लोकसभा चुनाव 2019 : वर्तमान सांसदों के विरोध के बीच उम्मीदवारों का टोटा

अरविन्द तिवारी

गुरुवार, 14 मार्च 2019 (09:30 IST)
लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के चयन का मामला भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। भाजपा के ज्यादातर सांसदों का जहां भयंकर विरोध है, वहीं कांग्रेस के सामने कई संसदीय क्षेत्रों में उम्मीदवारों का टोटा है। नए चेहरे तलाश रही भाजपा के सामने भी परेशानी कम नहीं है। इधर, कांग्रेस नए चेहरे तलाशने की कवायद के बाद भी जीत की संभावना वाले नामों को आगे नहीं ला पाई है।
 
मालवा-निमाड़ के सबसे अहम संसदीय क्षेत्र इंदौर में आठ बार से लगातार चुनाव जीत रही सुमित्रा महाजन को चुनौती देने वाला कोई नाम अभी तक कांग्रेस में सामने नहीं आ पाया है। पार्टी द्वारा किसी वर्तमान विधायक को मैदान में नहीं लाने के अघोषित फैसले के कारण सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी उम्मीदवारी की दौड़ से वैसे ही बाहर हो गए।

सत्यनारायण पटेल, पंकज संघवी और शोभा ओझा जैसे कई चुनाव हार चुके चेहरों की स्थिति तो नाम सामने आते ही शिकस्त खाने जैसी है। वैश्य मतों के समीकरण के चलते विनय बाकलीवाल, अरविंद बागडी और स्वप्निल कोठारी जैसे जो नाम सामने आ रहे हैं, वे महाजन या भाजपा के किसी अन्य उम्मीदवार के सामने कितने असरकारक साबित हो पाएंगे, इस पर पार्टी में ही एक राय नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र से किसी चेहरे को मौका मिलने के क्रम में जिला कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष मोतीसिंह पटेल की भी दावेदारी सामने आई है। विधानसभा चुनाव में इंदौर-3 से टिकट से वंचित रहे पिंटू जोशी भी अपने लिए इस बार संभावनाएं टटोल रहे हैं।
 
इन सब नामों के बीच एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ इंदौर से सलमान खान जैसे किसी फिल्म स्टार या फिर पार्टी के किसी ऐसे नेता को मौका दिलवा सकते हैं, जिसकी पहचान राष्ट्रीय स्तर के नेता की हो। सलमान के मध्यप्रदेश में सक्रिय होने के संकेत पिछले दिनों मुख्यमंत्री अपनी पत्रकार वार्ता में भी दे चुके हैं। इधर, पार्टी में हो रहे छुटपुट विरोध को अनदेखा कर महाजन इलेक्शन मोड में आ चुकी हैं। वे अपने समर्थकों के साथ रणनीति बनाने के साथ ही पार्टी के उन नेताओं से भी मिल रही हैं, जो उनसे नाराज बताए जा रहे हैं। इसी क्रम में वे पिछले दिनो सत्यनारायण सत्तन से मिलने पहुंची थी। पार्टी फोरम पर भी जिस तरह की बात वे कर रहे हैं, उससे यह लग रहा है कि वे एक बार और चुनाव लड़ना चाहती हैं।
 
इंदौर की तरह उज्जैन में भी कांग्रेस के पास भाजपा को चुनौती देने के लिए कोई वजनदार नाम नहीं है। यहां भाजपा के वर्तमान सांसद चिंतामणि मालवीय को फिर मौका मिलना मुश्किल लग रहा है। पार्टी में तो मालवीय का विरोध है ही, कुछ निजी कारण भी इस बार उनकी उम्मीदवारी में बाधा बन रहे हैं। मालवीय को चुनौती देने वाले कांग्रेस के दो सबसे मजबूत नाम विधायक रामलाल मालवीय और महेश परमार पार्टी के नीतिगत निर्णय के कारण लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। तीसरा नाम जिला पंचायत के नए नवेले अध्यक्ष कंवर कुमारिया का है। पूर्व सांसद हुकुमचंद कछवाय के दोनों बेटे भी इस बार फिर उम्मीदवारी की दौड़ में हैं।

इन सबके बीच ख्यात गायक पद्मश्री प्रहलादसिंह टिपाणिया का नाम पार्टी के एक वर्ग ने आगे बढ़ाया है। टिपाणिया बलाई समाज से हैं और इस संसदीय क्षेत्र में किसी भी उम्मीदवार की हार-जीत में इस समाज की सबसे अहम भूमिका रहती है। सिंधिया के कट्टर समर्थक स्वास्थ्य मंत्री तुलसीराम सिलावट के बेटे नितेश सिलावट (चिंटू) का नाम भी इस संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट के दावेदार के रूप में चर्चा में है।
 
