गुप्त नहीं रहेगी स्पर्म डोनर की पहचान

शनिवार, 31 जनवरी 2015 (12:52 IST)
बॉलीवुड की चर्चित फिल्म 'विकी डोनर' ने स्पर्म डोनेशन के मुद्दे पर रोशनी डाली। स्पर्म डोनर की पहचान को अधिकतर गुप्त रखा जाता है, लेकिन जर्मनी में इसे बदला जा रहा है।

जर्मनी की एक अदालत ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि बच्चे को अपने जैविक पिता के बारे में जानकारी का अधिकार है। अदालत ने कहा कि अपने पिता के बारे में पता करने के लिए बच्चे को किसी उम्र तक पहुंचने की भी जरूरत नहीं है। गोद लेने के मामलों में 16 साल की उम्र के बाद ही बच्चे अपने असली माता पिता के बारे में पूछ सकते हैं। लेकिन इस मामले में अदालत ने इस नियम को वैध नहीं माना है।

अदालत ने यह भी कहा है कि बच्चे के कानूनी माता-पिता को भी यह अधिकार होना चाहिए। यानि दंपति अपना इलाज कराते समय डॉक्टर से स्पर्म डोनर की जानकारी मांग सकते हैं। हालांकि डोनर की पहचान उन्हें बच्चे के पैदा होने के बाद ही हो सकेगी। अदालत ने कहा है कि दंपति को उतनी ही जानकारी दी जाएगी जितना बच्चे को मिलना जरूरी है। अदालत का कहना है कि अगर स्पर्म डोनर अपनी पहचान सामने नहीं लाना चाहता है तो उसकी निजता के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए। पर साथ ही यह भी कहा कि ऐसे मामलों में बच्चों की अपने जैविक पिता की पहचान जानने की इच्छा को तरजीह दी जाएगी।

अदालत का यह फैसला कार्ल्सरूहे शहर की दो लड़कियों द्वारा किए गए मुकदमे के सिलसिले में आया है। 12 और 17 साल की ये बहनें अपने जैविक पिता के बारे में जानना चाहती हैं लेकिन क्लीनिक ने उन्हें कोई भी जानकारी देने से इंकार कर दिया। इसी कारण वे अदालत पहुंचीं।

लड़कियों के कानूनी माता-पिता ने क्लीनिक में जिन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे, उनके अनुसार वे स्पर्म डोनर की पहचान नहीं जानना चाहते थे। लेकिन बच्चों के बड़े होने के बाद उन्होंने अपना फैसला बदलना चाहा। जब वे क्लीनिक गए तो उन्हें मायूस हो कर लौटना पड़ा। बदले में वे हनोवर की अदालत में पहुंचे, जहां उन्हें कहा गया कि बच्चियों के 16 साल की उम्र पूरी हो जाने के बाद ही वे स्पर्म डोनर की पहचान के लिए आवेदन दे सकते हैं। इसके बाद बच्चियों ने ही न्यायिक अदालत में मामले को ले जाने की ठानी।

जर्मनी में करीब एक लाख बच्चों का जन्म स्पर्म डोनेशन के चलते हुआ है। क्लीनिक के लिए स्पर्म डोनर के रिकॉर्ड रखना अनिवार्य है। लेकिन दंपति को इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती। अदालत के नए फैसले से भविष्य में स्पर्म डोनेट करने वालों के फैसले पर भी असर पड़ सकता है।

- आईबी/एमजे (डीपीए)

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