ऑस्ट्रिया के समाजविज्ञानी और जनसंख्या मामलों को विशेषज्ञ वुल्फगांग लुत्स ने 2009 में एक लेख लिखा था, जिस पर तब काफी विवाद हुआ था। जर्नल ऑफ द रॉयल स्टैटिस्टिकल सोसाइटी' पत्रिका में प्रकाशित इस लेख में उन्होंने कम आबादी वाली दुनिया की वकालत की थी।
इस लेख का शीर्षक था 2-6 अरब लोगों की एक सुशिक्षित, सेहतमंद और धनी दुनिया की ओर'। इसी लेख को 2017 में आगे बढ़ाते हुए लुत्स ने लिखा कि "कम आबादी वाली दुनिया जलवायु परिवर्तन के नतीजों को झेलने में ज्यादा सक्षम होगी।” अब जबकि कई देशों की आबादी तेजी से घट रही है और आर्थिक विकास के लिए एक चुनौती बन गई है तो जनसंख्या का यह सवाल और बड़ा हो गया है।
जनसंख्या गिरावट और बढ़ते बुजुर्ग
दुनिया में जनसंख्या के आंकड़ों में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। कई देशों को अब दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जनसंख्या गिरावट और वृद्धावस्था। यह बदलाव युवा पीढ़ी के कम बच्चे पैदा करने और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण जीवन प्रत्याशा बढ़ने से हो रहा है। इसका असर समाज और अर्थव्यवस्था पर गहराई से पड़ रहा है।
चीन, जो कभी दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश था, 2024 में लगातार तीसरे साल जनसंख्या में गिरावट दर्ज कर रहा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने बताया कि चीन की जनसंख्या करीब 14 लाख घटकर 1.408 अरब रह गई। यह छह दशकों की जनसंख्या वृद्धि के बाद बड़ा बदलाव है। 2023 में भारत के दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बनने के बाद, चीन अब बूढ़ी होती जनसंख्या और कम जन्मदर की समस्याओं से जूझ रहा है।
चीन की जनसंख्या गिरावट कई नीतियों और आर्थिक कारकों से जुड़ी है। 1980 में लागू की गई एक-बच्चे की नीति, जिसे 2016 में तीन बच्चों तक बढ़ाया गया, कोई बड़ा बदलाव नहीं ला पाई। महंगा जीवन-यापन, करियर पर ज्यादा ध्यान देतीं महिलाएं और ज्यादा लोग उच्च शिक्षा में रुचि ले रहे हैं। इस कारण जन्मदर कम बनी हुई है। 2024 में, जन्मदर 6.77 प्रति 1,000 लोगों पर पहुंची, जो दुनिया की सबसे कम जन्मदरों में से एक है।
बूढ़ी होती आबादी समस्या को और बढ़ा रही है। 2035 तक चीन की एक-तिहाई आबादी 60 साल से ज्यादा उम्र की होगी। 2024 में, 60 साल से ऊपर के लोगों की संख्या 31.03 करोड़ हो गई, जो 2023 में 29.7 करोड़ थी। इसे संभालने के लिए चीन ने कदम उठाए हैं। 1 जनवरी 2025 से रिटायर होने की उम्र धीरे-धीरे बढ़ाई जा रही है। साथ ही, "एल्डरली यूनिवर्सिटीज़" जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जहां बुजुर्ग लोग योग, डांस और गाने जैसी गतिविधियों में हिस्सा ले सकते हैं।
आबादी कई देशों में गंभीर संकट का कारण
जापान की स्थिति और गंभीर है। 2008 में जापान की जनसंख्या 12.8 करोड़ थी। 2024 में यह 12.5 करोड़ तक गिर गई है और 2070 तक 8.7 करोड़ रह जाने का अनुमान है। तब 40 फीसदी आबादी 65 साल या उससे अधिक उम्र की होगी।
2023 में जापान में सिर्फ 730,000 बच्चों का जन्म हुआ, जो अब तक का सबसे कम आंकड़ा है। युवा जापानी शादी और बच्चे पैदा करने से बच रहे हैं। इसके पीछे वजह हैं, कम नौकरी के अवसर, महंगी जीवनशैली और कठोर कॉरपोरेट संस्कृति, जो महिलाओं और कामकाजी माताओं को मुख्यधारा से बाहर कर देती है।
सरकार ने इस स्थिति को "अत्यंत गंभीर" करार दिया है। चीफ कैबिनेट सेक्रेटरी योशिमासा हयाशी ने कहा कि अगले छह साल आखिरी मौका हैं। जन्मदर बढ़ाने के लिए सरकार वित्तीय सहायता और कामकाजी जीवन में संतुलन लाने जैसे कदम उठा रही है। 2023 में जापान की विदेशी आबादी 30 लाख से ज्यादा हो गई, जो कुल जनसंख्या का लगभग 3 फीसदी है। यह गिरावट की गति को थोड़ा कम कर रहा है।
यूरोप में भी संकट
इसी तरह इटली भी जनसंख्या गिरावट की समस्या से जूझ रहा है। 2023 में पहली बार देश में 400,000 से कम बच्चों का जन्म हुआ। यह आंकड़ा 19वीं सदी में देश के एकीकरण के बाद सबसे कम है।
