इंडोनेशिया का ओबी द्वीप किसी जमाने में काफी साफ-सुथरा और खूबसूरत हुआ करता था। फिर एक कंपनी ने वहां निकेल खोदना शुरू किया। इसकी वजह से हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि लोगों को पीने का साफ पानी तक नहीं मिल रहा है।
इंडोनेशिया के उत्तरपूर्वी हिस्से में स्थित ओबी द्वीप पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है। यह द्वीप अपने मसालों और मछली पकड़ने वाली शांत बस्तियों के लिए जाना जाता था। यहां के लोगों की जिंदगी साबूदाना के पेड़ों और साफ नदियों के बीच शांति से गुजर रही थी। स्थानीय लोग झरनों, स्थानीय धाराओं और कुओं का साफ पानी पीते थे।
लेकिन फिर यहां निकेल का खनन शुरू हुआ और आबोहवा बदलने लगी। ओबी द्वीप के कावासी गांव की निवासी नूरहयाती जुमादी बताती हैं, "अब पानी का स्वाद बदल गया है, कभी-कभी उसमें बुलबुले भी होते हैं। इससे हमारे पेट में दर्द होता है, लेकिन मैं बोतल का पानी नहीं खरीद सकती। इसलिए हम अब भी झरने का पानी पीते हैं।"
खोजी संस्थान 'ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रॉजेक्ट' (ओसीसीआरपी) और 'द गेको प्रॉजेक्ट' ने एक शोध किया। इसमें पारदर्शिता समूह 'डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल ऑफ सीक्रेट्स' द्वारा लीक किए गए हजारों अंदरूनी ईमेल और रिपोर्ट उपलब्ध कराए गए।
इन दस्तावेजों से साफ पता चलता है कि साल 2012 से लेकर एक दशक से ज्यादा समय तक, इंडोनेशिया के हरिता ग्रुप ने ओबी द्वीप पर बसे कावासी गांव को लगातार प्रदूषित किया। डीडब्ल्यू और अन्य सहयोगियों को ये दस्तावेज उपलब्ध कराए गए और उन्होंने कई महीनों तक इनका विश्लेषण किया।
हरिता ग्रुप नाम की बड़ी कंपनी कई तरह के प्राकृतिक संसाधनों का कारोबार करती है। यह कंपनी कावासी के आसपास एक विशाल खदान और धातु पिघलाने का कारखाना चलाती है। यह कारखाना यूरोप, चीन और अमेरिका में बिकने वाली इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी के लिए निकेल की आपूर्ति करता है। लेकिन इसके लिए स्थानीय लोगों को पर्यावरण के रूप में बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।
इसकी शुरुआत कैसे हुई?
हरिता ग्रुप ने 2010 में अपनी सहायक कंपनी पीटी त्रिमेगा बांगुन पर्सादा (पीटी टीबीपी) के जरिए द्वीप पर निकेल का खनन शुरू किया, जिसे इंडोनेशिया के अरबपति लिम हरियांतो नियंत्रित करते हैं। खनन की शुरुआत के बाद ही प्रदूषण के प्रारंभिक संकेत दिखने लगे।
साल 2012 की शुरुआत में ही कंपनी के अंदरूनी ईमेल में खनन वाली जगह के नीचे की ओर तुगारासी नदी में हेक्सावेलेंट क्रोमियम या क्रोमियम6 (Cr6) से प्रदूषण की चेतावनी दी गई थी। यह बहुत ही जहरीला रसायन और कैंसर जैसी बीमारी पैदा करने वाला तत्व है।
स्थानीय समुदाय पीने, मछली पकड़ने और नहाने के लिए इसी नदी के पानी का इस्तेमाल करते थे। कंपनी के स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण निदेशक टोनी गुल्टॉम ने साफ तौर पर खनन और कारखाने से बहने वाले पानी को प्रदूषण का कारण बताया।
क्रोमियम6 को लेकर दुनियाभर में कानून बनाए गए हैं, जिनमें इंडोनेशिया भी शामिल है। यहां पीने के पानी में क्रोमियम6 की मात्रा 50 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। साधारण तरीके से समझें, तो ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल में बमुश्किल एक बूंद से ज्यादा नहीं।
पानी इतना ज्यादा प्रदूषित हो गया, लेकिन कंपनी के अंदर की यह जानकारी उन निवासियों के साथ साझा नहीं की गई जिनपर इसका असर पड़ने वाला था। ऐसा करने की जगह इसे चुपचाप ऊपर के अधिकारियों को भेज दिया गया। हरिता के तत्कालीन सरकारी संबंध और अनुपालन के महाप्रबंधक टोनी गुलटॉम ने 2017 में कंपनी के निदेशकों को एक ईमेल भेजा था, जिस पर 'सिर्फ आपके देखने के लिए' लिखा था। इसमें उन्होंने Cr6 प्रदूषण की 'बढ़ती मात्रा' के बारे में चेतावनी दी थी। उन्होंने साफतौर पर 'चालू खनन' को इसका कारण बताया था।
