लोहड़ी पर्व (Lohri Parv) की संध्या पर लकड़ियां एकत्रित करके जलाई जाती हैं तथा तिल (Til) से अग्नि (Agni) का पारंपरिक पूजन किया जाता है। इस त्योहार के बच्चों-युवाओं की टोलियां घर-घर से लकड़ियां मांग कर इकट्ठा करती है तथा लोहड़ी के गीत (Lohri ke Geet) गाते हुए लोहड़ी मांगते हैं। इन गीतों में दूल्ला भट्टी का यह गीत विशेष कर गाया जाता है। साथ ही लोग गुड़, रेवड़ी, मूंगफली, तिल, पैसे आदि भी लोहड़ी के रूप में देते हैं। यहां पढ़ें पारंपरिक गीत-
लोहड़ी का गीत-Lohri ke Geet
सुंदर मुंदरीए होए
तेरा कौन बचारा होए
दुल्ला भट्टी वाला होए
तेरा कौन बचारा होए
दुल्ला भट्टी वाला होए
दुल्ले धी ब्याही होए
सेर शक्कर पाई होए
कुड़ी दे लेखे लाई होए
घर घर पवे बधाई होए
कुड़ी दा लाल पटाका होए
कुड़ी दा शालू पाटा होए
शालू कौन समेटे होए
अल्ला भट्टी भेजे होए
चाचे चूरी कुट्टी होए
ज़िमींदारां लुट्टी होए
दुल्ले घोड़ दुड़ाए होए
ज़िमींदारां सदाए होए
विच्च पंचायत बिठाए होए
जिन जिन पोले लाई होए
सी इक पोला रह गया
सिपाही फड़ के ले गया
आखो मुंडेयो टाणा टाणा
मकई दा दाणा दाणा
फकीर दी झोली पाणा पाणा
असां थाणे नहीं जाणा जाणा
सिपाही बड्डी खाणा खाणा
अग्गे आप्पे रब्ब स्याणा स्याणा
यारो अग्ग सेक के जाणा जाणा
लोहड़ी दियां सबनां नूं बधाइयां...।
इसके अलावा निम्न गीत भी गाएं जाते हैं।
- 'दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी',
- 'दे माई पाथी तेरा पुत्त चड़ेगा हाथी'
रात में अग्नि में तिल डालते हुए-
'ईशर आए दलिदर जाए, दलिदर दी जड चूल्हे पाए'
गीत गाते हुए सबके अच्छे स्वास्थ्य की कामना की जाती हैं।