देवास-शाजापुर क्षेत्र से सांसद रहे मनोहर ऊंटवाल आगर से विधायक बनने के बाद लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं। यहां वैसे भी ऊंटवाल का काफी विरोध था। अब यहां से फिर केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत का नाम आगे लाया जा रहा है, लेकिन राज्यसभा में अपनी वर्तमान स्थिति के मद्देनजर भाजपा उन्हें शायद ही लोकसभा के लिए मौका दे। ऐसी स्थिति में भाजपा के लिए भी यहां से कोई मजबूत नाम आगे लाना कठिन चुनौती है।

कांग्रेस भी यहां बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। सज्जनसिंह वर्मा को पार्टी चुनाव लड़वाएगी नहीं, आष्टा से विधायक रहे अजीतसिंह को मौका देने के पक्ष में वर्मा नहीं रहेंगे। वर्मा के पुत्र पवन का नाम भी पार्टी के एक वर्ग ने बहुत जोर-शोर से आगे बढ़ा रखा है। वैसे यहां से अजीतसिंह या वर्मा में से कोई भी मैदान में रहे, भाजपा के लिए कड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं। उज्जैन के साथ ही यहां से भी टिपाणिया का नाम कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार के रूप में  आगे लाया जा रहा है।
 
मंदसौर-जावरा सीट पर कांग्रेस की स्थिति सबसे खराब है। इस संसदीय क्षेत्र के 8 में से 7 विधानसभा क्षेत्र भाजपा के कब्जे में है। यहां से पार्टी के सर्वे में मीनाक्षी नटराजन, नरेंद्र नाहटा और सुभाष सोजतिया के साथ ही एक-दो और नाम सामने आए हैं। लेकिन इनमें से कोई भी असरकारक चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। 2009 में डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे जैसे दिग्गज को शिकस्त देकर संसद में पहुंची नटराजन की स्थिति अभी सबसे खराब है। विधानसभा चुनाव के दौरान इस संसदीय क्षेत्र में जो समीकरण बने उसका सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही हो रहा है।

विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारी से वंचित रहे और शिकस्त खाने वाले नेता उनके खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठे हैं। हालांकि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व मीनाक्षी पर इस बात के लिए दबाव बनाए हुए है कि वे ही हर हालत में मैदान संभालें। सोजतिया और नाहटा अभी विधानसभा चुनाव हारे हैं और धीरे-धीरे अपना आधार खोते जा रहे हैं। राजेंद्रसिंह गौतम भी एक दावेदार हैं। उन्हें सिंधिया का समर्थन है, पर पार्टी में उनका विरोध भी है। यहां से मीनाक्षी के मैदान न संभालने की स्थिति में उनके कट्टर समर्थक और नीमच जिला कांग्रेस के महामंत्री मनीष जोशी भी उम्मीदवारी की कतार में रहेंगे।
 
लंबे समय से कांग्रेस के कब्जे में चल रही झाबुआ रतलाम सीट पर कांग्रेस की राह इस बार कांग्रेसी ही कठिन करते नजर आ रहे हैं। विधानसभा चुनाव में जिस तरह से झाबुआ सीट पर डॉ. विक्रांत भूरिया को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने पार्टी के बागी उम्मीदवार जेवियर मेड़ा की मदद की और नतीजे में भाजपा यहां चुनाव जीत गई। वैसी ही कवायद फिर शुरू हो गई। कांग्रेस के टिकट पर कांतिलाल भूरिया का फिर मैदान संभालना तय सा है। जेवियर फिर से बागी चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुके हैं और ऐसी स्थिति में भूरिया से नाराज सारे कांग्रेसी फिर एकजुट होने लगे हैं। भाजपा को यहां भूरिया को टक्कर देने वाले नेता की तलाश है।

विधानसभा चुनाव के पहले तक यह माना जा रहा था कि सरकारी नौकरी छोड़कर नेता बने गुमानसिंह डामोर को लोकसभा चुनाव लड़वाया जाएगा, लेकिन उनके झाबुआ से विधायक बनने के बाद पार्टी अब नए चेहरे की तलाश में है। एक स्थिति में अलीराजपुर से विधानसभा चुनाव हारे नागरसिंह चौहान या फिर पहले लोकसभा चुनाव लड़ चुकी रेलम चौहान को भी मौका दिया जा सकता है।
 