आंकड़ों की कमी के कारण ठीक-ठीक बताना मुश्किल है कि कावासी के उस झरने में, जिसका पानी ग्रामीण इस्तेमाल करते थे, प्रदूषण का असर कब से दिखना शुरू हुआ। हालांकि, डीडब्ल्यू ने हरिता ग्रुप के अंदर हुए जांच की रिपोर्ट देखी है। इससे पता चलता है कि 2022 में प्रदूषण की पुष्टि हो गई थी। एक जांच में प्रदूषण का स्तर कानूनी सीमा से 19 गुना ज्यादा पाया गया।
कावासी के निकेल के इस्तेमाल को ट्रैक करना मुश्किल
इस बीच, पूरी दुनिया में इलेक्ट्रिक वाहन बाजार में उछाल आना शुरू हो गया था। 2021 तक ईवी की बिक्री 12 महीनों में 109 फीसदी बढ़ गई थी। ये निकेल जैसे बैटरी खनिजों की बढ़ती मांग का संकेत था।
उसी साल हरिता ने कावासी के आसपास अपने काम का विस्तार किया। धातु के क्षेत्र में चीन की दिग्गज कंपनी 'लाइजेंड' के साथ साझेदारी करके इंडोनेशिया का पहला हाई प्रेशर एसिड लीचिंग (एचपीएएल) प्लांट शुरू किया। यह ऐसा प्लांट है, जो कम गुणवत्ता वाले निकेल को ईवी बैटरी में इस्तेमाल लायक बनाता है।
डीडब्ल्यू ने जिन बिक्री समझौते और जहाज ढुलाई के रिकॉर्ड की समीक्षा की है, उनसे पता चलता है कि हरिता ग्रुप बैटरी का सामान बनाने वाली बड़ी कंपनियों को निकेल सप्लाई कर रहा है। फिर ये कंपनियां बैटरी बनाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियों को माल भेजती हैं। आखिर में, गाड़ी बनाने वाली कंपनियों को माल दिया जाता है।
निकेल कहां जाता है, यह जानना जरूरी है क्योंकि कार निर्माता और बैटरी उत्पादकों ने जिम्मेदारी से संसाधन हासिल करने और अपनी आपूर्ति शृंखलाओं में पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचने का संकल्प लिया है।
आपूर्ति शृंखला में अलग-अलग जगहों से मिला कच्चा माल एक साथ मिलाया जाता है। इसलिए, यह पता करना काफी मुश्किल है कि ओबी द्वीप से जो निकेल निकाला गया उसे किस इलेक्ट्रिक कार में इस्तेमाल किया गया। हम शिपिंग और कंपनी के रिकॉर्ड से जितनी भी बड़ी कंपनियों की पहचान कर पाए, उन सभी से उनकी आपूर्ति शृंखला के बारे में पता करने के लिए संपर्क किया।
मर्सिडीज-बेंज एकमात्र वाहन निर्माता कंपनी है, जिसने पुष्टि की कि उसके ईवी में ओबी द्वीप से निकाले गए निकेल का इस्तेमाल किया गया है। कंपनी ने बताया कि उसे साल 2022 में जल प्रदूषण की समस्याओं के बारे में पता चला और उसने कार्रवाई की। कंपनी के मुताबिक, कार्रवाई के नतीजे ठोस थे। हालांकि, कंपनी ने इससे ज्यादा जानकारी नहीं दी।
अन्य कार कंपनियों ने बताया कि वे पूरी सावधानी बरतते हैं और आपूर्तिकर्ताओं से मांग करते हैं कि वे नैतिक तरीके से खनन करें। उन्होंने ओबी द्वीप से किसी भी संबंध की पुष्टि नहीं की। यह भी कहा कि वे सीधे खदानों से सामान नहीं खरीदते हैं।
आईपीओ और प्रदूषण को छिपाने का प्रयास
2023 में जब ईवी में उछाल जारी रहा, तो हरिता ने इंडोनेशिया स्टॉक एक्सचेंज में अपनी निकेल सहायक कंपनी को सूचीबद्ध करने की तैयारी शुरू कर दी। इसी के साथ प्रदूषण को छिपाने का दबाव बढ़ गया।
बीएनपी परिबास, क्रेडिट स्विस और सिटीग्रुप जैसे बैंकों को सौंपे गए ड्यू डिलिजेंस दस्तावेजों में हरिता ने दावा किया कि उसकी कंपनी पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कानूनी मानकों को पूरा करती है। हालांकि, डीडब्ल्यू ने जिन दस्तावेजों का विश्लेषण किया है उससे पता चलता है कि कुछ हफ्ते पहले किए गए आंतरिक परीक्षणों में भी Cr6 की मात्रा काफी ज्यादा पायी गई। ऐसा न सिर्फ कावासी के झरने के पानी में देखने को मिला, बल्कि अपशिष्ट पानी जमा करने वाली जगहों पर भी देखा गया।
इसी तरह, हरिता ने आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) की प्रक्रिया के तहत पर्यावरण का जो ऑडिट करवाया था उसमें खराब ट्रीटमेंट प्लांट, अधूरी जानकारी और भूजल के मानकों का उल्लंघन करने वाले रासायनिक तत्व पाए गए थे। फिर भी, आईपीओ हुआ और कंपनी ने 66 करोड़ डॉलर जुटा लिए।
