मुंबई में इस साल फिर से बाढ़ के हालात पैदा हो गए हैं। 2005 में भी मुंबई ऐसे ही बाढ़ का सामना कर चुकी है। सरकार की योजनाओं में दूरदर्शिता की कमी के साथ ही आम लोगों की लापरवाही भी ऐसी बाढ़ की बड़ी वजहें हैं। हाल के वर्षों में सूरत, जयपुर, चेन्नई, गुड़गांव, बंगलुरू, श्रीनगर और हैदराबाद समेत भारत के कई शहरों ने ऐसी बाढ़ का सामना किया है।
शहरी क्षेत्रों में जलभराव तीव्र और लम्बे समय तक जारी वर्षा के कारण होता है। खासतौर से तब जब बारिश में गिरा पानी शहर की जलनिकासी तंत्र की क्षमता को पार कर जाता है। शहरी बाढ़ प्रबंधन के विशेषज्ञ और IIT मुंबई के प्रोफेसर कपिल गुप्ता का कहना है कि अनियोजित निर्माण, शहरी नालों में ठोस गंदगी और जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ती बारिश, दुनिया भर में शहरी बाढ़ के जाने पहचाने कारणों में से कुछ सामान्य कारण हैं।
कारणों पर रोशनी डालते हुए प्रोफेसर कपिल गुप्ता ने कहा कि भारी वर्षा, चक्रवात और बवंडर ऐसे कारण हैं जिन्हें मौसम संबंधी कारको में रखा जा सकता है। इसके अलावा ऊपरीरी तट प्रवाह का दुरुस्त होना या ना होना और तटीय शहरों में ज्वार के कारण जलनिकासी का अवरुद्ध होना भी शहरी बाढ़ के कारण हैं। मुंबई में 2005 आई बाढ़ के दौरान ज्वार के कारण जलनिकासी का अवरुद्ध हो गयी थी जिसके चलते बाढ़ से जान माल की हानि उठानी पड़ी थी।
मानव निर्मित कारणों में नदी या समुद्र तटों के किनारे निर्माण, खराब योजना एवं उनका गलत क्रियान्वयन, ख़राब जल निकासी और गंदे नाले मुख्य रूप से शहरी बाढ़ के लिये जिम्मेदार माने जाते हैं। तीव्र गति से होने वाले शहरीकरण के चलते शहरों में नियोजित विकास को धक्का पहुंचा है साथ ही साथ बाढ़ के पानी के निकलने वाले स्थान या तो अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए या फिर उनकी उपेक्षा की गयी।
उपायों पर हो जोर
शहरी बाढ़ की रोकथाम के लिए अनेक ढांचागत सुधारों की आवश्यकता जताते हुए प्रोफेसर कपिल गुप्ता कहते हैं, "जलनिकासी मार्ग ठीक प्रकार से चिह्नित होना चाहिए और शहर के प्राकृतिक जलनिकासी तंत्र में कोई अतिक्रमण नहीं होना चाहिए।'' उपेक्षा या गलत प्रबंधन के चलते बाढ़ क्षेत्र की जलनिकासी मार्ग बाधित हो चुकी है। इनको तुरंत दुरुस्त करना होगा।
लगभग सभी शहरों पर जनसंख्या का दबाव ऐसा पड़ रहा है कि बाढ़ क्षेत्र में बस्तियां बसने लगी हैं। इन अतिक्रमण के खिलाफ मुहिम छेड़नी होगी। प्रोफेसर कपिल गुप्ता के अनुसार जो बड़ी संख्या में पुल, ओवरब्रिज समेत मेट्रो परियोजनाओं का निर्माण हो रहा है वह मौजूदा जलनिकासी मार्गों में किया जा रहा है। उचित इंजीनियरिंग डिज़ाइनों जैसे केंटिलीवर निर्माण आदि का सहारा लेकर ड्रेनेज सिस्टम की रक्षा की जा सकती है।
ज़मीन सिर्फ मकान बनाने के लिए नहीं है, पानी के लिए भी है। ताल-तलैये और पोखर शहर के सोख्ते की तरह हैं। बाढ़ नियंत्रण के इन परंपरागत तरीके के प्रति उपेक्षा ने स्थिति को और गंभीर बनाया है। जलवायु परिवर्तन के चलते बेमौसम या मानसून के दौरान जब भारी बारिश होती है तो पानी के निकलने का कोई स्थान नहीं बचता है। लिहाजा बाढ़ और विनाश अवश्यंभावी हो जाते हैं। इन्हें फिर से पुनर्जीवन देकर शहरी बाढ़ का प्रभाव कम किया जा सकता है। इसके अलावा छिद्रदार फुटपाथ बनाए जाने चाहिए जिससे पानी सतह के नीचे की मिट्टी तक पहुंच जाता है।
यह सिर्फ मुंबई की समस्या नहीं है।लगभग हर बड़े शहर में कई टन का कचरा लोगों सड़कों पर या समुद्री किनारों पर फेंक देते हैं। हर रोज़ प्लास्टिक की लाखों थैलियां लोग सड़कों पर फेंकते हैं जो जलनिकासी मार्ग को बाधित करते हैं। वैसे,बाढ़ के प्रकोप को कम करने में रेन वाटर हार्वेस्टिंग की भी अपनी भूमिका है। प्रोफेसर कपिल गुप्ता कहते हैं, "रेन वाटर हार्वेस्टिंग से आम लोगों को जुड़ना चाहिए, इसके कई लाभ हैं।''
जनता को भी जागना होगा
मुंबई मूल रूप से सात अलग अलग समुद्री द्वीपों से मिल कर बनी है। वक्त की ज़रूरतों को देखते हुए इन द्वीपों को एक दूसरे से जोड़ कर आज का मुंबई शहर बसाया गया था। भारी बारिश और ज्वार के दौरान समुद्री क्षेत्रों में अतिक्रमण वाले इलाकों में पानी बहुत जल्दी भर जाता है। खैर यह पुरानी बात हो गयी, इसके साथ ही निभाना पड़ेगा। दूसरे शहरों में भी प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हुई है। सामाजिक कार्यकर्त्ता बी के नायक के अनुसार जो है, जैसा है, उसको स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए। उनका कहना है कि शहर में या सरकार में कमियां निकालने की बजाय मुंबईवासी सड़कों और समुद्री तटों पर कचरा फेकना बंद कर दें तो भी स्थिति सुधरेगी।