मालवा निमाड़ में धार एकमात्र ऐसी सीट है, जहां से कांग्रेस का उम्मीदवार लगभग तय सा है और भाजपा में यह तय नहीं हो पा रहा है कि आखिर किसे मौका दिया जाए। कांग्रेस यहां से दो बार सांसद रह चुके और पिछली बार ऐनवक्त पर उम्मीदवार से वंचित किए गए गजेन्द्रसिंह राजूखेड़ी को फिर मैदान में लाएगी। वैसे पूर्व सांसद सूरजभानु सोलंकी भी यहां से कांग्रेस का टिकट पाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं।

भाजपा से वर्तमान सांसद सावित्री ठाकुर को शायद ही मौका मिले और ऐसी स्थिति में पूर्व विधायक मुकामसिंह किराड़े, उनकी पत्नी पूर्व कैबिनेट मंत्री रंजना बघेल, सरदारपुर से विधायक बने इंजीनियर मुकामसिंह उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल हो सकते हैं। यहां भाजपा के स्थानीय नेताओं के बीच काफी खींचतान है और इसका फायदा कांग्रेस को हमेशा मिलता है।
 
खरगोन-बड़वानी सीट पर भाजपा किसी नए चेहरे को मौका देगी और इस कड़ी में भाजपा अजजा मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष गजेन्द्र पटेल सबसे मजबूत दावेदार होंगे। विधानसभा चुनाव में हारे पूर्व मंत्री अंतरसिंह आर्य भी लोकसभा का चुनाव लडऩा चाहते हैं। कांग्रेस यहां दो खेमों में बंटी हुई है, एक खेमे का नेतृत्व अरुण यादव और उनके अनुज कैबिनेट मंत्री सचिन यादव करते हैं, तो दूसरे में मंत्री विजयलक्ष्मी साधौ, विधायक झूमा सोलंकी और रवि जोशी हैं। यहां से पार्टी के टिकट के लिए अभी तक की स्थिति में सबसे मजबूत दावा गृहमंत्री बाला बच्चन की पत्नी प्रवीणा बच्चन का सामने आया है।

मुख्यमंत्री ने इस संसदीय क्षेत्र के नेताओं के साथ जो रायशुमारी की है उसमें श्रीमती बच्चन के अलावा पूर्व विधायक मांगीलाल आदिवासी के पोते प्रदीपसिंह वास्कले, पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुखलाल परमार, पूर्व विधायक विजयसिंह सोलंकी और डॉ. सी.एस. मुजाल्दे के नाम सामने आए हैं। इन सब में प्रवीणा बच्चन को सबसे मजबूत माना जा रहा है।
 
निमाड़ की सबसे महत्वपूर्ण सीट खंडवा भाजपा और कांग्रेस दोनों में एक जैसी स्थिति है, वर्तमान सांसद और भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमारसिंह चौहान का जबरदस्त विरोध है, तो कांग्रेस के टिकट के सबसे मजबूत दावेदार पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव की परेशानी पार्टी के नेताओं ने ही बढ़ा रखी है। चौहान विरोधी खेमे की कमान पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस ने संभाल रखी है और पिछले दिनों पार्टी के कार्यकर्ता सम्मेलन में जिन स्थितियों का सामना चौहान को करना पड़ा उससे स्पष्ट है कि इस बार उनकी राह बहुत कठिन है। इधर, यादव के खिलाफ खंडवा-बुरहानपुर के सारे नेता लामबंद हैं और उनकी पहली कोशिश तो यह है कि यादव टिकट ही ना पा सकें।

बुरहानपुर के निर्दलीय विधायक सुरेन्द्रसिंह शेरा तो यादव को मौका दिए जाने की स्थिति में खुलकर खिलाफत करने की बात भी कह चुके हैं। यहां कांग्रेस को सम्मानजनक लड़ाई लड़ने वाले नेता की भी तलाश है। मंदसौर की तरह यहां से भी केंद्रीय नेतृत्व की मंशा हर हालत में अरुण यादव को चुनाव लड़वाने की है। सिंधिया खेमे की ओर से इसी कड़ी में परमजीतसिंह नारंग का नाम आगे बढ़ाया गया है। एक स्थिति यह भी बन सकती है कि पार्टी यहां से किसी बाहरी नेता को मौका दे। 

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)

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