डीडब्ल्यू की ओर से टिप्पणी के लिए बार-बार अनुरोध किए जाने के बावजूद हरिता ग्रुप, गुल्टॉम और कंपनी के अन्य अधिकारियों ने खबर लिखे जाने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी।
एक अरब डॉलर की कमाई, लेकिन पीने के लिए साफ पानी नहीं
इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा निकेल आपूर्तिकर्ता बन गया है। वैश्विक उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी लगभग 60 फीसदी है। इसका छह प्रतिशत कावासी से आता है। यहां के निवासी अब किसी पुराने गांव में नहीं, बल्कि एक औद्योगिक शहर की छाया में रहते हैं और वह भी एक समृद्ध शहर।
साल 2023 में हरिता के निकेल के कारोबार से एक अरब डॉलर से ज्यादा की कमाई हुई। फिर भी उत्तरी मालुकु का इलाका (जहां ओबी द्वीप है) इंडोनेशिया के सबसे गरीब इलाकों में से एक है। कावासी में तो साफ पानी भी ठीक से नहीं मिलता।
हरिता के एक पूर्व कर्मचारी मान नोहो ने बताया, "अगर आपके पास पैसा है, तो आप बोतलबंद पानी खरीदते हैं। अगर नहीं है, तो आप जो भी उपलब्ध है वही पीते हैं, चाहे वह साफ हो या नहीं।"
जिन ग्रामीणों से बात हुई, उनका कहना है कि उन्हें हरिता द्वारा पानी प्रदूषित किए जाने के बारे में कभी चेतावनी नहीं दी गई। वास्तव में कंपनी के कई आंतरिक ईमेल दिखाते हैं कि अधिकारियों को स्थानीय लोगों के साथ प्रदूषण के आंकड़े साझा करने से मना किया गया। साथ ही, इस समुदाय के लिए जल आपूर्ति का कोई वैकल्पिक साधन उपलब्ध नहीं कराया गया।
स्थानीय निवासी नूरहयाती जुमादी ने बताया, "पानी प्रदूषित है, यह जानते हुए भी उन्होंने हमें ये पीने दिया। इसका मतलब है कि वे हमें मरने दे रहे हैं।"
अब क्या होगा?
ऑडिटिंग संस्था 'इनिशिएटिव फॉर रिस्पॉन्सिबल माइनिंग एश्योरेंस' (आईआरएमए) आजकल हरिता निकेल की जांच कर रही है। आईआरएमए की कार्यकारी निदेशक एमी बौलैंगर ने डीडब्ल्यू को बताया कि वो चाहती हैं कि हालात सुधरें। उन्होंने कहा, "हम यहां अच्छे होने का तमगा देने नहीं आए हैं। हम यहां उद्योग की अपेक्षाओं को बदलने के लिए हैं।"
इंडोनेशिया के भ्रष्टाचार उन्मूलन आयोग (केपीके) के पूर्व आयुक्त लाओडे सिरिफ ने दस्तावेजों का एक संशोधित संस्करण देखा, जिसमें कोई नाम नहीं बताया गया था। उन्होंने कहा कि प्रदूषण और इसे छिपाने के प्रयासों के लिए पर्यावरण कानून के तहत आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है। वह कहते हैं, "सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए।"
क्रोमियम6 प्रदूषण से जुड़े कानूनी उदाहरण पहले से ही मौजूद हैं। सबसे बड़ा उदाहरण 1996 का मामला है जिसमें यू।एस। यूटिलिटी कंपनी पीजी ऐंड ई (PG&E) को 333 मिलियन डॉलर का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया था, क्योंकि कैलिफोर्निया के हिंकले में पानी में कैंसर पैदा करने वाला यह तत्व पाया गया था। यह देश के इतिहास के सबसे बड़े नागरिक समझौतों में से एक था। इसके बाद सफाई के प्रयास किए गए और सख्त नियम बनाए गए।
हाल ही में, इंडोनेशिया के सुलावेसी और हलमाहेरा द्वीपों पर निकेल की खानों और दूसरी जगहों पर भी लोगों ने सफाई करने और खनन गतिविधियों के लिए मुआवजा देने का दबाव डाला है। जेएटीएएम जैसे पर्यावरण समूह कावासी के निवासियों के साथ मिलकर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। वे बता रहे हैं कि निकेल खनन से पर्यावरण और सामाजिक स्तर पर क्या प्रभाव पड़ता है। साथ ही, वे यह मांग भी कर रहे हैं कि लंबे समय तब लोगों की सेहत जांची जाए और पानी के लिए वैकल्पिक इंतजाम किए जाएं।
नूरहयाती कहती हैं, "अगर मुझे पता होता कि इसमें कैंसरकारी तत्व हैं, तो मैं इसे नहीं पीती। हमें कंपनी से मांग करनी होगी कि वह ठोस कदम उठाए, ताकि हमें साफ पानी मिल सके।"