कोयले के ढेर पर बैठ कर बिजली को तरसता झारखंड

DW
शुक्रवार, 3 जून 2022 (08:10 IST)
झारखंड के कोयले से भारत के 70 फीसदी बिजली घरों को ऊर्जा मिलती है लेकिन खुद झारखंड बिजली की भारी कमी से जूझ रहा है। यह समस्या और भी दुखदायी हो जाती है जब कोयले के आसपास रहने वालों को ही बिजली के दर्शन नहीं होते।
 
अपनी शादी की तैयारियों के दौरान विजय रजक ने घर में एक बाथरूम भी बनवाया ताकि उनकी पत्नी को दूसरी औरतों की तरह हर रोज मीलों दूर झील तक ना जाना पड़े। बाथरूम के नल को एक टंकी से जोड़ कर बिजली का पंप भी लगवा दिया लेकिन उनकी सारी तैयारियां बिजली की कटौती के आगे बेकार हो गईं। झारखंड के एक गांव में रहने वाले विजय अब बहुत परेशान हैं।
 
बिजली की कटौती देश के बाकी हिस्सों में भी खूब हो रही है खासतौर से गर्मी का पारा चढ़ने के बाद। बेतहाशा गर्मी ने देश में बिजली की खपत काफी ज्यादा बढ़ा दी है क्योंकि लोगों को एसी का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करना पड़ रहा है। अप्रैल के महीने में बिजली कंपनियों को लोगों की मांग पूरी करने में भारी दिक्कत हुई और इसी बीच में कोयले की कमी का भी मामला सामने आया।
 
झारखंड में बिजली की कमी क्यों?
झारखंड के लोगों का कहना है कि उनके राज्य में बिजली की कमी होना अनुचित है आखिर उनके राज्य के कोयला भंडार से ही बड़े शहरों और देश के उद्योग जगत को बिजली मिल रही है। 30 साल के विजय रजक ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "जिस जगह कभी मेरी जमीन थी वहां अब कोयले की खदान है और इसके बावजूद हमें 10 घंटे भी बिजली नहीं मिलती।" उनका घर धनबाद जिले के सुरुंगा गांव में है।
 
रजक यह भी कहते हैं, "हम कोयले की खान के कारण कई सालों से यह प्रदूषण झेल रहे हैं लेकिन हमें कुछ भी हासिल नहीं हुआ। मैं तो बस इतना चाहता था कि मेरी बीवी अपने घर में आराम से नहा सके।"
 
झारखंड भारत के गरीब राज्यों में है लेकिन 150 खदानों के साथ यह कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। भारत में पैदा होने वाली बिजली का करीब 70 फीसदी कोयला जला कर हासिल होता है। इसके बाद भी कोयले की ढेर पर बैठने वाले लोग बिजली की कमी के कारण काम और जिंदगी में बाधाओं की शिकायत करते हैं।
 
स्थानीय कारण जिम्मेदार
झारखंड बिजली बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि इलाके में गर्मियों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त बिजली है। झारखंड को केंद्रीय, राज्य और निजी बिजली कंपनियों से करीब 2600 मेगावाट बिजली मिलती है। हालांकि उनका यह भी कहना है कि पिछले महीने मांग जब अपनी चरम पर पहुंच गई तो देश के दूसरे हिस्सों में भी इसी तरह की स्थिति आई थी।
 
झारखंड स्टेट पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी, जेबीवीएनएल के प्रबंध निदेशक के के वर्मा बिजली की कटौती के पीछे स्थानीय कारणों को जिम्मेदार बताते हैं। इसमें आंधी तूफान, पुरानी तारें और कंडक्टर शामिल हैं, उनका कहना है कि इन्हें अपग्रेड करने पर पैसा खर्च की जरूरत है। वर्मा ने कहा कि जब तक झारखंड को केंद्रीय बिजली कंपनियों से आवंटित पूरी बिजली मिलती रहेगी तब तक राज्य में बिजली की कोई कमी नहीं।
 
केंद्र सरकार पर निर्भरता
विश्लेषक कहते हैं कि केंद्र पर निर्भर होना ही राज्य में बिजली की कमी का कारण है। उनका कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर पैदा हुई बिजली मांग पूरी करने में नाकाम रही है। इसके पीछे कोयले की कमी भी कुछ हद तक वजह है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट में औद्योगिक प्रदूषण के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव का कहना है, "झारखंड ने दो दशकों में एक मेगावाट बिजली भी नहीं जोड़ी है और वह दूसरे राज्यों के थर्मल प्लांट से बिजली खरीद रहा है, उनकी प्राथमिकताएं अलग हैं।"
 
समस्या से मुक्ति के लिये झारखंड की उम्मीदें कोयले से चलने वाली दो नये बिजली घरों पर टिकी हैं, इनमें से एक अगले छह महीने में काम शुरू कर देगा। हालांकि विश्लेषक कहते हैं कि यह कदम अच्छा नहीं कहा जा सकता क्योंकि दुनिया के ज्यादातर देश अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ रहे हैं।
 
यादव ने कहा, "गर्म होते ग्रह पर लू के ज्यादा शहरों को अपने चपेट में लेने के बाद बिजली की खपत बढ़ रही है, झारखंड को अब अपने भविष्य के लिए जरूर योजना बनानी चाहिए।" यादव ने ध्यान दिलाया कि राज्य सरकार की मौजूदा योजना कोयले की मांग और बढ़ा देगी, "झारखंड को कोयले से अमीर होने की मानसिकता बदलनी होगी।"
 
