बहराइच के बाद अब देश के कई अन्य शहरों से भेड़ियों के हमले की खबरें आ रही हैं। जानकार कहते हैं कि डीएनए समेत जरूरी जांच के बिना दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि हमले भेड़ियों ने ही किए हैं।
बीते दिनों उत्तर प्रदेश का बहराइच जिला भेड़ियों के हमलों के कारण सुर्खियों में रहा। अब भारत के कुछ अन्य हिस्सों से भी भेड़ियों के हमले की खबरें आ रही हैं। सितंबर के पहले सप्ताह से अब तक उत्तर प्रदेश के कौशांबी, संभल, प्रतापगढ़, सीतापुर और जौनपुर के साथ मध्य प्रदेश के खंडवा और सीहोर में भेड़ियों के हमले की खबरें आई हैं।
क्या हो सकते हैं संभावित कारण?
भेड़ियों के हमलों में आई कथित तेजी पर जानकारों की राय बंटी हुई है। डॉ। योगेश प्रताप सिंह, गोरखपुर के शहीद अशफाक उल्ला खां प्राणी उद्यान में पशु चिकित्सा अधिकारी हैं। वह बहराइच से रेस्क्यू किए गए भेड़ियों का इलाज भी कर रहे हैं। डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत करते हुए बहराइच में हुए हमलों के संदर्भ में वह कहते हैं, "बहराइच, सरयू के किनारे है। इस साल यहां बारिश के बाद बाढ़ का पानी पीलीभीत और दुधवा के जंगलों तक तेजी से पहुंचा। इसकी वजह से जानवरों को एक जगह से दूसरी जगह प्रवास करने का मौका नहीं मिला।" वह आशंका जताते हैं, " भेड़ियों का प्रवास इंसानी बस्ती की ओर अधिक होने की यह एक वजह हो सकती है। इन जगहों पर अपना प्राकृतिक भोजन न मिलने से उन्होंने इंसानी बच्चों पर हमला किया होगा।"
सुपर्णा गांगुली, वाइल्डलाइफ रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर की अध्यक्ष और सह संस्थापक हैं। वह कई वर्षों से शहरी कुत्तों और बंधुआ हाथियों समेत जानवरों के संरक्षण से जुड़े पक्षों पर काम कर रही हैं। भेड़ियों के इंसानी बसाहटों की ओर आने की घटनाओं पर वह कहती हैं, "भेड़ियों और कुत्तों के व्यवहार का पैटर्न मिलता-जुलता है, इसलिए मैं कुछ संभावित कारणों का अनुमान लगा सकती हूं। वन्यजीव हों या पालतू जानवर, सभी खाने की ओर आकर्षित होते हैं। मुमकिन है (प्रभावित) गांवों और नजदीकी इलाकों में कचरे के समुचित प्रबंधन से जुड़ी गंभीर दिक्कत हो। ऐसे में संभव है कि इन भेड़ियों को कूड़े में मांस के कुछ अंश और अपने खाने की कुछ अन्य चीजें मिल गई हों।"
सुपर्णा के मुताबिक, भेड़ियों के आहार का दायरा बड़ा होता है और वे सर्वाहारी हो सकते हैं। ऐसे में एक आशंका यह भी है कि अपने कुदरती परिवेश से बाहर निकले भेड़ियों को इंसानी बसाहट वाले इलाकों में अपेक्षाकृत ज्यादा सुगमता से खाना मिल रहा हो।
पहले भी यूपी में हुए हैं भेड़ियों के हमले
1996 और 1997 के दौर में भी उत्तर प्रदेश के जौनपुर, प्रतापगढ़ और सुल्तानपुर में भेड़ियों के हमलों की कई घटनाएं हुई थीं। इन संघर्षों के दौरान 78 लोग घायल हुए, 42 बच्चों की जान गई और 13 भेड़ियों को वन विभाग की टीम ने मार गिराया था। उस दौरान भेड़ियों की पहचान करने और उन्हें पकड़ने में जिन विशेषज्ञों ने वन विभाग की मदद की, उनमें डॉ। यादवेंद्र देव झाला भी शामिल थे। इंडियन नेशनल साइंस एसोसिएशन (इंसा) में वरिष्ठ वैज्ञानिक रहे डॉ। यादवेंद्र ने भेड़ियों के प्राकृतिक आवास, खानपान और शिकार समेत कई पहलुओं पर लंबा शोध किया है। डीडब्ल्यू हिन्दी से बातचीत में उन्होंने कहा, "भेड़ियों को लेकर हमारे समाज में एक डरावना माहौल बना दिया गया है, जिसकी वजह से सामान्य भेड़िये को भी आदमखोर समझकर दोषी ठहरा दिया जाता है।"
