ऐसे में सवाल यह उठाता है कि आखिर लोकसभा चुनाव में बूथ स्तर का कार्यकर्ता क्यों सक्रिय नहीं है। अगर जमीनी स्तर पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ताओं को देखा जाए तो इसके अलग-अलग कारण है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो लोकसभा चुनाव में भाजपा कार्यकर्ता कहीं न कहीं ओवर कॉन्फिडेंस में है, वह यह मानकर चल रहा है कि चुनाव में मोदी का चेहरा ही काफी है, यहीं कारण है कि भाजपा का बूथ स्तर का कार्यकर्ता वैसा सक्रिय नहीं है जैस वह पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में सक्रिय था। विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर मानी जा रही थी, ऐसे में भाजपा का बूथ स्तर का कार्यकर्ता पूरी ताकत के साथ बूथ पर जुटा था, जबकि लोकसभा चुनाव में इसके ठीक उलट एकतरफा माहौल है। ऐसे में कहीं न हीं भाजपा का कार्यकर्ता अति आत्मविश्वास में नजर आ रहा है।
ALSO READ: लोकसभा चुनाव प्रचार के सियासी रंग, गृहमंत्री अमित शाह ने महाराज को सराहा, दिग्गी राजा की परमानेंट विदाई की भरी हुंकार
वहीं लोकसभा चुनाव को लेकर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का मूल कार्यकर्ताओं में निराशा का माहौल है। चुनाव के दौरान जिस तरह से कांग्रेस पार्टी में भगदड़ का माहौल है और पार्टी के बड़े-बड़े नेता पार्टी छोड़कर जा रहे है, उससे पार्टी का मूल कार्यकर्ता चुनाव के वक्त घर बैठ गया है और वैसा सक्रिय नहीं है जैसा विधानसभा चुनाव के वक्त था। यहीं कारण है कि चुनाव में सत्ता विरोधी वोटर्स भी उतनी संख्या में पोलिंग बूथ नहीं पहुंच पा रहा है।
ALSO READ: महाराज को जिताने के लिए चुनावी रण में महारानी, गुना में दांव पर सिंधिया घराने की प्रतिष्ठा
उम्मीदवारों के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी बड़ा फैक्टर-लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में कई सीटों पर अपने उम्मीदवारों को फिर से मैदान में उतारा है। जैसे रीवा में पार्टी ने मौजूदा सांसद जर्नादन मिश्रा की तीसरी बार चुनावी मैदान में उतारा है। रीवा में दूसरे चरण में सबसे कम 49.46% मतदान हुआ है जो 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 10 फीसदी कम है। रीवा में भाजपा का मुकाबला कांग्रेस की उम्मीदवार नीलम मिश्रा से है। ऐसे में रीवा में कम वोटिंग का बड़ा कारण बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं की कम सक्रियता के साथ मौजा सांसद के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी भी है।