डीजल की दुविधा
हरित ऊर्जा मॉडल की तरफ जाने की कवायद सामाजिक रूप से भारत के ज्यादार उन हिस्सों में अभी थोड़ी दूर है जिनकी स्थानीय अर्थव्यवस्थआ कोयला उद्योग पर टिकी है। कोयले की खदानों के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोग कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं जिनें वायु और पानी के प्रदूषण से लेकर पानी की कमी और खराब बुनियादी ढांचा तक शामिल है।
 
झारखंड की 3.3 करोड़ आबादी में से 40 फीसदी लोग गरीब हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि बिजली की कमी उनके विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद की 2022 में किये एक विश्लेषण के मुताबिक झारखंड के 80 फीसदी घरों में हर रोज कम से कम एक बार बिजली जाती है जो आठ घंटे तक लंबी हो सकती है। यह कोयले के धनी छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों की तुलना में करीब दोगुनी है।
 
बिना रुकावट बिजली की सप्लाई कई सालों से चुनावी वादे में शामिल है। हाल ही में हुए ग्राम पंचायतों के चुनाव में भी इसे लेकर खूब डंका बजा लेकिन स्थानीय लोग बताते हैं कि जमीन पर कोई काम होता नहीं दिखता।
 
धनबाद में रहने वाले सनोज सिंह कहते हैं, "हमारे पास कोयले की पुंजी है और हमारे पास बिजली नहीं है यह कुछ ऐसा है जैसे कि आपके पास डेयरी फार्म हो लेकिन एक लीटर भी दूध ना मिले।" सिंह बिजली की कटौती को अपने निर्माण के धंधे में भारी नुकसान का कारण बताते हैं। धनबाद में जेनरेटरों की खूब मांग रहती है। इनकी वजह से डीजल के ज्यादा खबत को लेकर चिंतायें बढ़ती जा रही हैं। धनबाद में किराये पर जेनरेट देने वाले पारस यादव कहते हैं, "5 किलोवाट का जनेरेटर पूरे घर को बिजली दे सकता है लेकिन हर घंटे डेढ़ लीटर डीजल पी जाता है। हम जानते हैं कि जेनरेटर से हानिकारक उत्सर्जन होता है लेकिन फिर इस गर्मी में लोग कैसे बचेंगे?"
 
महामारी का दबाव
झारखंड में घरेलू बिजली के कनेक्शन तीन साल पहले 30 लाख थे जो अब बढ़ कर 50 लाख हो गये हैं। इसका श्रेय ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचाने के सरकार के अभियान को है। इसके साथ ही कोविड-19 की महामारी के दौर में हुई तालाबंदी के कारण वापस लौटे और फिर यहीं रह गये प्रवासियों ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई। अधिकारी कहते हैं कि इस वजह से भी बिजली की मांग बढ़ गई है हालांकि नये ग्राहकों में बड़ा हिस्सा ऐसे लोगों का है जो बिजली का बिल देने की हालत में नहीं हैं।
 
लगभग 25 लाख बिजली के कनेक्शन राज्य के बेहद गरीब लोगों से जुड़ा है। इनमें सुदूर गांवों से लेकर छोटे शहरों तक के लोग शामिल है। इन जगहों पर कुटीर उद्योगों की बड़ी मांग है लेकिन कमाई बहुत कम है क्योंकि बिलिंग और भुगतान को लेकर काफी समस्याएं हैं।
 
दूसरे राज्यों की तरह झारखंड राज्य पर भी बिजली कंपनियों के अरबों रुपयों का बकाया है हालांकि अधिकारी कहते हैं कि राज्य अपनी बकाया रकम का ज्यादातर हिस्सा इस साल चुका दिया है ताकि सप्लाई जारी रहे।
 
नहाने के लिए भी पानी नहीं
बिजली के कनेक्शन ने कई लोगों की बहुत मदद भी की है। धनबाद से 200 किलोमीटर उत्तर में सिंहभूमि में रहने वाली 32 साल की रूबी महतो उन्हीं में से एक हैं। दो साल पहले उन्होंने अपने कुएं को बिजली की मोटर से जोड़ दिया ताकि एक एकड़ के अपने खेत की सिंचाई कर सकें। हालांकि अब उन्हें रस्सी के सहारे बाल्टी से पानी निकाल कर खेतों को सींचना पड़ रहा है क्योंकि बिजली नहीं रहने से मोटर बेकार हो गया है। रूबी कहती हैं, "हम पूरे दिन बिजली आने का इंतजार करते हैं और जैसे ही पाइप को पंप से जोड़ते हैं बिजली कट जाती है।"
 
रजक की पत्नी बसंती कुमारी इस बीच थोड़ी राहत में हैं क्योंकि उनके पति के घर उनके मायके की तुलना में कम बिजली जाती है। उनका मायका बोकारो में है जो स्टील उद्योग के लिए जाना जाता है। हालांकि उनके दिन अब बहुत व्यस्त होते हैं। वो पत्थर पर मसाला कूटती हैं, खाना बनाने और सफाई के लिए पानी के ड्रमों को भरती हैं और तब करीब एक मील दूर जा कर नहाने के लिए समय निकालती हैं। जब बिजली ना हो तो उनके घर में लगा पानी का मोटर किसी काम का नहीं।
 
बसंती कुमारी ने कहा, "इतनी गर्मी है के हम बिना नहाये नहीं रह सकते, मुझे आसपास मौजूद लोगों से भी बचना होता है, आखिर मेरे पास उपाय ही क्या है?"
 
एनआर/आरपी (रॉयटर्स)

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