सरकार और वेटिकन ने 2033 तक हर साल कम से कम 500,000 जन्म का लक्ष्य रखा है। पोप फ्रांसिस ने बार-बार इटली के लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश को गंभीर आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
इटली में जन्मदर गिरने की वजहें हैं, कम वेतन, बच्चों की देखभाल की सुविधाओं की कमी, और महिलाओं पर बुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी। अगर जनसंख्या नहीं बढ़ी, तो इटली की अर्थव्यवस्था पेंशन और कार्यबल की कमी के कारण मुश्किल में आ जाएगी।
दक्षिण कोरिया में 2021 में जनसंख्या घटने लगी थी। 2023 में विदेशी निवासियों की संख्या में 10 फीसदी की वृद्धि से कुल जनसंख्या 5.18 करोड़ तक पहुंच गई। हालांकि, बुजुर्गों की संख्या (65 साल और उससे अधिक) बढ़कर 95 लाख हो गई है।
चीन, जापान, इटली और दक्षिण कोरिया की समस्याएं एक वैश्विक समस्या का हिस्सा हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, 63 देशों की जनसंख्या पहले ही अपने चरम पर पहुंच चुकी है। अगले 30 साल में 48 और देशों में ऐसा होगा। हालांकि, वैश्विक जनसंख्या अब भी बढ़ रही है। 2024 में यह 8.2 अरब तक पहुंच गई। अनुमान है कियह 10।3 अरब पर पहुंचने के बाद अगले 60 साल में घटने लगेगी।
कम जनसंख्या के फायदे
घटती जनसंख्या को लेकर बहुत से देश चिंतित हैं लेकिन, कुछ विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि कम आबादी वाली दुनिया लंबी अवधि में अधिक लाभकारीहो सकती है। वुल्फगांग लुत्स इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस के विशेषज्ञ हैं। अपने ताजा शोध में वह कहते हैं कि अगर शिक्षा, विशेष रूप से महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया जाए, तो कम आबादी एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा सकती है।
लुत्स का तर्क है कि शिक्षा से परिवारों का आकार छोटा होता है, स्वास्थ्य में सुधार होता है, गरीबी घटती है, और जलवायु परिवर्तन के प्रति समाजों की क्षमता मजबूत होती है। उनके अनुसार, "22वीं सदी तक अगर जनसंख्या 2–4 अरब तक सिमट जाए और लोग शिक्षित और स्वस्थ हों, तो वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का बेहतर तरीके से सामना कर पाएंगे।"
जनसंख्या गिरावट का पर्यावरण पर सकारात्मक असर पड़ सकता है। विलियम ई। रीस, जो "इकोलॉजिकल फुटप्रिंट" के सिद्धांत के जनक हैं, मानते हैं कि हमारी वर्तमान टेक्नो-इंडस्ट्रियल सोसाइटी खतरनाक पारिस्थितिक संकट का सामना कर रही है। रीस कहते हैं, "बहुत ज्यादा लोग सीमित संसाधनों का उपभोग और प्रदूषण कर रहे हैं।"
भविष्य का सवाल
रीस इस बात पर जोर देते हैं कि अगर जनसंख्या नियंत्रण योजनाओं को अपनाया जाए, तो स्थिरता की राह में आने वाली बड़ी बाधाओं को हटाया जा सकता है। उनके अनुसार, "राष्ट्रीय और पारिवारिक स्तर पर जनसंख्या नियोजन को अपनाना समय की मांग है।"
जनसंख्या गिरावट से जलवायु परिवर्तन को संभालने में मदद मिल सकती है। ऑस्ट्रेलिया की ब्रिसबेन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर इयान लोव ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि अगर जनसंख्या संयुक्त राष्ट्र के मध्यम पूर्वानुमान के अनुसार बढ़ती रही, तो वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना असंभव होगा। उन्होंने यह भी बताया कि कम जनसंख्या वाले समाज जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बेहतर तरीके से सहन कर सकते हैं।
दुनिया के सामने अब दोहरी चुनौती है, कम जनसंख्या के अल्पकालिक आर्थिक प्रभावों को संभालना और दीर्घकालिक लाभों के लिए योजनाएं बनाना। लुत्स के अनुसार, "महिलाओं को सशक्त बनाने और शिक्षा में निवेश करने से समाज कम संसाधन खर्च करेगा और अधिक सहयोग, देखभाल और स्थिरता की ओर बढ़ेगा।"