असम में NRC के 2 साल बाद भी अधर में हैं लाखों लोगों का भविष्य

DW
मंगलवार, 21 सितम्बर 2021 (07:53 IST)
असम में तैयार एनआरसी को कानूनी वैधता प्रदान के मामले पर अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है। इस वजह से लाखों लोगों का भविष्य अधर में लटका है।
 
असम में तैयार एनआरसी को कानूनी वैधता प्रदान के लिए रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने अब तक कोई अधिसूचना जारी नहीं की है। लेकिन इस बीच, एक न्यायाधिकरण ने एक व्यक्ति को भारतीय घोषित करते हुए इसे एनआरसी की अंतिम सूची करार दिया है।
 
न्यायाधिकरण एक व्यक्ति की नागरिकता पर सुनवाई कर रहा था। हालांकि असम सरकार ने चार सितंबर को जारी एक आदेश में ऐसे न्यायाधिकरणों से एनआरसी पर ऐसी टिप्पणी नहीं करने को कहा था। राज्य में तैयार एनआरसी शुरू से ही विवादों में रही है। दो साल पहले इसकी अंतिम सूची प्रकाशित होने पर लाखों लोग सूची से बाहर रहे थे। उसके बाद राज्य की बीजेपी सरकार ने यह कवायद नए सिरे से करने की सिफारिश की है।
 
फिलहाल कुछ मामलों में दोबारा सत्यापन की मांग में उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है जो लंबित है। उधर, एक गैरसरकारी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में एनआरसी को अपडेट करने की कवायद में 360 करोड़ रुपए के दुरुपयोग का आरोप लगाया है।
 
ताजा मामला
असम के एक न्यायाधिकरण ने सोमवार को एक अहम फैसले में कहा है कि 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की सूची अंतिम है। लेकिन राष्ट्रीय जनसंख्या महापंजीयक ने इसे अभी अधिसूचित नहीं किया है। असम के करीमगंज जिले में स्थित न्यायाधिकरण ने एक व्यक्ति को भारतीय नागरिक घोषित करते हुए कहा कि भले अभी राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी नहीं हुआ है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि असम में 2019 में प्रकाशित एनआरसी अंतिम है।
 
न्यायाधिकरण-2 के सदस्य शिशिर डे करीमगंज जिले के बिक्रम सिंह के खिलाफ दर्ज 'डी वोटर' यानी संदिग्ध वोटर के मामले का निपटारा करते हुए एनआरसी को अंतिम माना। यह मामला अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) कानून 1999 के तहत दर्ज किया गया था।
 
न्यायाधिकरण की ओर से इस मामले में जारी आदेश में कहा गया है कि सिंह का नाम अंतिम एनआरसी में शामिल होने से साफ है कि परिवार के अन्य सदस्यों से उसका रिश्ता है। हालांकि मामला न्यायाधिकरण में लंबित होने की वजह से उसकी नागरिकता कानूनी तौर पर स्थापित नहीं हो सकी।
 
बिक्रम सिंह इस समय बेंगलुरू में काम करते हैं। उन्होंने न्यायाधिकरण के सामने अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए कई प्रमाण दिए थे। इसमें 1968 में उनके दादा के नाम से जमीन, भारतीय वायु सेना में पिता की नौकरी के सबूत के अलावा एनआरसी की सूची, मतदाता सूची और आधार कार्ड की प्रतियां भी दी गई थी। तमाम सबूतों को देखने के बाद न्यायाधिकरण ने कहा कि हम मानते हैं बिक्रम विदेशी नहीं, बल्कि भारतीय नागरिक हैं।
 
सूची पर विवाद
असम सरकार लगातार मांग कर रही है कि कि एनआरसी की सूची को दुरुस्त करने के लिए शामिल हुए लोगों में से 10 से 20 फीसदी तक की दोबारा पुष्टि की जानी चाहिए। अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद से ही राज्य के तमाम संगठन इसे त्रुटिपूर्ण बताते हुए इसे खारिज करने की मांग करते रहे हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
 
वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जारी हुई एनआरसी की सूची में 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया था। इनमें लगभग साढ़े पांच लाख हिंदू और 11 लाख से ज्यादा मुसलमान शामिल थे। एनआरसी के तत्कालीन प्रदेश संयोजक प्रतीक हाजेला ने तब इसे एनआरसी की अंतिम सूची बताया था। लेकिन बाद में असम सरकार ने इस सूची को गलत मानते हुए इसमें हुई गलती के लिए हाजेला को दोषी ठहराया था।
 
एनआरसी की सूची से बाहर किए गए 19 लाख लोगों अभी तक बाहर निकाले जाने के आदेश की प्रति तक नहीं मिली है। नतीजतन वह लोग इस फैसले को विदेशी न्यायाधिकरण में चुनौती नहीं दे पा रहे हैं।
 
अधर में भविष्य
सूची पर उठने वाले सवालों की वजह से ही भारतीय रजिस्ट्रार जनरल ने असम की एनआरसी को अब तक अधिसूचित नहीं किया है। नतीजतन पूरा मामला अधर में लटक गया है। इस बीच, राज्य में सत्तारुढ़ बीजेपी ने एनआरसी को त्रुटिपूर्ण बताते हुए उसे खारिज कर दिया है। पार्टी ने यह पूरी कवायद नए सिरे से शुरू करने की बात कही है।
 
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बीती 10 मई को सत्ता संभालने के बाद कहा था कि उनकी सरकार सीमावर्ती जिलों में 20 फीसदी और बाकी जिलों में 10 फीसदी नामों का दोबारा सत्यापन कराना चाहती है। राज्य के एनआरसी संयोजक हितेश देव सरमा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी ताकि अंतिम सूची में त्रुटियों को दूर किया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले केंद्र व असम सरकार की उस अपील को खारिज कर दिया था जिसमें दोबारा सत्यापन की अनुमति देने का अनुरोध किया गया था।
 
एनआरसी की अंतिम सूची को अधिसूचित नहीं किए जाने की वजह से इसे अब तक कानूनी वैधता नहीं मिल सकी है। नतीजतन इस सूची में शामिल लोगों का भी आधार कार्ड नहीं बन सका है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देश में कहा था कि आधार कार्ड उनको ही मिलेगा जो अंतिम एनआरसी का हिस्सा होंगे। लेकिन फिलहाल जो सूची सामने है वह अंतिम नहीं है।
 
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एआरसी को अपडेट करने की कवायद अब तक बेमतलब और लोगों का सिरदर्द बढ़ाने वाली ही साबित हुई है। इसमें शामिल लोगों को भी आधार कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज नहीं मिल सके हैं। दूसरी ओर, जो लोग इस सूची से बाहर हैं वे इस फैसले को चुनौती भी नहीं दे पा रहे हैं। फिलहाल सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं। लेकिन वह फैसला कब तक आएगा, इस बारे में कोई ठोस कुछ बताने की स्थिति में नहीं है।

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