ने लिखित परीक्षा की तैयारी में मदद की, लेकिन मुझे नहीं पता था कि फिटनेस टेस्ट में क्या होगा। इसके बावजूद, 100 मीटर, फिर 800 मीटर दौड़ी, और उस लंबी छलांग में कामयाब रही। खेत पर मेहनत करने, पानी के लिए मीलों पैदल चलने और मवेशियों को चराने की वजह से शारीरिक रूप से स्वस्थ रहीं। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया क्योंकि मैं उस समय शादी नहीं करना चाहती थी। मुझे नौकरी चाहिए थी।"