कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजयसिंह को भोपाल जैसी कठिन सीट से मैदान में उतारे जाने के बाद अब पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया को इंदौर से मैदान में लाने की बात चल पड़ी है। दिग्विजय समर्थक दिल्ली दरबार के सामने यह बात रख चुके हैं कि यदि इंदौर जैसी सीट कांग्रेस को 35 साल बाद अपने पाले में लानी है तो फिर सिंधिया जैसे कद्दावर नेता को इंदौर से मैदान में लाना चाहिए। यह कहा जा रहा है कि चाहे सुमित्रा महाजन लड़ें या कोई ओर इंदौर सीट को कांग्रेस के पाले में सिंधिया ही ला सकते हैं।
एक स्थिति यह भी बन सकती है कि सिंधिया खुद तो गुना से चुनाव लड़ें और प्रियदर्शिनीराजे सिंधिया ग्वालियर से मैदान संभालें। ऐसी स्थिति में ग्वालियर जैसी कठिन सीट भी कांग्रेस के पाले में आ सकती है। यह स्थिति सिंधिया के लिए भी ज्यादा सुविधाजनक रहेगी।
ऐसा होने की स्थिति में वे अशोकसिंह जैसे अपने विरोधी की उम्मीदवारी भी ग्वालियर से रोक पाएंगे। इसी तरह जबलपुर जैसी कठिन सीट से नेतृत्व विवेक तन्खा को फिर मैदान में लाना चाहता है। यह माना जा रहा है कि यदि तन्खा के अलावा कोई और वहां से कांग्रेस का उम्मीदवार होता है तो भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष राकेशसिंह को फिर संसद में पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता।
लगातार आठ चुनाव हार चुकी कांग्रेस इस बार भी इंदौर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवारी को एक राय नहीं बना पा रही है। मुख्यमंत्री और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ के भरोसे मैदान संभालने की उम्मीद लगाए बैठे पंकज संघवी, दिग्विजयसिंह से समर्थन मिलने के बाद टिकट तय मानकर चल रहे हैं।
पार्टी के एक और वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की इंदौर के मामले में कोई रुचि नहीं है। टिकट के अन्य दावेदारों के संघवी की मुखालफत के अपने-अपने तर्क हैं। पार्टी का एक बड़ा वर्ग यह जरूर मान रहा है कि हालात जो भी हैं, लेकिन इंदौर से दमदारी से चुनाव संघवी ही लड़ सकते हैं।
मुख्यमंत्री से संघवी की नजदीकी किसी से छुपी नहीं है। अपने कट्टर समर्थक शहर कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष विनय बाकलीवाल के अलावा मुख्यमंत्री इंदौर में जिन चुनिंदा नेताओं को तवज्जो देते हैं, उनमें से संघवी भी एक हैं। विधानसभा चुनाव में कमलनाथ इंदौर-पांच से संघवी को ही मौका देने के पक्षधर थे, लेकिन सिंधिया द्वारा ऐनवक्त पर सत्यनारायण पटेल के नाम पर वीटो करने के कारण संघवी को उम्मीदवारी से वंचित होना पड़ा था।
अभी इंदौर में जो स्थिति है, उसमें सबसे बेहतर विकल्प मंत्री जीतू पटवारी को माना जा रहा है, लेकिन नीतिगत व्यवस्था के तहत उन्हें लोकसभा चुनाव लडऩे का मौका शायद ही मिले। इसके बाद संघवी ही एकमात्र ऐसे नेता माने जा रहे हैं, जो भाजपा को मजबूती से टक्कर दे सकते हैं। विरोधी भी ये मानने से परहेज नहीं करते हैं।
महापौर का पिछला चुनाव हारी अर्चना जायसवाल भी दमदारी से टिकट के लिए लगी हैं। उन्हें उम्मीद है कि मुख्यमंत्री उनकी मदद करेंगे और दिल्ली में दीपक बाबरिया उन्हें मजबूती देंगे। अपनी उम्मीदवारी तय कराने के लिए अर्चना इन दिनों भोपाल-दिल्ली एक किए हुए हैं।
उम्मीदवारी की दौड़ में जो दो नए नाम आए हैं, उनमें से एक स्वप्निल कोठारी को प्रियंका गांधी से अपने सीधे संबंधों के चलते टिकट की उम्मीद है तो डॉ. पूनम माथुर को अपने पिता प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आनंद मोहन माथुर के उच्चस्तरीय संपर्कों का भरोसा है।
इस क्षेत्र के दो विधायकों तथा तीन पूर्व विधायकों ने भी नेतृत्व से डॉ. माथुर को मौका देने का आग्रह किया है। एक बड़ा वर्ग मान रहा है कि यदि किसी गैरराजनीतिक व्यक्ति को इंदौर से मैदान में लाया जाता है तो अच्छे नतीजे की उम्मीद की जा सकती है। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)