बहराइच में इस साल मार्च से अब तक भेड़ियों के हमलों में नौ बच्चों समेत 10 लोगों की जान गई है और लगभग 50 लोग घायल हुए हैं। लगातार हो रहे हमलों पर डॉ। यादवेंद्र कहते हैं, "जिन भेड़ियों को पकड़ा गया है, वे सभी आदमखोर हैं या नहीं इस बात की पुष्टि नहीं की गई है।"
जानवरों के आदमखोर होने की बात पर डॉ। यादवेंद्र कहते हैं, "एक जानवर, जिसको खाना नहीं मिलता या किसी शारीरिक परेशानी के कारण वह अन्य जानवरों को नहीं मार सकता, वह जब इंसानों की बस्ती में आकर खेलते हुए बच्चों को देखता है और उनपर हमले की कोशिश में सफल हो जाता है, तो उसे लगता है कि इंसानी बच्चे को मारना आसान है। इसके बाद वह हमलावर हो जाता है।"
किस जानवर ने हमला किया, कैसे होगी पहचान
27 साल पहले जब यूपी के कई इलाकों में भेड़ियों के हमलों की खबरें आईं, तब इनकी पुष्टि के लिए पीड़ितों के जख्मों के आसपास पाए गए बाल की जांच की गई। इलेक्ट्रॉन माइक्रोग्राफ जांच से पता लगा कि हमले जंगली कुत्तों ने नहीं, बल्कि भेड़ियों ने किए थे। डॉ। यादवेंद्र बताते हैं, "मुझे इस बात का आश्चर्य हो रहा है कि अब तकनीक इतनी आगे बढ़ चुकी है, तब भी अब तक जानवर की पुष्टि नहीं की गई है। हमले में घायल हर व्यक्ति के शरीर पर कहीं-न-कहीं उस जानवर की लार, नाखून के निशान या कपड़ों पर जानवरों के बाल जैसे नमूने मिल सकते हैं। डीएनए टेस्ट के जरिए उस जानवर की प्रजाति पता लगाई जा सकती है।"
बहराइच समेत अन्य जगहों पर हुई घटनाएं किसी एक जानवर के द्वारा ही की जा रही हैं या कई जानवर शामिल हैं, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है। डॉ। यादवेंद्र का कहना है, "पकड़े गए पांच भेड़ियों का भी आदमखोर होना संदिग्ध है क्योंकि हमले अभी भी हो रहे हैं। दूसरी अहम बात यह है कि ड्रोन और थर्मल कैमरों से लेकर उस इलाके में तैनात किसी भी व्यक्ति ने हमला करते हुए किसी भेड़िए को न ही देखा, न ही उन्हें बच्चों को खाते या मारते हुए देखा है। न ही भेड़िए के पांवों के निशान की पहचान की गई है। ऐसे में झुंड में चल रहे भेड़ियों को इसका दोषी नहीं कहा जा सकता।"
यूपी में भेड़ियों की संख्या ज्यादा नहीं
भेड़िए ज्यादातर कम घने जंगलों में पाए जाते हैं। वे ज्यादातर झाड़ियों, खुली जगहों, खेतों और गोचर जगहों पर पाए जाते हैं। भारत में भेड़िए मुख्य तौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, झारखंड और छत्तीसगढ़ में पाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या कम ही देखने को मिलती है।
कुछ वन्यजीव विशेषज्ञों की चिंता इस ओर भी है कि विलुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में भेड़िए, बाघ से भी अधिक गंभीर हालत में हैं। उनके संरक्षण की ओर सरकार का ध्यान नहीं है। डॉ। यादवेंद्र कहते हैं, "वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर अलग तरीके की संरचना बनी हुई है। कुछ जानवरों के संरक्षण पर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन कुछ जीवों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाता है। भारत में 3,600 बाघ हैं और भेड़ियों की संख्या 2,000 से भी कम है। इसके बावजूद भेड़ियों को बचाने के लिए कोई प्रयास नजर नहीं आते।"
इस पक्ष पर सुपर्णा गांगुली कहती हैं, "मुझे इस बात का खेद है कि भेड़िया, लकड़बग्घा, सियार और जंगली कुत्तों जैसे जानवरों के संरक्षण पर भारत में अब तक कोई परियोजना नहीं बनी है। भेड़िए कई सदियों से खाद्य शृंखला और जंगलों का हिस्सा रहे हैं। जैव विविधता में उनका भी योगदान है। इनके न होने से हमारी प्राकृतिक खाद्य शृंखला प्रभावित होगी।"